सुखसागर श्रीमद भागवत के बारह स्कंध | Sukhsagar Shrimad Bhagavat PDF In Hindi

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सुखसागर श्रीमद भागवत के बारह स्कंध – Sukhsagar Shrimad Bhagavat PDF Free Download

सुखसागर श्रीमद भागवत के बारह स्कंध

सनकुमारजी बोले यह बात तुमने बहुत अच्छी पूंछी सुनो इस सप्ताहयज्ञ को बीच महीने भादों व कार व कार्तिक व अगहन के सुनना बड़ा पुण्य है सिवाय इसके जब इच्छा हो और कोई पण्डित व्यासजी अच्छे मिलजावें तब सुनै शुभकर्म करना किसी समय मना नहीं है

पर जो कोई सप्ताह सुनने की इच्छा करे उसे चा- हिये कि अच्छा मुहूर्त पूंछकर अपने इष्ट मित्रों को कहला भेजे कि हमारे यहां सप्ताह यज्ञ होगा आप लोग भी सुननेवास्ते आना व जो लोग कि विरक्त हो उनको भी इस यज्ञ में बुलाना उचित है व जो स्थान घरमें या बाग या तीर्थ पर अच्छा हो

वह कथा सुननेवास्ते ठहराव और वह जगह चांदनी व केला व बन्दनवार आदि से अच्छीतरह अलंकृत करावे जिसतरह विवाहादिक व यज्ञ में तैयार कराते हैं और व्यासजी के बठने को बहुत अच्छा ऊंचा सिंहासन रखवादे व बैष्णव लोगों को जो कथा सुनने आवें उनकेवास्ते पृथक् पृथक्

आसन बिछ्वादे व प्रात समय से व्यासजी कथा बांचना आरम्भकरें व श्रोता लोग स्नान व सन्ध्या करके कथा होने से पहिले वहां आवे व चित्त लगाकर कथा सुने व पहिले दिन मुख्य मालिक कथा सुननेवाले को गणेशजी की पूजा करना चाहिये जिसमें बीच सप्ताह यज्ञ के कोई विघ्न न हो व

एक ब्राह्मण विद्वान् को विष्णुसहस्रनाम का बरण सात दिनवास्ते देकर बैठाल देना उचित है कि वह ब्राह्मण शालग्राम की पूजा व विष्णुसहस्रनाम का पाठ करके एक २ नाम लेकर ठाकुरजी पर तुलसीदल चदावे व मुख्य श्रोता पहिले दिन पूजा व्यासजी व पोथी श्रीमद्भागवत की स्पैमन से करके

अपना दास समझ कर श्रीमद्भागवत यज्ञ आरम्भ करके मेरी इच्छा पूर्ण कीजिये जब व्यासजी कथा कहें तब मन अपना संसारी काममें न लगावे और कथा सुनने उपरान्त परमेश्वरका भजन भी उस सभामें करना चाहिये व चार घड़ी दिन रहे तक कथा सप्ताह की सुनाकरे व व्यासजी को भी उचित है

चोथा अध्याय ॥

व्यासजी का महाभारत और सत्रहपुराण सब वेदों का तत्व बनाना शीनकादिक ऋषीश्वरों ने सूतजी से कहा आपकी आयुष परमेश्वर बहुत बड़ी 20 करें अवतारों के हाछ सुननेसे मन हमलोगों का बहुत प्रसन्नहुआ अब चाहते हैं कि जो भागवत व्यासजी से आपने सुनाथा और उसमें सब लीछा और महिमा श्याम/0 सुन्दर की लिखी हैं वह हमको सुनाओ और कौनसे युग में किसस्थानपर

शुकदेवजी ने वह कथा राजापरीक्षित को सुनाई थी उसका हाल कहो किस वास्ते कि राजापरी४ क्षित को सांपके काटने का डरथा व हम छोग कालरूपी संसार से जिसमें मृठ्ु को अवधि नहीं होती डरते हैं और एक बातका हमको बड़ा सन्देह है जो शुकदेवजी 77 इतने विरक्त रहकर एक ज्ञण कहीं नहीं ठहरते थे वह किस तरह सात दिन राजापरीक्षित के पास कथा सुनाने के वास्ते रहे ओर झुकदेव महाराज कोपीन पहिने विभूति छूगाये अवधृत बने रहते थे उनको राजापरीक्षितने किस तरह पहिंचाना कि यही

शुकदेव हैं यह बात सुनकर सूतपोराणिकने कहा कि दापरके अन्तर्मे वेदव्यास हमारे गुरू नारायणरूपने यह विचारकर पराशरमुनि ओर सत्यवती से अवतार लिया कि सतयुग में आयुर्वलछ मनुष्य की छाख वर्ष व त्रेतामें दशहज़ार व द्वापर में हजार वर्ष होकर जब तक आयुबेल पूर्ण नहीं होती थी

तब तक वह नहीं मरता था सो कहि0 युग मं आयुरबे मद॒ष्य की एकसो बीस वर्ष की होकर सब छोग पाप करने से उसके १९ भीतर मरजोवेंगे दूसरे युग में मठ॒ष्य लोग आयुव् अपनी बीच वेद पढ़ने ओर यज्ञ 6 ओर तप करने में बिताते थे सो दीघायु होने ओर शुभ कमे करने से वह काम अच्छी परह सम्पूर्ण होकर उनको स॒क्ति पदार्थ मिलता था ओर कलियुगवासी थोड़ी आयुष होने से तप करने ओर वेद पढ़ने नहीं सक्ते ओर इतना धन भी नहीं रखते जो यज्ञ

लेखक बाबु मखनलाल खत्री-Babu Makhanlal Khatri
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 905
Pdf साइज़158.2 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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