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कुंडलिनी शक्ति – Kundalini Shakti Yoga PDF Free Download
कुंडलिनी चक्र
‘कु हलिनी” एक ऐसी शकिा है, जिसका अनुभव तो भया जा सकता है, किन्तु उसी प्रत्यक्ष दैखा नहीं जा सकता।
यह शक्ति हमारे अपने शरीर में सोयो हु अवस्था में विद्यमान किया जिसकी शक्ति का अनुभव करने के लिए, उसे जायता करना होता है।
कुण्डलिनी प्रकृति की सर्वोपरि ना शक्ति है। यह शक्ति सुप्तावस्था में मूलाधार चक्र को जल में स्वयंभूसिंग के मारे शीन सक्कर लगाकर, नीचे को अपनी अपने मुख में धारण किए हुए स्थित है।
यह शक्ति सुप्तावस्या में भी अपना कुछ माती अवश्य ही मुख करके और करती रहती है. क्योंकि यह ऊजा-शकि है जो शरीर को चलायमान रखती है।
इस ऊर्जा-शक्षिकोडी”डलिनी शक्षित”के रूप में समा जाता है। कुण्डलिनी शक्ति निरंतर ध्यान, एवं साधना करने, देवकृपा और गुरु द्वारा शक्तिपात करने में भी जात होती है।
कितने ही प्राचीन कमियों (साधकों) ने साधना के मार्ग पर पिरियन्त यतका, प्राणों को सुरा और एकाद करके दृढ़ संकल्पना रोड़ की हडी के सबसे निचले भाग में,
मूलाधार चक्र के जड़ में ध्यान की से शारद मूलबंध साधन को क्रिया करते हुए कुण्डलिनी शक्ति को सता किया है।
कुण्डलिनी शक्ति को जगाने का समिपात भी एक भात चमत्कारी मार्ग है जो केवल पोय गुरु के द्वराहो संभव स्वामी विवेकानंद की बनी परमहंस ने अपना पण स्पर्श करके शाकतपात का अनुभव कराया था।
इसी शक्तिपात हा स्वामी विवेकानंद की कुन्डलिनी जागत हुई पी)। यह समिपा ब्रह्मविद्या के पारंत रुजनों के द्वारा हो हो सकता है
डालनी जागरण के कान स्वामी विवेकानंद में एक अनोखी प्रतिभा, ओज, देव का प्रादुर्भाव हुआ और उस संसार भर के लोग प्रभावित हुए। उपरेका उदाहरण से यह स्पट हो जाता है कि सचिमपाल के दना साभक की महान -शण्ति की जा|
कुण्डलिनी के निवास स्थान के बारे में एक सर्वमान्य और निश्चित मत यह है कि यह मूलाधार चक्र में आसीन है। प्रत्येक व्यक्ति का शरीर उसके अपने अंगुल से 96 अंगुल होता है। मूलाधार चक्र इस शरीर यष्टि के मध्य में अर्थात् 48वें अंगुल पर है। योगी या साधक जब इस शक्ति को जगा देता है तब कुण्डल खुल जाते हैं। बंधन कटने लगते हैं और ऊर्ध्वगति आरंभ हो जाती है।
ऋग्वेद में इस शक्ति को “वाक्” कहा गया है। ऋग्वेद के एक मंत्र में इस शक्ति ने अपना परिचय देते हुए
कहा है, “मैं रुद्रों, वसुओं और आदित्यों के साथ विहार करती हूं। वरुण, मित्र, इंद्र, अग्नि आदि को मैं ही उठाए
हुए हूं।” कुण्डलिनी शक्ति को कुल कुण्डलिनी, भुजगिनो, सर्पिणी, प्रचण्ड शक्ति, मूलाधार निवासिनी, वलयाकार सर्पिणी, विद्युत, अग्निमय, मुक्तशक्ति महादेवी, सप्तचक्र भेदिनी, विश्वशक्ति विद्युत प्रवाह रूपिणो, सर्व सौंदर्य शालिनी, सर्व सुख दायिनी, कुण्डले, अपराजिता, विषतंतुस्वरूपा, मूलविद्या, कुटिलरूपिणी, नव शक्ति समन्विता, शक्ति चालिता, अधोमुख सर्पिणी, कुण्डलिनी आदि नामों से संबोधित किया गया है।
तंत्र में इसे “बागेश्वरी” कहा गया है, “स्वर की उत्स, हे कुण्डलिनी तुम्ही हो; (पंचाष्टवी)।”ऋग्वेद में यह वाग्देवी स्वयं घोषित करती है, “मैं जिसे चाहती हूं उसे महान शक्तिशाली, संत, ऋषि और ब्रह्म बना देती हूं।”
अपना परिचय देते हुए वैदिक मंत्र में वाग्देवी (कुण्डली) ने आगे कहा है, ”ईश्वर या पिता शीर्षस्थ हैं जिन
तक मेरो पहुंच है और मेरा निवास समुद्र में है। इस प्रकार योग, तंत्र, पुराणों आदि में जिस कुण्डलिनी का उल्लेख है, उसकी वास्तविकता और महत्त्व को
भारतीय ऋषियों ने सृष्टि के आदि काल से स्वीकार किया।
“मिस्टीरियस कुण्डलिनी” की भूमिका में सर जान बुडरफ ने लिखा है कि यह “महाशक्ति ” है। जब यह जाग जाती है, तब इसकी ऊर्ध्वगति आरंभ हो जाती है और एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व में लोन करती हुई यह परम शिव से जा मिलती है। षट्चक्र निरूपण में कहा गया है- मेरोबा प्रदेशे शशिमिहिर शिरे सव्यदक्षे निषण्णे
मध्ये नाही सुषुम्ना त्रितयगुणमयी चन्द्रसूर्याग्निरूपा मेरु की दाहिनी ओर सूर्य नाड़ी और बाबीं और चन्द्र नाही है। मध्य में सुषुम्ना है जो सूर्य, चन्द्र और अग्नि रूपा
योग में सूर्य नाड़ों को इड़ा और चन्द्र नाड़ी को पिंगला कहा गया है। “मिस्टीरियस कुण्डलिनी” के अंग्रेज लेखक डॉक्टर रेले ने योग में वर्णित षट्चक्रों-मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध और आता चक्र- का स्थान आधुनिक शरीर विज्ञान की दृष्टि से इस प्रकार निश्चित किया है श्रोणि आलिका, अधोजठर जालिका, सौर जालिका हृदय जालिका, प्रसनी जालिका और नासारोमक जालिका ।
योगियों के अनुसार सुषुम्ना गुदास्थि की त्रिकोणीय पीठ पर टिकी है। योगशास्त्रों में इसी स्थल को “ब्रह्माड’ का द्वारा बताया है।
लेखक | सी। एम। श्रीवास्तव-C.M Shrivastav |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 229 |
Pdf साइज़ | 71.8 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
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Download nahin ho raha hai
link तो सही है, फाइल 80 MB की है शायद download होने में ज्यादा समय लगता होगा