आयुर्वेद की उत्तम किताब | Ayurved PDF By Baidyanath In Hindi

‘बैद्यनाथ आयुर्वेदिक’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Baidyanath Ayurved’ using the download button.

आयुर्वेद पुस्तक – Baidyanath Ayurved PDF Free Download

आयुर्वेद की उत्तम किताब

वीर में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है, जिस पर सेब का पाश्मण नही होता हो। नापुकल भी यह बात तापू होती। लायुमावत का मा बो कारणों से एक गोन रोग माना जाता

(१) राजमष्मा एक बौ्स्थापी रोग है, पर (२) न्लायु- बल्ल एक ऐसा स्थान है, जहां पर वह सम्मान गति से तथा काफी मुरमान पहुंचकर है।

किन्तु समयानुसार विवान और उपयुक्त शिमला में लाना- सत के बीमा के अनेक सोसियों की ससा गिया जा करता है।

माधुनिक एच्टिवानीरिक पौधों के प्ादुभवि के पूर्व यह मालिगामारणत मला मिड होती की। स्नान में रोग क बम सारत बाली-गरदा द्वारा होता है।

रीढ़ की राग कत जब सिंह हो जाती है, राज पद्मा के जीवान्श रीरम्व किी अरमा से । रक्त गुरुद्वारा। र कर ्नायुम्न म एक जाे हे।

जल भर पानी के कारण स्वामी क्षयजन्य मस्तिष्कावरण प्रदाह उसी हालत में होता है, जब कि शरीर का कोई अंग क्षय रोग से आक्ान्त हो ।

यह अक्सर बच्चों को होता है। वयस्कों को यह रोग अपेक्षाकृत कम होता है। क्षय-जन्य मस्तिष्कावरण प्रदाह की चिकित्सा तभी सफल हो सकती है, जब कि रोग निदान प्रारम्भ में ही सम्भव हुआ हो।

  • विचित्रवीर्य और अग्निवर्ण की कथाएँ यह राजयक्ष्मा विशेषांक (सम्पादकीय) आयर्वेदोऽमृतानाम्
  • यक्ष्मा का प्रसार और प्रतिकार राजयक्ष्मा की पहचान में उलझन राजयक्ष्मा का मूलोच्छेद
  • वैदिक काल में राजयक्ष्मा क्षयरोग और आयुर्वेद राजयक्ष्मा तथा यूनानी वैद्यक -राजयक्ष्मा के पर्याय तथा उसका इतिहास प्राकृतिक चिकित्सा और क्षय अनुलोम और प्रतिलोमक्षय यक्ष्मा
  • एक्स-रे द्वारा फुफ्फुस-क्षय का निदान यक्ष्मानिदान के विविध साधन यक्षमा विनिश्चिय
  • यक्ष्मा
  • एक्स-रे द्वारा फुफ्फुस-क्षय का निदान यक्ष्मानिदान के विविध साधन यक्ष्मा विनिश्चिय
  • पाश्चात्य दृष्टि से विविध क्षयों का विचार स्नायुमण्डल का राजयक्ष्मा राजयक्ष्मा और उसकी वैकारिकी
  • राजयक्ष्मा और आधुनिक नारी
  • यक्ष्मा की सफल चिकित्सा राजयक्ष्मा में स्वर्ण की प्राचीनता और विशेषता
  • राजयक्ष्मारोगोत्पादक भूताणु यक्ष्मा चिकित्सा और सिद्धौषधियाँ
  • चरकोक्त यक्ष्मा चिकित्सा

यदि चिकित्सक पूर्णतया जागरूक तथा क्षय जन्य मस्तिष्कावरण प्रदाह होने की सम्भावना से अवगत हो, तो वह इसका निदान प्रारम्भ में कर सकेगा।

महत्ता के कारण यह रोग ‘राजयक्ष्मा’ या रोगों का राजा कहा जाता है। साधारण चिकित्सकों के वश में आनेघाला यह रोग नहीं है। उनके पास न इस रोग की दवा होती है श्रौर न इसकी चिकित्सा के योग्य बुद्धि ही।

भारत में राजयक्ष्मा के बहुत से रोगी योग्य चिकित्सक और उचित श्रौषधों की प्राप्ति के अभाव से ही मर जाते हैं।

इन सब बातों को ध्यान में रखकर हमने राजयक्ष्मा’ पर यह विशेषांक प्रकाशित किया है। इसमें संकलित सभी पाठ-सामग्री आयुवेंद-शास्त्र के गम्भीर विद्वानों की लेखनी से निःसूत अमूल्य निधि हैं।

इनके पढ़ने से चिकित्सक वर्ग की तो ज्ञानवृद्धि होगी ही, सर्वसाधारण जनता को भी राजयक्ष्मा के विषय में इससे उत्तम जानकारी प्राप्त होगी। हमें दृढ़ विश्वास है कि हमारा यह प्रयास दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई राजयक्ष्मा की गति को प्रवरुद्ध करने में सफल सिद्ध होगा।

हम अपने प्रिय पाठकों, प्रान्तीय राज्य सरकारों, आयर्वेदीय संस्थाश्रों सर्वलाधा रण पुस्तकालयों और वाचनालयों से आशा करते हैं कि वे इस श्रद्धू को अपनाकर हमारे प्रयास को कृतार्थ करेंगे ।

राजयद्ष्मा

राजयक्ष्म का इतिहास पुराणों में और आयुर्वेद के प्राचीन संहिता ग्रन्थों में जो उल्लेख है, उससे यह ज्ञात होता है कि भारत में यह रोग बाहर से श्राया है।

सबसे पहले यह रोग व॒क्षों और ब्राह्मणों के राजा चन्द्रमा को हुआ था । यक्ष्म का नाम और उसके बहुत से भेद श्रथवेवेद में वणित हैं और उनकी चिकित्सा का वर्णन भी अ्रथवंवेद में है।

भन्त्र-चिकित्सा, औषध-चिकित्सा और यज्ञ-चिकित्सा झ्रादि प्रकार की यक्ष्म की चिकित्सा अथरवं बेद में मिलती है। मृग’ शब्द के समान यक्ष्मा’ शब्द भी सामान्य और विशेष श्र्थ का बोधक है।

क्रोध, यक्ष्मों* रोग, ज्वर और आतड़ू यद्यपि पर्याय हैं तथापि यक्ष्मा’ शब्द रोग विशेष ग्रर्थात्‌ राजयक्ष्मा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। श्रन्यत्र भी इस श्रथ में बहुधा प्रयुक्त हुआ्ना है।

व्यायाम (श्रम), अनशन, चिन्ता, रूक्ष भोजन आ्रादि से शरीर के अतिसूक्ष्म मांसावयव विनष्ट होते हें। प्रतिदिन की निद्रा, सुखासिका, सन्‍्तर्पण, अ्चिन्तन, स्निग्धभोजन आदि से उनकी पुनः पूर्ति होती रहती है।

कारण शरीर पर उसका दुष्प्रभाव नहीं होता। स्त्री संभोग से उत्पन्न क्षीणता के विषय में भी यही बात है। स्त्री संभोग से जो शुक्र क्षय होता है, दुग्घ, घृत आदि वृष्यः पदार्थों के उचित मात्रा में सेवन करने से उसकी पूर्ति शीघ्र हो जाती है।

इसलिये उसका शरीर पर दुष्प्रभाव नहीं होता । यदि काम, चिन्ता, अनशन, रूक्षाशन, अल्पाशन ग्थवा प्रमिताशन अति मात्रा में चलते रहें तो यह क्षय रोग के कारण होकर आयु को अकाल में ही समाप्त कर देते हें।

जिस देश में घी, दूध, मक्खन, मलाई आग्रादि स्निग्ध भोजन की बहुतायत होती है और मनुष्यों की पाचन-शक्ति सम-अवस्था में रहती है, उस देश के मनुष्यों को क्षय रोग नहीं होता।

वहां मनुष्यों का शरीर हुृष्ट-पुष्ट और बलवान होता है। अतएवं किसी व्याधि का शीघ्र ग्राक्मण उनके शरीर पर नहीं हो पाता । यक्ष्मा-प्रसार का कारण

क्षय अथवा राजयक्ष्मा का प्रसार यह सिद्ध करता है कि देश में सम्पत्ति और सद॒गुणों का अभाव है। चरकोक्‍्त क्षय के कारणों की सूची को देखने से यह तो प्रकट ही है कि यह रोग मनुष्यों को और उन्हीं देशों में फेलता है, जहां के मनुष्यों को श्रेष्ठ खाद्य पदार्थों की अत्यन्त कमी में कठिन काम करना पड़ता है।

पेट भरने की चिन्ता में कड़कड़ाती धूप और लुझोों में काम करने पर भी रूक्ष, ग्रल्प और प्रमित ही भोजन मिले और बच्चों की उत्पत्ति का तांता बंधा रहे तो देश में राजयक्ष्मा का प्रसार स्वाभाविक ही है।

लेखक श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन – Shree Baidyanath Ayurved Bhawan
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 283
PDF साइज़ 40.9 MB
Category आयुर्वेद(Ayurveda)

बैद्यनाथ आयुर्वेद की उत्तम किताब – Ayurved Book By Expert Book/Pustak PDF Free Download

4 thoughts on “आयुर्वेद की उत्तम किताब | Ayurved PDF By Baidyanath In Hindi”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!