विष्णु पुराण | Vishnu Puran PDF In Hindi

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सम्पूर्ण प्राचीन विष्णु पुराण – Vishnu Purana PDF Free Download

विष्णु पुराण के भाग (Parts of Vishnu Purana)

विष्णुपुराण छः भागों या अंशों में विभाजित है जो इस प्रकार हैं:

· प्रथम अंश: ‘विष्णुपुराण’ के प्रथम अंश में सर्ग और भू-लोक का उद्भव, काल का स्वरूप तथा ध्रुव, पृथु व भक्त प्रह्लाद का विवरण दिया गया है।
· द्वितीय अंश: द्वितीय अंश में तीनों-लोक के स्वरूप, पृथ्वी के नौ खण्ड, ग्रह नक्षत्र, ज्योतिष व अन्य का वर्णन किया गया है।
· तृतीय अंश: तृतीय अंश में मन्वन्तर, ग्रन्थों का विस्तार, गृहस्थ धर्म और श्राद्ध विधि आदि का महत्त्व बताया गया है।
· चतुर्थ अंश: चतुर्थ अंश में सूर्य व चन्द्रवंश के राजा तथा उनकी वंशावलियों का वर्णन किया गया है।
· पंचम अंश: पंचम अंश में भगवान श्री कृष्ण के जीवन चरित्र की व्याख्या की गई है।
· छठा अंश: छठे अंश में मोक्ष तथा समाप्ति का विवरण देखने को मिलता है, जो हिन्दू धर्म का परम लक्ष्य होता है।

विष्णुपुराण के मुख्य संदेश (Teachings of Vishnu Puran in Hindi)

विष्णुपुराण में स्त्री, साधु व शूद्रों के कर्मों आदि का वर्णन किया गया है। इस पुराण में विभिन्न धर्मों, वर्गों, वर्णों आदि के कार्य का वर्णन है और बताया गया है कि कार्य ही सबसे प्रधान होता है। कर्म की प्रधानता जाति या वर्ण से निर्धारित नहीं होती। इस पुराण में कई प्रसंगों और कहानियों के माध्यम बड़े स्तर पर यही संदेश देने का प्रयास किया गया है। 

नवकार मंत्र – Navkar Mantra

नवकार मंत्र ही महामंत्र, निज पद का ज्ञान कराता है।निज जपो शुद्ध मन बच तन से, मनवांछित फल का दाता है॥1॥नवकार…

पहला पद श्री अरिहंताणां, यह आतम ज्योति जगाता है।यह समोसरण की रचना की भव्यों को याद दिलाता है॥2॥नवकार…

दूजा पद श्री सद्धाणं है, यह आतम शक्ति बढ़ाता है।इससे मन होता है निर्मल, अनुभव का ज्ञान कराता है॥3॥नवकार…

तीजा पद श्री आयरियाणां, दीक्षा में भाव जगाता है।दुःख से छुटकारा शीघ्र मिले, जिनमत का ज्ञान बढ़ाता है॥4॥नवकार…

चौथा पद श्री उवज्ज्ञायणं, यह जैन धर्म चमकता है।कर्मास्त्रव को ढीला करता, यह सम्यक्‌ ज्ञान कराता है॥5॥नवकार…

पंचमपद श्री सव्वसाहूणं, यह जैन तत्व सिखलाता है।दिलवाता है ऊँचा पद, संकट से शीघ्र बचाता है॥6॥नवकार…

तुम जपो भविक जन महामंत्र, अनुपम वैराग्य बढ़ाता है।नित श्रद्धामन से जपने से, मन को अतिशांत बनाता है॥7॥नवकार…

संपूर्ण रोग को शीघ्र हरे, जो मंत्र रुचि से ध्याता है।जो भव्य सीख नित ग्रहण करे, वो जामन मरण मिटाता है॥8॥नवकार…

विष्णु पुराण गीता प्रेस

श्रीसूतजी बोले—मैत्रेयजीने नित्यकर्मोंसे निवृत्त हुए मुनिवर पराशरजीको प्रणाम कर एवं उनके चरण छूकर पूछा –॥१॥ “हे गुरुदेव! मैंने आपहीसे सम्पूर्ण वेद, वेदांग और सकल धर्मशास्त्रोंका क्रमश: अध्ययन किया है॥२॥

हे मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपासे मेरे विपक्षी भी मेरे लिये यह नहीं कह सकेंगे कि ‘मैंने सम्पूर्ण शास्त्रोंके अभ्यासमें परिश्रम नहीं किया’ ॥ ३ ॥ हे धर्मज्ञ! हे महाभाग ! अब मैं आपके मुखारविन्दसे यह सुनना चाहता हूँ कि यह जगत् किस प्रकार उत्पन्न हुआ और आगे भी (दूसरे कल्पके आरम्भमें) कैसे होगा ? ॥४॥

तथा हे ब्रह्मन्! इस संसारका उपादान-कारण क्या है? यह सम्पूर्ण चराचर किससे उत्पन्न हुआ है? यह पहले किसमें लीन था और आगे किसमें लीन हो जायगा? ॥५॥

इसके अतिरिक्त [आकाश आदि] भूतोंका परिमाण, समुद्र, पर्वत तथा देवता आदिकी उत्पत्ति, पृथिवीका अधिष्ठान और सूर्य आदिका परिमाण तथा उनका आधार, देवता आदिके वंश, मनु, मन्वन्तर,[बार-बार आनेवाले] चारों युगोंमें विभक्त कल्प और कल्पोंके विभाग, प्रलयका स्वरूप, युगोंके पृथक्-पृथक् सम्पूर्ण धर्म, देवर्षि और राजर्षियोंके चरित्र, श्रीव्यासजीकृत वैदिक शाखाओंकी यथावत् रचना तथा ब्राह्मणादि वर्ण और ब्रह्मचर्यादि आश्रमोंके धर्म – ये सब, हे महामुनि शक्तिनन्दन! मैं आपसे सुनना चाहता हूँ ॥ ६-१० ॥

हे ब्रह्मन्! आप मेरे प्रति अपना चित्त प्रसादोन्मुख कीजिये जिससे हे महामुने! मैं आपकी कृपासे यह सब जान सकूँ” ॥ ११ ॥

लेखक Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 558
PDF साइज़1.1 MB
CategoryReligious
Source/Creditsarchive.org

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