दो बैलों की कथा – Do Bailon Ki Katha Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला हिलाकर चलते, उस वक्त हरएक की यही चेष्टा होती थी कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे।
दिनभर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते, तो एक-दूसरे को चाट चाटकर अपनी थकान मिटा लिया करते।
नॉद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नाँद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता, दूसरा भी हटा लेता था।
संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे क्यों भेजे जा रहे हैं; समझे, मालिक ने हमें बेच दिया।
अपने यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया के घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया।
पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-वाएँ भागते: पगहिया पकड़कर आगे से खींचता. तो दोनों पीछे को जोर लगाते। मारता तो दोनों सौंग नीचे करके हुँकारते।
अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दो होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी।
अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था और काम ले लेत। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने चारे की शिकायत नहीं की।
तुमने जो खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया?
संध्या-समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे लेकिन जब नॉद में लगाए गए, तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिल भारी हो रहा था।
जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। वह नया घर, नया गाँव, नए आदमी, उन्हें बेगानों-से लगते थे।
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लेखक | प्रेमचंद – Premchand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 22 |
Pdf साइज़ | 5 MB |
Category | बाल पुस्तकें (Children) |
दो बैलों की कथा – Do Bailon Ki Katha Book/Pustak Pdf Free Download