श्वेताश्वतरोपनिषद – Swetaswatara Upanishad PDF Free Download

श्वेताश्वतर उपनिषद संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
ब्रह्मतत्त्वके जिज्ञासुओंको सरलतासे बोध करानेके लिये यह श्वेताश्वतरोपनिषद्की व्याख्या छोटे-से ग्रन्थके रूपमें आरम्भ की जाती है। यद्यपि आत्मा सच्चिदानन्द अद्वितीय ब्रह्मस्वरूप ही है,
तथापि अपने ही आश्रित रहनेवाली, अपनेहीको विषय करनेवाली और [‘मैं अज्ञानी हूँ’ इस प्रकार] अपने अनुभवसे ही ज्ञात होनेवाली चिदाभासयुक्त अविद्यासे उस (जीवात्मा) के सब प्रकारके स्वाभाविक पुरुषार्थका अवरोध हो
जानेसे उसे सम्पूर्ण अनर्थकी प्राप्ति हुई है और वह अज्ञानवश कल्पना किये हुए ही साधनोंसे अपनी इष्टप्राप्तिरूप अपुरुषार्थको ही पुरुषार्थ मानकर परम पुरुषार्थरूप मोक्षपद प्राप्त न कर सकनेके
“इस प्रकार मृत्युको अवश्य होनेवाली जानकर विद्वान् ज्ञानके द्वारा नित्य तेज.स्वरूप बहू को प्राप्त होता है, इसके सिवा उसके लिये कोई और मार्ग नहीं है, उसे जान लेनेपर विद्वान् प्रसन्नचित्त हो जाता है”
“परमात्माके ज्ञानसे जीवको आत्यन्तिको शुद्धि मानी गयी है”, “योगसाधनके द्वारा आत्माका साक्षात्कार करना-यही परमधर्म है”, *आत्मज्ञानी शोकसे पार होकर मृत्यु, मरण अथवा किसी अन्य कारणसे होनेवाले
भय-इनमेंसे किसीसे भी नहीं परमात्मा न उत्पन्न होता है, ग मरता है, न मारा जाता है और न मारता है, वह न तो बाँधा जानेवाला है और न बंधनेवाला है तथा न मुक्त है और न मोक्षप्रद ही हैं.
उससे मिल जो कुछ है यह असत् ही है।”इस प्रकार बुति, स्मृति और इतिहासा दिमे ज्ञान ही मोक्ष का साधन जाना जाता है, अतः इरा स्वाचक ) उ आरम् र त हो है ।इसके सिवा उपनिषद नाम में भी हो सान होन ।
‘उपनिषद् -यह उप और नि उपसर्गपूर्वक विशरण, विनाश, गति और अवसादन (अन्त) अर्थवाले सद् देन धातुका रूप बतलाया जाता है। उपनिषद् शब्दसे, हम जिस ग्रन्थकी व्याख्या करना चाहते हैं
उसके द्वारा प्रतिपाद्य वस्तुको विषय करनेवाले ज्ञानका कथन होता है। उस जानकी प्राप्ति ही इसका प्रयोजन है, इसलिये यह ग्रन्थ भी उपनिषद् कहा जाता है। जो मोक्षकामी त पुरुष दृष्ट और श्रुत विषयसे विरक्त हो
उपनिषद् शब्दसे कही जानेवाली विद्याका निश्चयपूर्वक तत्परता से , अनुशीलन करते हैं उनकी संसार की बीजभूता अविद्यादिका विशरण- विनाश – हो जानेके कारण, उन्हें परब्रह्मक पास ले जानेवाली होनेसे
उनके जन्म: मरणादि उपद्रवोका अवसादन (अन्त) करनेवाला होने के कारण यह उपनिषद है, इस प्रकार नामसे भी अन्य सल् साधनोंकी अपेक्षा परम श्रेयस्कर होनेके कारण अयविद्या उपनिषद कही जाती है। पूर्व-यदि विज्ञान ही मोक्षका साधन होता।
मुक्त और वस्तुओंका अनित्यत्वादि देखनेसे ऐहिक और पारलौकिक भोगोंसे विरक्त हो जाता है। तब आचार्यके पास जाकर उनके द्वारा वेदान्तश्रवणादि करके ‘मैं ब्रह्म हूँ’ इस प्रकार ब्रह्मात्मतत्त्वका साक्षात्कार कर वह अज्ञान और उसके कार्यकी निवृत्ति हो जानेके कारण शोकरहित हो जाता है। क्योंकि अज्ञाननिवृत्तिरूप मोक्ष ज्ञानके अधीन है, इसलिये ज्ञान ही जिसका प्रयोजन है उस उपनिषद्का आरम्भ करना उचित ही है।
तथा उस (ब्रह्मात्मतत्त्व) – के ज्ञानसे अमृतत्व प्राप्त होता है। “उसको जाननेवाला इस लोकमें अमृत (मुक्त) हो जाता है”, “मोक्षप्राप्तिके लिये कोई दूसरा |
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 235 |
Pdf साइज़ | 96.3 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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