कायाचिकित्सा सभी भाग – Kayachikitsa All Volume PDF In Hindi

‘काय चिकित्सा’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Kayachikitsa All Volume’ using the download button.

कायाचिकित्सा – Kayachikitsa PDF Free Download

काय चिकित्सा

भारतीय चिकित्सा विज्ञान मानवीय संवेदना, चेतना, तपस्या, साधना, अनुभूति, सस्कृति और मानव के अन्त करण से उद्भूत भावोमियो से उच्छरित ज्ञान का एक दिव्य प्रकाश-पुब्ज है |

जो जन-जन को आरोग्य संपन्न, पौरुष पराक्रम-साहस-शोर्य से समृद्ध और दया-प्रेम-करुणा-सहानुभूति आदि से मोत प्रोत बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

उसकी विलक्षणताएं अनिर्वचनीय हैं, जिन्हें बतलाने की चेष्टा करना आसमान को गिलाफ चढाने जैसा है।

भारतीय चिकित्सा विज्ञान हमारी सस्कृति और सभ्यता की वह आलोकमयी शिखा है, जिसकी शाश्वत ज्योति ने विश्व की समस्त मानवता का, सम्पूर्ण संस्कृतियो का मार्गदर्शन किया है ।

उस चिकित्सा विज्ञान के उत्कर्ष की कसौटी है उसका कायचिकित्सा अङ्ग । जिसकी बदौलत आज आयुर्वेद को विश्वव्यापी सम्मान और गौरव प्राप्त हो रहा है ।

प्रत्येक छिनमा अग्नि और समन्वयकारी किसानों का अधिष्ठाता एव इन क्रमाक की प्रकृटতি के द्वारा] आ रबल [को स्मिर रखनेवाला मामु ही है।

व कार्य नदियो द्वारा म्मादित होते है सबु का करना पतली बनहै। वायु का कोई नही होता, असा हाल दौर मुख्य स हारा किया जाता है।

नदी को ही जादा नही मानना चाहिए, अपित वादमाी शाह का अधिष्ठान तथा बात के लार्ड सदन का माध्यम है। जिस प्रकार विवली के साये में लिएर धारा प्रवाहित होती है, उसी प्रकार वाहनाडियो से प्राहित होता है।

मोदी वाले और ब बाममी है। नाही् को मध्य वना कराते शरीर और मन को सम्पूर्ण स्मिम का सम्मान करता है।

वायु ही समस्त शरीर में हुए जियो, मनी आदि उण् तचा हुचच पाद एव मस्तिष्क सदिश बी को अपने-अपने कार्य करने की शक्ति प्रदान का है।

चेष्टा कहानी (Motor nerves) के द्वारा] ने मे विविध कारक नदियों को उत्पन्न करना भी बाद का ही कार्य है मन का निवमन मौर मागसिक बुततियो का जत्था बाबू का ही कार्य है |

बाकी ही हक्वि से पेप्टायहना (Motor nerves) यह मशवरा ( Sensory nerves) द्वारा सकता कर्मेन्द्रियाँ एम नि अपने-अपने कार्यों में प्रवृत्त होती है इर की सम्पूर्ण आतुल को बाबु दी स्थान रखता है। बागी का महापौर ( जयन) बाके धीन है।

अभि का भी बाधा हो है। बापु ही जियो के आषि होकर स्वेद, मुग, पूरोप बादि अका बहि योप् कानिर्माण वा हीर की प्राप्ति करना है।

इस्त सभी कार्य भाढनाजियो के अधिग ह म गा से मारने का गहन पिया जाना उचित है। प्रणित या निप्पल कर्म करने के कारण सनेहु प्रकार के बरीरिक दका मानसिक रोगों को उत्पाता है।

वक्तव्य-शरी र की प्रत्येक ऐच्छिक या अनैच्छिक और समनन्‍्वयकारक क्रियाओ का अधिष्ठाता एवं इन क्रियाओं की प्रकृतिस्थता के द्वारा आयु और बल को स्थिर रखनेवाला वायु ही है। ये कार्य वातनाडियो द्वारा सम्पादित होते है, अत वायु से वातनाडियो का ग्रहण करना युक्तिसंगत है ।

वायु का कोई रूप नही होता, उसका ज्ञान शब्द और मुख्यत स्पर्श के द्वारा किया जाता है । वातनाडी को ही वात का रूप नही मानना चाहिए, अपितु वातनाडी वात का अधिष्ठान तथा बात के कार्य-सम्पादन का माध्यम है।

जिस प्रकार बिजली के तारो मे विद्युद्‌ धारा प्रवाहित होती है, उसी प्रकार वातनाडियो मे वात प्रवाहित होता है । वातनाडी आश्रय है और वात आश्रयी है । नाडीमण्डल को आश्रय बनाकर वात शरीर और मन की सम्पूर्ण क्रियाओ का सम्पादन करता है ।

वायु ही समस्त शरीर मे फैले हुए सिरा, धमनी आदि तम्त्र तथा हृदय, फुप्फुस्त, यकृत्‌ एव मस्तिष्क सदृश यन्त्रो को अपने-अपने कार्य करने की शक्तित प्रदान करता है ।

चेष्टावहनाडियो ( )/0007 प्रणए०४ ) के द्वारा पेशियों मे विविध प्रकार की गतियो को उत्पन्न करना भी वात का ही कार्य है । मत का नियमन और मानसिक वृत्तियों का उत्पादन वायु का ही कार्य है।

वायु की ही शक्ति से चेष्टावहनाडियों ( )(०० 7८४6४ ) तथा सज्ञावहनाडियो ( 8९7809 ग्रश५ए८5 ) के द्वार सकक कर्मेन्द्रियाँ एव ज्ञानेन्द्रियां अपने-अपने कार्यो मे प्रवृत्त होती है।

शरीर की सम्पूर्ण धातुओ को वायु डी यथास्थान रखता है। वाणी का व्यापार ( उदान ) वायु के अधीन है । अग्नि का भी प्रेरक वायु ही है।

वायु ही वातनाडियों के आश्रित होकर स्वेद, मूत्र, पुरीप आदि मलो का वहि क्षेपण, गर्भ की आकृति का निर्माण तथा दीर्घायु की प्राप्ति कराता है । उक्त सभी कार्य वातनाडियो के अधीन है, अत वात से वातनाडी का भ्रहण किया जाना उचित है ।

प्रकृपित वायु विपरीत कर्म करने के कारण अनेक प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक रोगो को उत्पन्न करता,है। सक्षेपतत वायु के स्थान और श्राकृत तथा वेक्षत कर्म॑ निम्न प्रकार के है–

प्राणवायु–इसका मुख्य केन्द्र शिर है। कण्ठ, हृदय तथा फुप्फुस तक इसका विस्तार रहता हे । इसकी विकृृति से हृदय तथा फुप्फुस के रोग होते हैं ।

उदानवायु–इसका प्रधान स्थान कण्ठ और फुप्फुस है। इससे फुप्फुसीय नाडी-जाल ( ऐणाए0/2४५ 90%४0$ ) का भी ग्रहण कर सकते हैं। इसमे विक्ृति होने से स्वसभेद तथा श्वास-प्रश्वास सम्बन्धी रोग होते है ।

लेखक विद्याधर शुक्ला-Vidhyadhar Shukla
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 356
Pdf साइज़14.8 MB
Categoryआयुर्वेद(Ayurveda)

Download

Related PDFs

ध्यान से चिन्ता निवारण PDF In Hindi

रस तंत्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह PDF In Hindi

जल चिकित्सा (पानी का इलाज) PDF In Hindi

Ayurveda Philosophy PDF In Hindi

Shatchakra Darshan Ayurved PDF In Hindi

कायाचिकित्सा – Kayachikitsa PDF Free Download

2 thoughts on “कायाचिकित्सा सभी भाग – Kayachikitsa All Volume PDF In Hindi”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!