गिरधर रामायण – Girdhar Ramayan Book/Pustak Pdf Free Download
नागरी लिपि में मूल गुजराती पाठ तथा हिंदी गद्यानुवाद
कौशल्या रानी गम्भीरता पूर्वक वोली-मैं जगदात्मा रघुवीर हूँ। मुझमें कोई अज्ञान तथा अपेक्षा नहीं है । मैं सर्वतः पूर्णकाम हूँ। (मुझसे) सकल विश्व परिपूर्ण (व्याप्त) है -स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण अवस्था से मैं दूर हूँ ।
महाकारण मेरा रूप नहीं हो सकता। मैं तो अनुपमेय आत्माराम हूँ । मेरे लिए द्वैत-अद्वैत और ज्ञाता-ज्ञान तथा ध्याता-ध्यान का अन्तर नहीं है । २८-३० । मैं का साक्षी सर्व-निवासी है, वह साक्षी चैतन्य रूप तथा विश्व-प्रकाशी है।
मैं सच्चिदानन्द एवं अविनाशी हूँ, सुख-रूप एवं आनन्द-विलासी हूँ। ३१ । ऐसा सुनकर दशरथ राजा को मन में बहुत आश्चर्य हो गया । (वे बोले-)अरी रानी ! तुझे क्या हुआ? आज तेरा भान कहां गया ? ।
मुझे पहचान ! मैं कौन हूँ ? तू निपट अज्ञान क्यों हुई ? जब रावण तेरा अपहरण कर गया था, तब तुझे लाकर मैंने (तुझसे ) पाणिग्रहण (विवाह) किया । ३३ । रावण का नाम सुनकर वह भामा (स्त्री) गर्जन कर वोली-इसी समय धनुप-वाण लाओ।
मैं रावण के दसों मस्तकों को काटती हूँ (काटुंगी) । त्रिशिरा, खर और दुखर (दूषण) को मारती हूँ (मागी)। ताड़का-सुबाहु का संहार करती हूँ (करूंगी), शूर्पणखा की नाक छेदूंगी। स्वर्ग के शत्रु-रावण के (वनाये) समूचे वन्धन छुड़ा दूँगी-देवताओं को मुक्त कंगी ।
रानी ने ऐसा सकल निःशेप चरित्र कहा और राजा सुनते रहे । इसे किसी ने वशीकरण कर अचेत ( ज्ञानहीन) किया अथवा भूत या प्रेत ने झपेट लिया- ऐसी चिन्ता करते हुए तत्क्षण राजा ने गुरु (वसिष्ठ) को बुलाया ।
जिस प्रकार विद्या का कोई जाता अंजन लगाने पर बिना किसी आड़ धन को देखे, उसी तरह वसिष्ठ ने आकर देखा, तो उन्होंने कौशल्या को अद्भुत राम रूप हुए देखा । ३८ । इस प्रकार वसिष्ठ ने राम हैं
लेखक | गिरधर-Girdhar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 1446 |
Pdf साइज़ | 73.5 MB |
Category | धार्मिक |
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