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नित्य कर्म पूजा प्रकाश – Nitya Karm Pooja Prakash PDF Free Download
वैदिक नित्य कर्म पूजा प्रकाश पाठ मंत्र
विषय सूची
गृहस्थके नित्यकर्मका फल-कथन प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य
१ ब्राह्म मुहूर्तमें जागरण, करावलोकन, भूमि-वन्दना …………. मङ्गल-दर्शन.., माता पिता, गुरु एवं ईश्वरका अभिवादन. मानसिक शुद्धिका मन्त्र, कर्म और उपासनाका समुच्चय (तन्मूलक संकल्प,
२- अजपाजप …….(क) किये हुए अजपाजपके समर्पणका संकल्प, (ख) आज किये जानेवाले अजपाजपका संकल्प
३- प्रातः स्मरणीय श्लोक गणेशस्मरण., विष्णुस्मरण, शिवस्मरण, देवीस्मरण, सूर्यस्मरण, त्रिदेवों के साथ, नवग्रहस्मरण, ऋषिस्मरण, प्रकृतिस्मरण…, पुण्यश्लोकोंका स्मरण, दैनिक कृत्य-सूची-निर्धारण
४- शौचाचार, शौच-विधि, (क) मूत्र-शौच-विधि, (ख) परिस्थिति-भेदसे शौचमें भेद, (ग) आभ्यन्तर शौच
५- आचमनकी विधि.,६- संकल्प …..,७- दत्तधावन-विधि, (क) ग्राह्य दातौन, संध्या प्रकरण,
१- संध्याका समय, संध्याकी आवश्यकता, संध्या न करनेसे दोष.., संध्या-कालकी व्याख्या, संध्यास्तुति, संध्याके लिये पात्र आदि, संध्योपासन-विधि, आचमन, मार्जन-विनियोग मन्त्र, संध्याका संकल्प
सूर्यके बारह नमस्कार, नित्य-दान,
३-देव-पूजा-प्रकरण (देवयज्ञ ), (१) पूजन-सम्बन्धी जानने योग्य कुछ आवश्यक बातें
नित्य-दान, संकल्प-विधि, अतिथि सत्कार, भोजन विधि, शयन-विधान आदि प्रकरणोंके साथ-साथ नित्य पाठ करनेके स्तोत्रों का संग्रह भी किया गया है
तथा विभिन्न देवोंकी दैनिक उपयोगमें आनेवाली स्तुति और आरतीका संकलन हुआ है ।
विशिष्ट पूजा-प्रकरणके अन्तर्गत स्वस्तिवाचन, गणेश पूजन, वरुणकलश-पूजन, पुण्याहवाचन, नवग्रह-पूजन, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, चतुष्पष्टियोगिनी तथा वास्तुपूजनका भी संग्रह हुआ है।
इसके साथ ही पञ्चदेव, शिव, पार्थिवेश्वर, शालग्राम तथा महालक्ष्मी-दीपमालिका आदिके पूजन-विधान भी प्रस्तुत किये गये हैं।
प्रातःकाल उठनेके बाद स्नानसे पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य हैं, शास्त्रोंने उनके लिये भी सुनियोजित विधि-विधान बताया है।
गृहस्थको अपने नित्य कर्मोक अन्तर्गत स्नानसे पूर्वके कृत्य भी शास्त्र-निर्दिष्ट पद्धतिसे ही करने चाहिये; क्योंकि तभी वह अग्रिम षट्-कर्मोक करनेका अधिकारी होता है।
अतएव यहाँपर क्रमशः जागरण-कृत्य एवं स्नान- पूर्व कृत्योंका निरूपण किया जा रहा है।
ब्राह्म मुहूर्तमें जागरण- सूर्योदयसे चार घड़ी (लगभग डेढ़ घंटे) पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्रमें निषिद्ध है’ ।
करावलोकन – आँखोंके खुलते ही दोनों हाथोंकी हथेलियोंको देखते हुए निम्नलिखित श्लोकका पाठ करे |
शौचके बाद पहले मिट्टी और जलसे लिङ्गको एक बार धोवे। बादमें मलस्थानको तीन बार मिट्टी जलसे धोवे। प्रत्येक बार मिट्टीकी मात्रा हरे आँवलेके बराबर हो। बादमें बायें हाथको एक बार मिट्टीसे धोकर अलग रखे, इससे कुछ स्पर्श न करे।
इसके पहले आवश्यकता पड़ने पर बायें हाथसे नाभिके नीचेके अङ्गको स्पर्श किया जा सकता था, किंतु अब नहीं। नाभिके ऊपरके स्थानोंको सदा दाहिने हाथसे छूना चाहिये। दाहिने हाथसे ही लोटा या वस्त्रका स्पर्श करे।
लाँग लगाकर (पुछटा खोसकर) पहलेसे हो रखी गयी, मिट्टीके तीन भागोंमेंसे हाथ धोने (मलने) और कुल्ला करनेके लिये नियत जगहपर आये। पश्चिमकी ओर बैठकर मिट्टीके पहले भागमेंसे बायें हाथको दस बार और दूसरे भागसे दोनों हाथोंको पहुँचेतक सात बार धोये।
जलपात्रको तीन बार धोकर, तीसरे भागसे पहले दायें पैरको, फिर बायें पैर को तीन-तीन बार मिट्टी और लेकर धोये। इसके बाद बाँयी ओर बारह” कुल्ले करे।
आभ्यन्तर शौच-मिट्टी और जलसे होनेवाला यह शौच कार्य बाहरी है। इसकी अबाधित आवश्यकता है, किंतु आभ्यन्तर शौचके बिना यह प्रतिष्ठित नहीं हो पाता। मनोभावको शुद्ध रखना आभ्यन्तर शौच माना जाता है।
किसीके प्रति ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा आदिके भावका न होना आभ्यन्तर शौच है। श्रीव्याघ्रपादका कथन है कि यदि पहाड़ – जितनी मिट्टी और गङ्गाके समस्त जलसे जीवनभर कोई बाह्य शुद्धि कार्य करता रहे, किंतु उसके पास ‘आन्तरिक शौच’ न हो तो वह शुद्ध नहीं हो सकता। अतः आभ्यन्तर शौच अत्यावश्यक है। भगवान् सबमें विद्यमान हैं।
इसलिये किसीसे द्वेष, क्रोधादि क्यों करे? सबमें भगवान्का दर्शन करते हुए, सब परिस्थितियोंको भगवान्का वरदान सबमें मैत्रीभाव रखे। साथ ही प्रतिक्षण भगवान्का स्मरण करते हुए उनकी आज्ञा समझकर शास्त्रविहित कार्य करता रहे।
लेखक | लाल बिहारी मिश्र-Lal Bihari Mishra |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 382 |
Pdf साइज़ | 15.2 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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