नारद भक्ति सूत्र | Narad Bhakti Sutra PDF In Hindi

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नारद भक्ति सूत्र – Narad Bhakti Sutra Pdf Free Download

नारद और शांडिल्य भक्ति सूत्र

प्रथम अध्याय (श्लोक अर्थ सहित)

अथातो भक्तिजिज्ञासा ॥ 1 ॥

अब भक्ति-तत्त्व पर विचार करें।

सा परानुरक्तिरीश्वरे ॥ 2 ॥

वह ईश्वर के प्रति परम अनुरागरूपा है ।

तत्संस्थस्यामृतत्वोपदेशात् ॥ 3 ॥

परा भक्ति में जिसकी संस्थिति है, वह अमृतत्वको प्राप्त होता है, ऐसा श्रुति का कथन है ।

ज्ञानमिति चेन्न द्विषतोऽपि ज्ञानस्य तदसंस्थितेः ॥ 4 ॥

भगवत्प्राप्ति का साधन ज्ञान है, ऐसा मानना ठीक नहीं है; क्योंकि ज्ञान तो द्वेष रखने वाले शत्रुको भी होता है, किंतु भगवान् में उसकी संस्थिति नहीं होती।

तयोपक्षयाच्च ॥ 5 ॥

तथा भक्ति के विकास से ज्ञान का क्षय होता है ।

द्वेषप्रतिपक्षभावाद्रसशब्दाच्च रागः ॥ 6 ॥

द्वेष भाव भक्ति का विरोधी भाव है, क्योंकि भक्ति रागस्वरूपा है एवं परम रसमय है ।

न क्रिया कृत्यनपेक्षणाज्ज्ञानवत् ॥ 7 ॥

ज्ञान अपने प्रयत्न से उपार्जित होता है, किन्तु भक्ति क्रिया की अपेक्षा नहीं रखती।

अत एव फलानन्त्यम् ॥ 8 ॥

इसीलिये भक्ति का फल दिव्य एवं अनन्त है ।

तद्वतः प्रपत्तिशब्दाच्च न ज्ञानमितरप्रपत्तिवत् ॥ 9 ॥

ज्ञानवान् को भी शरणागत होना पड़ता है; अतः भगवद् शरणागति भी ज्ञान से भिन्न है (किन्तु भक्ति में तो शरणागति निहित ही है ।)

सा मुख्येतरापेक्षितत्वात् ॥ 10 ॥

वह भक्ति मुख्य है; क्योंकि ज्ञानयोग आदि साधन उसकी अपेक्षा रखते हैं ।

प्रकरणाच्च ॥ 11 ॥

शास्त्रों से भी भक्ति की ही मुख्यता सिद्ध होती है ।

दर्शनफलमिति चेन्न तेन व्यवधानात् ॥ 12 ॥

कुछ लोगों का मानना है कि दर्शन ही भक्ति का अन्तिम फल है किन्तु इस मत में व्यवधान है ।

दृष्टत्वाच्च ॥ 13 ॥

लोक में ऐसा ही देखा भी गया है।

अत एव तदभावाद्बल्लवीनाम् ॥ 14 ॥

अतएव (बिना शास्त्रज्ञान के एवं दर्शन के अभाव में भी) केवल परमानुरागरूपा भक्ति से ही गोपाङ्गनाओं को लक्ष्य की प्राप्ति हो गयी।

भक्त्या जानातीति चेन्नाभिज्ञप्त्या साहाय्यात् ॥ 15 ॥

भक्ति की प्राप्ति होने से, बिना पूर्व ज्ञान की सहायता के भी, भगवद् ज्ञान स्वतः ही हो जाता है ।

प्रागुक्तं च ॥16॥

यह बात पहले के सूत्रों में भी कही गयी है ।

एतेन विकल्पोऽपि प्रत्युक्तः ॥ 17 ॥

(ज्ञान अङ्ग है और भक्ति अङ्गी एवं ज्ञान का लक्ष्य भक्ति ही है,) ऐसा निश्चय होने से ज्ञान एवं भक्ति सम्बन्धी विभिन्न सिद्धान्तों के परस्पर विवाद का समन्वय हो जाता है

देवभक्तिरितरस्मिन् साहचर्यात् ॥ 18 ॥

(श्वेताश्वतरोपनिषद् में) गुरु-भक्ति के साथ पठित होने के कारण . देवविषयक भक्ति भी ईश्वराभिन्न देवता की भक्ति का बोधक है ।

योगस्तूभयार्थमपेक्षणात् प्रयाजवत् ॥ 19 ॥

यद्यपि योग ज्ञान का अङ्ग है, तथापि जब ज्ञान ही भक्ति का अङ्ग है, तब उसी के साथ योग भी भक्ति का अङ्ग ही है; जैसे वाजपेय आदि का अङ्गभूत प्रयाज उसकी दीक्षा लेने वाले व्यक्ति की दीक्षा का भी अङ्ग माना जाता है। अतः योग का भी लक्ष्य भक्ति ही है ।

गण्या तु समाधिसिद्धिः ॥ 20 ॥

(“ईश्वरप्रणिधानाद् वा’ इस योगसूत्रमें जो ‘प्रणिधानाद्’ आया है, वह गौणी भक्ति के अन्तर्गत है,) उस गौणी भक्तिसे ही समाधि की सिद्धि होती है ।

हेया रागत्वादिति चेन्नोत्तमास्पदत्वात् सङ्गवत् ॥ 21 ॥

यदि भक्ति रागरूपा है तो यह रागस्वरूपा भक्ति भी त्याज्य ही होगी ? ऐसा कहें तो ठीक नहीं: क्योंकि इस राग का आश्रय उत्तम है

तदेव कर्मिज्ञानियोगिभ्य आधिक्यशब्दात् ॥ 22 ॥

अतः भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है, यह बात निश्चित हुई; क्योंकि भगवान् ने (भगवद् गीता में) कर्मी, ज्ञानी तथा योगी- इन सब की अपेक्षा भक्त को ही श्रेष्ठ बताया है।

प्रश्ननिरूपणाभ्यामाधिक्यसिद्धेः ॥ 23 ॥

(गीता के बारहवें अध्याय में) अर्जुन के प्रश्न और भगवान् के उत्तर से भी भक्त की ही श्रेष्ठता सिद्ध होती है

नैव श्रद्धा तु साधारण्यात् ॥ 24 ॥

भक्ति के परिपेक्ष में श्रद्धा शब्द का साधारण उपयोग नहीं होना चाहिये।

तस्यां तत्त्वे चानवस्थानात् ॥ 25 ॥

श्रद्धा का साधारण उपयोग करने से अनावस्था उत्पन्न होती है

ब्रह्मकाण्डं तु भक्तौ तस्यानुज्ञानाय सामान्यात् ॥ 26 ॥

ब्रह्मसूत्र भी भक्ति का ही प्रतिपादन करता है, एवं ब्रह्मसूत्र में निहित ज्ञान का लक्ष्य भक्ति हो है ।

द्वितीय अध्याय

बुद्धिहेतुप्रवृत्तिराविशुद्धेरवघातवत् ॥27॥

बुद्धि के हेतुभूत श्रवण-मनन आदि साधनों में तब तक लगे रहना चाहिये जब तक की अन्तःकरण शुद्ध न हो जाय।

तदङ्गानां च ॥28॥

ब्रह्मज्ञान के हेतुभूत जो श्रवण-मननादि साधन हैं, उनके अङ्गभूत गुरु शरणागति, शास्त्र-विचार तथा शमदमादि साधनों का भी अन्तःकरण की शुद्धि के हेतु अनुष्ठान करते रहना चाहिये।

लेखक Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 16
Pdf साइज़1 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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2 thoughts on “नारद भक्ति सूत्र | Narad Bhakti Sutra PDF In Hindi”

  1. Durga prasad swain

    To make attaractive, coloured fonts can be used..to look better , space between sanskirit verse and hindi explanation can be created…to look better see…”arthsahit sunderkand” by jagrukta.com..

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