भक्ति रहस्य | Bhakti Rahsya Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
वर्तमान युगमें भक्ति-साधन और उसकी उपयोगिताके विषयमें कुछ कहनेकी आवश्यकता है, ऐसा मैं नहीं समझता। प्रायः सभी विश्वास करते हैं तथा शास्त्र-वाक्य और महापुरुषोंके अनुभव इस विश्वासका समर्थन करते हैं
दुर्बल मनुष्यके लिये भगवत्प्राप्तिका, एकमात्र न होते हुए भी, प्रधान उपाय भक्ति-साधना है। परंतु सच पूछा जाय तो भक्ति-साधनाका रहस्य सबके लिये सुपरिचित नहीं है।
रहस्य जाने बिना किसीको किसी तत्त्वका माहात्म्य हृदयङ्गम नहीं हो सकता। अतएव इस प्रबन्धमें भक्ति तत्त्वके रहस्यके सम्बन्धमें अपने ज्ञान और अनुभव अनुसार संक्षेपमें कुछ कहनेकी चेष्टा करूँगा।
साधनाके समस्त मार्गोंको आलोचनाकी सुविधाकी दृष्टिसे तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। इसके एक-एक भाग साधनाकी एक-एक स्थितिके द्योतक हैं।
प्रथम भागका नाम प्रवर्तक अवस्था, द्वितीय भागका नाम साधक अवस्था और तृतीय भागका नाम सिद्धावस्था है। प्रवर्त्तक अवस्थामें एकके बाद एक दो स्थितियोंका विकास स्वीकृत किया गया है।
उसी प्रकार साधक अवस्थामें भी दो क्रमिक स्थितियोंकी अभिव्यक्ति देखनेमें आती है। परंतु सिद्धावस्थामें इस प्रकारका कोई अवान्तर भेद नहीं पाया जाता।
प्रवर्तक अवस्थामें प्रथम साधना है नाम साधन नामकी महिमा भारतवर्षकी भक्त मण्डलीमें किसीको अविदित नहीं है। वाचक शब्द और वाच्य अर्थमें जिस प्रकार नित्य सम्बन्ध रहता है,
उसी प्रकार नाम और नामीमें एक प्रकारका नित्य सम्बन्ध विद्यमान है। वृक्षके बीजके साथ जिस प्रकार वृक्षफलका सम्बन्ध है, उसी प्रकार भगवान्के नामके साथ भगवत्स्वरूपका सम्बन्ध जानना चाहिये।
भगवन्नाम प्राकृतिक वस्तु नहीं है, यह अप्राकृ यह अप्राकृत वस्तु है और अचिन्त्य-शक्तिसम्पन्न है। भगवान् जिस प्रकार चिदानन्दमय हैं, उनका नाम भी उसी प्रकार चिदानन्दमय है। परंतु नाममें चिद् और आनन्दकी अभिव्यक्ति नहीं रहती, साधनाके प्रभावसे क्रमश: ये अभिव्यक्त होते
लेखक | गोपीनाथ कविराज-Gopinath Kaviraj |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 163 |
Pdf साइज़ | 1 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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