रचनानुवाद कौमुदी – Rachnanuvad Kaumudi Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
संस्कृत भाषा को अति सरल, बोध और सुगम बनाने के लिए यह पुस्तक मसान की गई है । माय अयम्य उतार के साथ पुस्ताक के पठन में प्रवृत्त हो।
मत्येक भाषा में गुज गोल्ना या लिखना निरन्तर अभ्यास के बाही आटा मातृभाण हिन्दी मे घड बोरना या सिपना खगों के निरन्तर अभ्यास के बाद ही आता है।
पर सारण रसे कि विना न्यास के कोई विना नही ज्यती है । अत.खोडकर ससकूत में दोवने वोर लिखने का पास करे ।
(२) पुस्तक में ६० बर्भास है । कुल भाषा से अपरिचित भी कोई हिन्दी खाने वाला व्यक्ति १ अभ्यास को १ या २ का प्रतिदिन समय देने पर सरता से २ दिन में पूरा कर सकता है ।
इस प्रकार मास में यह पुस्तक सरलता से समात दो सफर है।
यहुलत अस आायुनाडे छात्र४दिन में भासमारा कर सकते हैं, स प्रकार वे भी ८ पास में पुस्तक पूरी पद सकते है।
(३) संस्कृत भाषा के जान के लिए जितने शप्यो, भावी और नियमों के जानने की अंत आवश्यकता होती है, ने सभी बाते इस पुस्तक में है।
इस युस्तक का ठीक अभ्यास हो जाने पर नि सकोच 2द संस्कृत लिलख औीर बोल सठता है। बरी ए० तक के लिए इतने ग्याकरण का हान पात है ।
गण्दकोप में एक प्रकार सें रूप चाटने वाले शब्द वा बात आय. एक ही सान पर दिए गए है।
अति प्रसिद्ध शब्द या शत्रु ही प्राय दि गए है, कठिन दो को होड दिया गया है। किस शब्द बा धातु के रूप फिस परकार चे, यह भी अन में सूपना द्वारा तस्ट कर दिया है। क) (ग) () सकेता कार्य सशा, नया आदि सारण रक्।
लेखक | कपिलदेव द्विवेदी-Kapildev Dwivedi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 265 |
Pdf साइज़ | 28.7 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
रचनानुवाद कौमुदी – Rachnanuvad Kaumudi Book/Pustak Pdf Free Download
This book is very helpful in Sanskrit learning .
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