त्रिपुरा उपनिषद – Tripura Upanishad Pdf Free Download

त्रिपुरा महा उपनिषद
राय को शास्त्रार्थ द्वारा यह मानने को बाध्य किया जाय कि उन्होंने पूजन की वाम-मार्गीय पद्धति को अपना कर भारी भूल की है ।
भास्कर राय की जैसे ही यह बात मालूम हुई, उन्होंने स्वयं उक्त पण्डितों को अपने यहाँ आयोजित एक महा-याग में इस उद्देश्य से आमन्त्रित किया कि शास्त्रार्थ द्वारा सदा के लिये यह निर्णय कर लिया जाय कि वाम-मार्ग के प्रति उनकी निष्ठा ठीक है या पण्डितों की उक्त धारणा ।
‘नारायण भट्ट और उनके अनुयायियों ने आमन्त्रण स्वीकार कर लिया और निर्दिष्ट समय पर वे याग-शाला में पहुँच गये, जहां भास्करराय ने बड़े आदर के साथ उनका स्वागत किया।
महा-याग की भव्य व्यवस्था और भास्करराय की आध्यात्मिक महत्ता से सारा पण्डित-वर्ग प्रभावित हो उठा और शास्त्रार्थ की उनकी उग्र प्रवृत्ति कुठित हो गई ।
फिर भी, उन्होंने मन्त्र-शास्त्र-सम्बन्धो कुछ जटिल प्रश्नों को उठाया, जिनका समाधान भास्करराय ने तुरन्त ही कर दिया।
‘इसी समय एक विद्वान् संन्यासी कुकुमानन्द सरस्वती ने पण्डितों को सम्बोधित करते हुए यह कहा कि ‘भास्करराय को हत-प्रभ करने का आपका सारा प्रयास व्यर्थ जायगा क्योंकि साक्षात् श्री देवी ही उनकी वाणी के द्वारा बोल रही हैं।’ किन्तु नारायण भट्ट को इस कथन पर विश्वास नहीं हुआ ।
उन्होने प्रत्यक्ष प्रमाण की मांग को । तुरन्त ही उस संन्यासी ने याग स्थल-स्थित उस पात्र का कुछ जल हाथ में लिया, जिससे भास्करराय ने श्री देवी को स्नान कराया था, और उससे नारायण भट्ट की आँखों को अभिषिक्त कर दिया ।
क्षण हो भर में नारायण भट्ट को दिव्य दष्टि प्राप्त हो गई भौर उन्होंने इस कथा में अतिशयोक्ति हो सकती है किन्तु इससे इतना तो विदित ही हो जाता है कि भास्करराय एक महान कोल साधक थे
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 5 |
Pdf साइज़ | 19 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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