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यंत्र, मंत्र, तंत्र विद्या – Yantra Mantra Tantra Vidhya PDF Free Download
यंत्र, मंत्र, तंत्र विद्या
मानसिक शक्ति के आधार पर यदि यह मानव अपने सासारिक जीवन को सुन्दर, उत्तम बना सकता है, तो मात्र, तांत्रिक एवं यांत्रिक शक्ति के आधार पर यह स्व और पर का उपकार कर जीवन में शक्ति का संचार कर सकता है ।
इन सब मे महान शक्ति की दायिनी, अक्षुण्ण शाश्वत सुख की दायिनी आध्यात्मिक शक्ति है । भारतीय इतिहास की खोज करने पर ज्ञात होता है, कि भारत के श्रमण महर्षियों ने जीवन मे सभी शक्तियो को पूर्ण स्थान दिया है।
मांत्रिक, तांत्रिक, यांत्रिक शक्तियों को जहां आज का योग झूठा, मिथ्या व पाखण्ड नाम से पुकारता है, वहाँ कुन्द कुन्दादि जैसे महानु अध्यात्म योगी ने तांत्रिक शक्ति के बल पर “दिगम्बर धर्म को आदि धर्म घोषित करवाकर” श्रमण परम्परा की, श्रमण संस्कृति की रक्षा की है।
मन्त्र विद्या, तंत्र विद्या, तंत्र विद्या झूठ या मिथ्या नही हैं । मिथ्या है तो हमारा श्रद्धान है। पहले उसी मन्त्र से शीघ्र कार्य की सिद्धि देखी जाती थी, परन्तु आज तुरन्त या शीघ्रता से मन्त्र सिद्धि नही पायी जाती है,
इसका दोष हम मन्त्रो को देते है, परन्तु क्या मन्त्र, तन्त्र गलत है, नही, मन्त्र भी गलत नहीं है, तन्त्र भी गलत नही है, गलत है, तो हम है और हमारा श्रद्धान है।
वर्तमान समय मे श्री १०८ आचार्य कुन्थु सागर जी महाराज ने लुप्त हुई इस मन्त्र, तंत्र विद्या को पुन जीवन्त बनाने के लिए बहुत उत्तम प्रयास कर “लघु विद्यानुवाद” नामक पुस्तक का सृजन किया है।
मेरी यही शुभकामना है कि यह पुस्तक हम भूले पानवो को अपनी भूली हुई शक्तियो का स्मरण कराकर सही मार्ग प्रशस्त करने मे पूर्ण सफल एव सक्षम सिद्ध होगी। और ग्रन्य प्रकाशन मे जो श्री शांति कुमार जी गंगवाल आदि कार्य कर्ता हैं उन सभी को हमारा आशीर्वाद है।
–उपाध्याय मुनि श्री भरत सागर
प्रस्तुत मन्त्र शास्त्र मे मारण उच्चाटन आदि हानि पहुत्ञाने वाली क्रियाएं भी वाणित है उन त्रियाओं में साधक किसी भी प्रकार हाथ न लगावे। हमारा वितराग धर्म अहिंसा मयी है ।
जो माएण कर्म उच्चाटन कर्म दूसरो को हानि पहुंचाने की क्रिया करता है। वह महान् पातकी कहलाता है, और सबसे अधिक हिसा के दोप का भागी होता है ।
वीतराग धर्म या (हम) समग्रहकर्ता किसी भी प्रकार से इन क्रियाओ में साधक को प्रवेश करने की श्राज्ञा नही देते | शान्ति कर्म पोष्टिक कम या दूसरो को हानि पहुचाने रूप क्रियाओ मे प्रवेश करने रूप भाव भी करेगा तो वह वीतराग धर्म के नष्ट करने रूप पाप का अधिकारी होगा ।
महान हिसक होगा । हाँ इन क्रियाग्रों मे कव प्रवेश करे, जबकि कही सच्चे देव शास्त्र गुरु पर उपसर्ग आया हो अथवा कोई धर्म सकट आया हो, किसी सती की रक्षा करना हो । धर्मात्मा के प्राण सकट मे हो ।
तब इन क्रियाञ्रो को शुद्ध सम्यगहष्टि श्रावक है वेही, करे । इस शास्त्र मे जो मन्त्र, यन्त्र श्र तन्त्र है उनको मिथ्यादृष्टियो के हाथ मे न दे । जो भी ऐसा करेगा उसे वाल हत्या का पाप लगेगा ।
हमने इस जास्त्र का सग्रह मात्र जेन समाज के हितार्थ किया है | कहो कही मन््त्रो की विधि समझ में नहीं आने के कारण ज्यो की त्यो लिख दी है और लगभग सभी जगह मन्त्रो की विधि बुद्धि के अनुसार स्पष्ट की है।
इस ग्रन्थ को सग्रहित करने मे म॒त्रो की विधि लिखने मे किसी प्रकार की त्रुटि रही हो तो उसे विशेष मत्र शास्त्र के जानने वाले शुद्ध करे हमने तो अपने अल्प ज्ञानानुसार शुद्ध कर सम्रह किया है ।
इस ग्रन्थ के कार्य मे हर समय १०८ आचार्य सन््मार्ग दिवाकर विमलसागरजी महाराज का आशीर्वाद रहा है और श्री गणनी १०५ आयिका सिद्धान्त विशारद सम्यक ज्ञानशिरोमणि विजय मती माताजी का ग्रन्थ सग्रमह मे कार्य पूर्० सहयोग व दिग्दर्शन रहा है। माताजी को मेरा पूर्ण आशीर्वाद है ।
लेखक | श्री कुन्थु सागर जी महाराज – Shri Kunthu Sagar Ji Maharaj श्री विजयमती माताजी – Shri Vijaymati Mataji |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 734 |
PDF साइज़ | 30.12 MB |
Category | ज्योतिष (Astrology) |
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