आयुर्वेदीय कोश – Encyclopaedical Ayurvedic Dictionary Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
के उप-भी जो कर पुधा पर भोजन में उसको गरन २-२ में ३-३ घंटा के अन्तर हलके रोगी को शीघ्र है और जठराग्नि प्रदीप्त देह होता जाना है। अनः पका कर शीतल किया दूध उत्तम ३ ग्रेन प्रति दूध में मिलाकर देना उपयोगी होता है।
पायभर दूध में ३० युद मधुर पानी ) मिलाकर देना है। यदि दूध से हो तो के स्थान में अरारोट या पका कर मूंग के दाल का पानी, दाल भात, शोरया चायल, नथा पाय रोटी भी दे सकते हैं।
क्योंकि पहली दशा में धारक औपध द्वारा मलनिरोध करने पर पेट फूलना, और शोध उत्पन्न हो सकते परंतु दम्त होजानेपर भी यदि रहे वा रोगी शिशु, वृद्ध अथवा हो तो पहिले ही मे धारक का प्रयोग करना चाहिए ।
यदि रोगी शूल पानाह और प्रसेक में पीड़ित ; हो तो उसे कराना हित और यदि वृद्धि को प्राप्त होगए हों तथा विदग्ध पकापक मिलकर अतिमार उत्पन्न करते हो तो उन सब अति- ‘
मार को उत्पन्न करने में समुद्यत और यरन ही चलने में प्रवृत्त हुए में पाचनादि किसी देना चाहि अजवायन इन मयको अनार के करके चन अनुप (२ घी सुहागा इन की गोलियाँ का प्रयोग करके हितकारी का ही सेवन कराना उपयोगी
मल निकलने से उदर में अफरा, भारीपन, शूल तथा स्तिमिता उम्पन्न हो अथवा उदर में कोई । ‘लोभक द्रव्य या अजीर्ण था सड़ा गला चाहार] हो तो सर्व प्रथम किसी सामान्य मृदुभेदक यौपध को देकर पेट को साफ करना चाहिए।
फिर दस्तों को ‘ रोकने के लिए धारक औषध का व्यवहार करना उचित है । पवानिसार के पके हुए होने को दशा में प्रथम यार बार मृदु धारक और याद को बलवान धारक औपध व्यर्थ हार करनी चाहिए |
लेखक | बाबू रामजीत सिंह – Babu Ramjeet Singh वैद्यराज बाबू दलजीत सिंह- Vaidyaraj Babu Daljeet Singh |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 918 |
Pdf साइज़ | 25 MB |
Category | आयुर्वेद (Ayurved) |
आयुर्वेदीय कोश प्रथम खंड – Encyclopaedical Ayurvedic Dictionary Book/Pustak PDF Free Download