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रसतंत्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह – Ras Tantra Sar & Sidh Prayog Sangrah Book/Pustak PDF Free Download
रसतन्त्रसार व सिद्धप्रयोग संग्रह
सिद्ध प्रयोग देना यह इस अन्धका मुख्य विषय है। अनेक धातु-उपधातुओ की भस्म, विविध पारदकल्प, विविध वनीपधियो के मिश्रणासे बनाई हुई गुटिका आदि ओषधियों, क्षार, धृत-तैनादि द्रव्योको नाना
प्रकारके औपधोके ससकार देकरू सिद्ध की हुई ओषधिय इत्यादि सिद्ध प्रयोग है। इन प्रयोगोमेसे अनेकोको अनेक ओपचियोके मिश्रण से तैयार किया जाता है।
इन श्रोपधि-द्रव्योमें अनेक प्रकार के गुणोके परमाणु मिश्रित रहते है। मिन्न-मिश्न द्रव्योमें भिन्न-भिन्न गुण का प्राधान्य रहता है।
इस हेतुसे कोन कोन द्रव्य परस्पर सहायक हैं और कौन-कौन विरोधी है, यह बिना शास्त्राभ्यास नहीं जाना जाता । विरोधी ओपधियोका मिश्रण बनाने पर कोई समय तुरन्त और कोई समय भविध्यमें हानि पहुंचती है।
विरोधी प्रोपधियो (एन्टगोनिस्ट्स-Antagonists.) की क्रिया परस्पर एक दूसरेसे विपरीत होती है। इनमें कितनीक वीर्य विरोधी और कितनीक संयोग-विरोधी है। उदाहरण दूध और दही, शराब और कुचिला,
अफीम ओोर सूची यूटी, कुचिना यर कपूर, इनका वीर्य परस्पर विरुद्ध होने से इनका मिशा नहीं कराया जाता।
इस तरह अफीम और सूची पूटी, पारोकून और सूचीबूटी, इनकी किया परस्पर विरुद्ध होनेसे अफीम और परीकूनके चिप-प्रकोपमें सूचीबूटी तथा सूची टीके विप-प्रकोपरे अफीम हितावह होनी है ।
इस तरह धतूरा और पद्माकाछकी किया बिरुद्ध है। धनूराका भूम्रपान करने पर उबाक होती है और कफ गिरता है इसके विपरीत मये पद्मकाप्टका फाण्ट या चूर्ण लेने पर उवा के ओर वमन बन्द हो जाती है ।
अतः ये सब परस्पर विरोधी हैं। इस प्रकारकी विरोधी बोपथियो के मित्रगासे लाभ के स्थान पर हानि पहुंच जानेकी सभावना रहती है।
अतः मनगदन्त रीनिसे प्रोपधियोको मिलाकर प्रयोग तैयार नहीं किये जाते । यदि नया प्रयोग करना हो, तो निम्न पकारकी ओषधियों को मिलाकर तैयार करना चाहिये:1-रोगनाशक एक अधवा यधिक मुरुपयोपधियों।
मूर्क करोति वाचालं पड्ट लडट्डबते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे प्रमानन्द्माधवम् ॥
अजानतिमिरान्धस्यथ जानाज्जननशलाकया ।
चन्नुस्न्मीलितं येन तस्मे श्री गुरवे नमः ॥
श्री मह्माप्रम॒ कल्योण रायकी निस्सीम कृपासे ‘रसतन्जसार व सिद्ध योगसंप्रद’ के चतुर्थ संस्फरणकी १४० ० प्रति ग्रन्य छपकर तेयार होनेके पहले हो त्रिक गई थों | जिस से यह पद्चम सस्करण ट&त्वर तेंयार किया है।
चतुर्थ संस्करणके समान इस पंचम संस्फरणको भी पूज्य स्वामोजी महाराज श्री कृष्णानन््दजीने आद्योगन्त देखफ़र सशोधन ओर परिवद्ध न कर दिया है। इस हेतुसे पहले रही हुई कितनीक अशुद्वियों ओर न्यूनता दूर होगई हैं |
दृष्टि दोषसे कुछ भूल रह गई है, या नकल करने वालोके प्रमाद ओर कम्मोजीटरोंकी असमभसे नूतन उत्तन्न हुई हों, उनके लिये पाठऊसे मैं क्षमाप्राथों हूं । इन सबको अगले संस्करण र्मे सुधार लेनेका प्रयत्म किया जायगा |
इस संस्करण मे प्रयोग नही बढ़ाये गये। सत्षेयम लिखा हुआ गुण विवेचन किसी-किसी प्रयोगमे बढ़ाया गया है| चत॒र्थ संस्करणकी अपेक्षा इस सल्करणमें ३५-४० प्ृष्ठोंका लेख बढ़ा दे, किन्त परिमाषा प्रकरणमें से २० वृष्ठोंका लेख कम करने से प्रष्ठ संख्यामे केवल १६ प्रष्ठोंकी बद्धि हुई है ।
वत्तमानमें छुपाई आदिका खर्च ओर कागजोंका मूल्य अत्यधिक बढ़ गया है, एवं देशी कागज समय पर न मिलनेसे प्रन्थम आवा अमेरिकन कागज ‘क्षगाना पढ़ा | जिसका मूल्य देशी कागजोकी अपेक्षा पौने शो गुना है।
इन हेतुश्नोसे निस्षायवश मूल्य चतुर्थ सस्करणसे भी थोड़ा बढ़ाना पड़ा है । अनेक ग्राइकोसे मूल्य पहले से मिल गया था ओर जल्दी ग्रन्थ तेयार कराना * . था; किन्तु कागज मिलनेमें देर होनेसे प्रऊाशनमे देर हुई है |
क् इस अ्रन्यम दिये हुए, प्रयोगोके अतिरिक्त कितनेक अनुभूत प्रयोग शेष रहे हैं । जिनको रसतन्त्रसार व दिद्वप्रयोगसग्रह द्वितीय खए्ड ( अलग गअन्थ ) / झैससे प्रकाशित किया है।
उसका संशोधन व परिवद्ध न श्री० प० राधघाक्षण्ण जी द्विवेदी आयुवेद-भूपण, प्रिसिपल-गवर्नमेण्ट आयुर्वेदिक कॉलेज-हेद्राबाद | ईैदिज्ाम स्टेट ) ने तथा श्री० राजवेय पं० रामचल्धजी शर्मा; अजमेरनेकिया है.
कृप्ण-गोपाल धर्माथ औपधालय से लाभ लेने वाले रोगियोंकी संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है । एव बाहरसे कितनेक रोगी आकर यहाँ रहते भी हे जिससे कल्याण चिकित्सा मदिस्के साथ कितनेक कच्चे मकान नये बनाये हैं।
इसके अतिरिक्त मद्दायुद्धकी समाप्ति होने पर मी मेंहगाई चहुत बढ़ गई है | इस हेतुसे भी चिकित्सा मन्दिरका खर्चे अत्यधिक बढ़ गया है। एवं कल्याण चिकित्सामन्दिके साथ आतरालय ( 08छञात्ों ) के भवन निर्माण का प्रारम्भ होगया है, तथा पाठशाला प्रारम्भ करानेका विचार है |
उसके लिये ८००००) +- २००००) मिलकर एक लक्ष रुपयोंकी आवश्यकता है | इसमेसे ३००००) अमी तक द/न रुपसे मिला है। ( जिनके नाम सामार रिपोर्टमे प्रकाशित किये हैं ) शेप रकम ७००००) की आवश्यकता है।
इसके लिये धर्मप्रेमी हिताचिन्तक सज्जनोके प्रति नम्न निवेदन है कि; वे अपनी . ओरसे होसके उतनी अधिक सहायता प्रदान करें ओरपरिचित सज्जनोंसे दिलानेकी कृपा करे ।
इसके अतिरिक्त निष्काममाबसे सेवा शुश्रपा करने वाले . स्वयंसेबकोरी मी आवश्यकता है, यह महाप्रभु कल्याण रायकी प्रेस्णापर अव लम्बित है । अन्र आतुरालयकी स्थापना की है, इससे समाजको २ प्रकार का लाभ मिलेगा |
१-इसमे आयुर्वेदिक उपचारों को ही प्रधानता सहेगी( एलोपेथिक ओषधियों का उपयोग बहुत कम होगा ) इस हेतुसे विविध रोगो पर नूतन-नूतन आयुर्वेदिक प्रयोगों का अनुभव मिलता (रहेगा, जो आयुवेद साहित्य की वृद्धि ‘ करेगा ।
२-आयुर्वेदिक विद्यालयमे अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को शास्त्रबोध के अतिरिक्त अनुभव, जान मिलता रहेगा, घस ओपधघालयण में व्यवहुत नीतिके अनुसार;रोगियों की सेवा सप्रेम सद्भाव पूर्वक करना सिखेंगे, नगरोंके मोहमय वातावरणसे बच जायेंगे और भविष्यमे भी गआमोमें रहकर सहर्ष सेवा कर सकेंगे ।
भारतका उद्धार ग्रामोारसे ही होह सकेगा, इस बातको विद्वानोंने स्वीकार किया हैं। श्रत. ग्रामोकी सेवाकी पूर्ण आवश्यकता है ।
इस कार्यमें इस आतुरालय और विद्यालयके प्रारम्भसे उत्तम प्रकाररी सहायता मिलेगी जो अच्य प्रामोके लिये अनुकरणीय होगी। अत, इस सेवा कार्यमे सहायता करनेके लिये सब सज्जनोंसे नम्न निवेदन है
लेखक | कृष्ण गोपाल-Krishna Gopal |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 922 |
Pdf साइज़ | 51.2 MB |
Category | आयुर्वेद(Ayurveda) |
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हमे कुछ वटी वा रस वा भस्म बनाना है
Ita a very useful book for practitioners of Ayurveda. By