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छान्दोग्य उपनिषद भावार्थ सहित – Chhandogya Upanishad PDF Free Download

छान्दोग्य उपनिषद
ॐ और उजीथ अक्षर एक ही है, अक्षर का अर्थ यहाँ इ नाशी के हैं, जो अविनाशी है, वहीं ॐ है, कोई कोई आचार्य अक्षर शब्द के दो भाग करते हैं, अक्ष + र, अक्ष का अर्थ नेत्राव इन्द्रियां हैं, र-का अर्थ रहनेवाला है,
जो इन्द्रियों के बिषे रहनेवाला हो वही अक्षर है, वही अविनाशी ब्रह्म है, उसीको उद्गीथ भी कहते हैं, उद् माने सब से बड़ेके हैं, और गी-का अर्थ जो गाया गया है, य-का अर्थ स्थान है,
याने जो स्थान सब से बड़ा है, और जो सच वेदों करके गाया गया है, उसका ध्यान करना चाहिये, जब ईश्वर ने जीवों के कर्मफल भोगार्थ सृष्टि रचने की इच्छा की तो प्रथम शब्द ध्वन्यात्मक ॐ ऐसा निकला,
उसीसे उसके पश्चात् वर्णात्मक शब्द “एकोहं बहु स्य” उत्पन्न भया, याने ॐकार रूप ब्रह्म एक में बहुत प्रकारसे होऊँ, यह इच्छा तेही चराचर सृष्टि उत्पन्न होगई, इसलिये जितनी सृष्टि है,
चाहे वह प्रकट भाव से हो, अथवा अप्रकट भाव से हो वह सब ब्रह्म रूपही है, अथवा ॐकाररूप है, वेदों में जो ऋचा के पहिले अथवा पीछे ॐ का प्रयोग किया जाता है,
वह यह बताता है कि । कुछॐ शब्द के पश्चात् कहा जायगा याॐ के पहिले कहा गया जो है, वह सब ॐकाररूपही है, उससे पृथक् कोई वस्तु नहीं है, ॐ – कार में तीन अक्षर हैं,
अ + उ + म अ से मतलब जाग्रत् का अभिमानी देवता विश्व है, उसे स्वप्न का अभिमानी देवता ते जसहै, म से सुषुप्ति का अभिमानी देवता प्राज्ञहै, याने इन तीनों अवस्थाओं के जो पृथक् पृथक् अभिमानी देवता हैं,
वे ॐ काररूप ही हैं, और मायाविशिष्ट ब्रह्म, ईश्वर, हिरण्यगर्भ और विराट् यह भी ॐकाररूप ही हैं,
लेखक | रायबहादुर जालिम सिंह, Gita press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 970 |
Pdf साइज़ | 18.1 MB |
Category | All Upanishad PDF |
छान्दोग्य उपनिषद शंकर भाष्य सहित PDF
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