हरिवंश पुराण – Harivansh Puran Book/Pustak PDF Free Download

हरिवंशपुराण भाषा
॥ श्लोकः ।।
सिद्धं ध्रौव्यव्ययोत्पादलक्षणं द्रव्यसाधनम्। जैनं द्रव्याद्यपेक्षातः साधनाद्यथ शासनम् ।।1।।
अथ: प्रथम ही जैनशासन कहिये जैनसिद्धान्त सो जयवंत होवे। कैसा है जिनशासन, उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप जो सत्ता सो है लक्षण जिसका। ऐसा जो द्रव्य कहिये षट् द्रव्यों का समूह उसका साधन कहिये कथन करणहारा है।
और कैसा है जिनसूत्र – सिद्धं कहिये स्वतः सिद्ध है। किसी कर किया नहीं और द्रव्यार्थिक नय कर अनादि है और पर्यायार्थिक नय कर आदि सहित है।
भावार्थ:- प्रवाह रूप अनादि काल से प्रवर्ते है और सदा प्रवर्तेगा, इससे अनादि अनन्त है। और जब प्रगट होय है तब केवली के मुख से प्रगटे है इससे आदि सहित है
और जे षट् द्रव्य हैं वे स्वद्रव्य स्वक्षेत्र स्वकाल स्वभाव की अपेक्षा अस्ति रूप हैं और परद्रव्य परक्षेत्र परकाल परभाव की अपेक्षा नास्तिरूप हैं। इस भांति सब ही द्रव्य अस्ति नास्तिरूप हैं और जिनशासन अस्ति नास्ति का प्रगट करने वाला है।।1।।
और श्री वर्द्धमान तीर्थंकर जिनेश्वर के ताई नमस्कार होवे। कैसे हैं श्री वर्द्धमान, श्री कहिये अनन्त चतुष्टय विभूति सो जिनके वृद्धि को प्राप्त भई है। और कैसे हैं, शुद्ध ज्ञान के
अथ की ग्रन्थ की उत्पत्ति
अथानन्तर इ मैं हरिवंश नाम जो पुराण महा मनोहर उसे प्रकट करता हूँ। कैसा है यह पुराण, संसार विषे कल्पवृक्ष समान उत्कृष्ट है। कैसा है कल्पवृक्ष, औंडी है जड़ जिसकी और कैसा है यह पुराण, अति अगाध है जड़ जिसकी महादृढ़ है जिसकी जड़ जिनशासन है।
और कल्पवृक्ष और पुराण दोनों पृथ्वी विषे प्रसिद्ध हैं और कल्पवृक्ष तो बहुशाखा कहिये अनेक शाखा उनकर शोभित है और यह पुराण बहुशाखा कहिये अनेक कथा उन कर शोभित है।
और कल्पवृक्ष विस्तीर्ण फल का दाता है और यह पुराण महापवित्र पुण्य फल का दाता है और आप पवित्र है और कल्पवृक्ष भी पवित्र है। यह हरिवंश पुराण श्री नेमिनाथ के चरित कर महा निर्मल है।।51।।
जैसे द्युमणि कहिये सूर्य उसकी ज्योति कर प्रकाशे पदार्थ तिनको दीपक तथा मणि तथा खद्योत कहिये (पटवीजना) तथा विजुली यह लघु वस्तु भी अपनी शक्ति प्रमाण यथायोग्य प्रकाश करे हैं।52|
तैसे बड़े पुरुष केवली श्रुतकेवली उनकर प्रकाशित जो यह पुराण उसके प्रकाशि विषे अपनी शक्ति प्रमाण हम सारिखे अल्प बुद्धि भी प्रवर्ते है,
जैसे सूर्य के प्रकाशे पदार्थों को कहा दीपादिक न प्रकाशें तैसे केवली श्रुतकेवली के भाषे पुराण को कहा हम सारिखे न प्ररूपें अपनी शक्ति अनुसार निरूपण करें।153।।
लेखक | जिनसेनाचार्य-Jinsenachary |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 647 |
Pdf की साइज | 43 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
श्रीमद जिनसेनाचार्य विरचित संस्कृत ग्रंथ की न्यायतीर्थ श्रीयुत पण्डित गजाधर लाल कृत हिन्दी अनुवादित
श्रीमद जिनसेनाचार्य विरचित संस्कृत ग्रंथ की पण्डित प्रवर दौलतरामजी कृत हिन्दी अनुवादित (Credit to: Vitragvani.com)
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