अध्यात्म रामायण | Adhyatma Ramayana Gita Press PDF In Hindi

अध्यात्म रामायण – Adhyatma Ramayan Sanskrit PDF Free Download

अध्यात्म रामायण बालकाण्ड

जिन चिन्मय अविनाशी प्रभुने पृथिवीका भार उतारनेके लिये देवताओंकी प्रार्थनासे पृथिवीतलपर सूर्यवंशमें माया-मानवरूपसे अवतार लिया और जो राक्षसों के समूहको मारकर तथा संसारमें अपनी पाप विनाशिनी अविचल कीर्ति स्थापितकर पुनः अपने आद्य ब्रह्मस्वरूपमें लीन हो गये, उन श्रीजानकीनाथका मैं भजन करता हूँ ॥ १ ॥

जो विश्वकी उत्पत्ति, स्थिति और लय आदिके एकमात्र कारण हैं, मायाके आश्रय होकर भी मायातीत हैं, अचिन्त्यस्वरूप हैं, आनन्दघन हैं, उपाधिकृत दोषोंसे रहित हैं तथा स्वयंप्रकाशस्वरूप हैं उन तत्त्ववेत्ता श्रीसीतापतिको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २ ॥

जो लोग इस सर्वपुराणसम्मत पवित्र अध्यात्म रामायणका एकाग्र चित्तसे नित्य पाठ करते हैं और जो इसे सुनते हैं, वे पापरहित होकर श्रीहरिको ही प्राप्त करते हैं ॥ ३ ॥

यदि कोई संसार-बन्धनसे मुक्त होना चाहता हो तो वह अध्यात्मरामायणका ही नित्य पाठ करे। जो कोई मनुष्य इसका नित्य श्रवण करता है, वह लाखों-करोड़ों गोदानका फल प्राप्त करता है ॥ ४ ॥

श्रीशंकररूप पर्वतसे निकली हुई रामरूप समुद्र में मिलनेवाली यह अध्यात्मरामायणरूपिणी गङ्गा त्रिलोकीको पवित्र कर रही है ॥ ५ ॥

एक समय कैलासपर्वतके शिखरपर सैकड़ों सूर्योके समान प्रकाशमान शुभ्र भवनमें रत्नसिंहासनपर ध्याना वस्थित बैठे हुए, सिद्ध-समूहसेवित, नित्यनिर्भय, सर्व पापहारी आनन्दकन्द देवदेव भगवान् त्रिनयनसे इनके वामा में विराजमान श्रीगिरिराजकुमारी पार्वतीने भक्तिभावसे नम्रतापूर्वक ये वाक्य कहे ॥ ६ ॥

श्रीपार्वतीजी बोलीं- हे देव! हे जगन्निवास ! आपको नमस्कार है, आप सबके अन्तःकरणोंके साक्षी और परमेश्वर हैं। मैं आपसे श्रीपुरुषोत्तम भगवान्का सनातन तत्त्व पूछना चाहती हूँ,क्योंकि आप भी सनातन हैं ॥७॥

महानुभावलोग जो अत्यन्त गोपनीय विषय होता है तथा अन्य किसीसे कहनेयोग्य नहीं होता उसे भी अपने भक्तजनोंसे कह देते हैं । हे देव ! मैं भी आपकी भक्त हूँ, मुझे आप अत्यन्त प्रिय हैं। इसलिये मैंने जो कुछ पूछा है वद्द वर्णन कीजिये ||८||

जिस ज्ञानके द्वारा मनुष्य संसार-समुद्रसे पार हो जाते हैं, उस भक्ति और वैराग्यसे परिपूर्ण प्रकाशमय आत्मज्ञानका वर्णन आप विज्ञानसहित इस प्रकार खल्प शब्दोंमें कीजिये, जिससे मैं स्त्री होनेपर भी आपके वचनोंको ( सहज ही) समझ सकूँ ॥ ९ ॥

हे कमलनयन ! मैं एक परम गुह्य रहस्य आपसे और पूछती हूँ, कृपया आप पहले उसे ही वर्णन करें । यह तो प्रसिद्ध ही है कि अखिल-लोक-सार श्रीरामचन्द्रजीकी विशुद्ध भक्ति संसार-सागरको तरनेके नौका है ॥१०॥

संसारसे मुक्त होने के लिये भक्ति ही प्रसिद्ध उपाय है । उससे श्रेष्ठ और कोई भी साधन नहीं है; तथापि आप अपने त्रिशुद्ध वचनों से मेरे हृदयकी संशय-ग्रन्थिका छेदन कीजिये ॥११॥

लेखक Valmiki
भाषा हिन्दी, संस्कृत
कुल पृष्ठ 406
PDF साइज़308.6 MB
CategoryReligious

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