मोपला: मुझे इससे क्या? | Moplah Rebellion In Hindi Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
महर्षि सावरकर के साहित्य-सृजन का हेतु देश, काल और समाज से सम्बन्धित परिस्थितियाँ मात्र ही नहीं अपितु उनके साहित्य में एक स्थायी तत्त्वज्ञान भी है।
रचनाओं का यह स्थायी तत्वज्ञान तथा ऐतिहासिक सामग्री जो अस्थायी परिवेश में तात्कालीन समस्याओं पर आधारित है किसी न किसी सिद्धान्त एवं विचार-सूत्र की धुरी की ही परिक्रमा करते हैं ।
हिन्द महासागर के पश्चिमी तट पर स्थित (मलाबार) कालीकट इत्यादि का मलयालम भाषा-भाषी अंचल किसी समय मद्रास प्रदेश का भाग था किन्तु अब यह केरल का भाग है।
इसी अंचल में निवास करने वाले मुस्लिम ‘मोपला’ कहलाते हैं। इनमें से कुछ उन अरबी जलदस्युओं के वंशज हैं जो सौदागरों के रूप में आकर इस अंचल में बस गये और अन्य वे हैं
जिनको इन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त छुआछूत की भावना का लाभ उठाकर अथवा प्रलोभन देकर धर्मान्तरित किया था ।
इस्लामी खलीफा के समर्थन में भारत में भी खिलाफत आन्दोलन मुसलमानों द्वारा आरम्भ किया गया और हिन्दू-मुस्लिम एकता के दीवानों ने स्वातन्त्र्य प्राप्ति की मृग मरीचिका में जी भरकर इसका समर्थन किया ।
किन्तु थोड़े समय बाद ही विचित्र बात यह हुई कि देश भर में भयंकर हिन्दू मुस्लिम उपद्रव आरम्भ हो गए। मलावार में तो भीषण रक्तपात हुआ।
उसी समय की स्थिति तथा हिन्दू की वेदना ही इस उपन्यास की पृष्टभूमि है जिसे महान साहित्यकार हिन्दू हृदय सम्राट वीर सावरकर ने अपनी लेखनी से प्रस्तुत किया है।
वस्तुतः हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी भारत में इतिहास की एक श्रृंखला ही बन गए हैं, इनका स्वरूप बदलता रहता है। जिस दिन से विश्व में इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ तबसे संसार के रंगमंच पर एक विचित्र उचल पुथल होती आ रही है।
प्रत्येक दूसरी जाति से इस्लाम के अनुयायियों का संघर्ष हुआ । इस्लामी धर्मोन्माद को हिन्दुस्थान ने भी सैकड़ों वर्षों तक झेला है।
चाहे वह उन्माद गजनवी और गौरी के आक्रमणों अथवा खिलजियों और मुगलों की सत्ता – किसी भी रूप में उभरा हो । हिन्दू निरन्तर उसका लक्ष्य बनता रहा है !
लेखक | वीर सावरकर-Veer Savarkar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 164 |
PDF साइज़ | 6.3 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
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