वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस – Valmiki Ramayan Aur Ramcharitmanas Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
उपयुक्त पक्तियो म गोम्वामी तुनसीदासजी ने काव्य-सौम्दर्म विपयक एक अत्यन्त महत्त्व पूर्ण सूत्र उपस्थित करते हुए उनके साथ काव्य-सौन्दर्य के आस्वादन पक्ष को सलग्न कर दिया है ।
यहां मानगकार ने बाव्पास्वादन के लिये ‘रस’ जैसे किसी पारिभाषिक सन्द का प्रयोग न कर ‘छबि’ शब्द का प्रयोग किया है |
जो सोन्दर्य का पर्याय है और ‘रस’ जैसे किसी भी पारिभाषिक शब्द से कही अधिक व्यापक अर्थ को अपने में समाहित किये है ।
ध्यान दने की बात है कि मानस के कवि ने काव्य-सौन्दर्य को अन्य मुदर बस्तुपों के परिवार्त्र मे उपरियत किया है जिससे यह मकैत लहै कि उसकी दृष्टि से काम सौदर्य भी मूलत व्यापक सोन्दर्य- चेतना का ही एक अग है |
सोन्दर्य को साथ कता परम्वादन मे है। अ्रोर इमनिये का य सौन्दर्य का सम्बन्ध भी मास्वादन से है। ‘रस, जो काव्य स्वादन का सर्वाधिक भास्वर रूप है, सामाजिक मे ही अभि ध्यजित माना गया है
इसी प्रकार काव्य सौन्दर्य के अन्य सभी सम्भव रूप आस्थरा- एक निर्मर हैं वनि कोे यदि बाव्य-सजना के কापलो में श्रानन्दानुभूति होती है तो वह पा तो रचना मूलप्रत्रूत्ति नी चरितायंता से उद्भूत होगी,
जिसके सम्बन्ध मे मानस कार ने कहा है सौन्दर्य शास्त्र- विषयक आधुनिक विचारणा भी सौन्दर्य के उक्त तीन पक्षो का विचार करती है-सौन्दर्यशास्त्र के अन्तर्गत प्रधानत.
तीन प्रकार के सौन्दर्यं पर विचार किया जाता है-ऐन्द्रिय सौन्दर्य, विघानगत सौन्दर्य और प्रभिव्यक्ति-सौन्दर्य । २ काव्य-विश्लेपण की दृष्टि से ऐश्दिप सोन्दर्य का सम्वन्ध सौग्दर्य- भावन से हैं
जो कला-सर्जना तथा काव्य-रचना की प्रक्रिया का एक अग है विघानगत सोन्दर्य रूप- सप्टि, कलाकृति मे सौन्दर्य का रूपायन अथवा काव्य-कृति में सौन्दर्य का मूर्नीकरण ही है और इस प्रकार वह सौन्दर्य का कृतित्व-पक्ष है ।
श्रभिव्यक्ति-सौन्दर्य का सम्बन्ध काव्यानन्द के सम्प्रेषण से है जिसका अन्तर्भाव प्रास्वादन मे होता है ।
इस प्रकार गोस्वामीजी की उपयुक्त पवितयों मे सौन्दर्य विषयक जो सूत्र उपस्थित किया गया है वह आधुनिक सौन्दर्य दृष्टि से भी समर्थित है।
लेखक | जगदीश शर्मा-Jagdish Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 389 |
Pdf साइज़ | 6.9 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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