हिंदी का गद्य साहित्य का इतिहास – Hindi Ka Gadhya Sahitya Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
सूत्रपात कब हुआ था ? इसके विषय में निश्चित रूप से कुछ भी नही महा जा माता। पड़ीबोली का प्रयोग यों तो अमीर खुसरो, मन्न नदियों तथा दक्खिनी हिन्दी के कवियों में स्पष्ट रूप से वरावर होता रहा है किन्तु उपलब्ध सामग्री के आधार पर सड़ीत्रोशी गद्य की परम्परा पटियाला के रामप्रसाद निरजनी कृत
‘भापा योगवासिष्ठ (१७४१) से ही प्रारम्भ मानी जा सकती है । उनीमवी शताब्दी से पूर्व प्राप्त हिन्दी-गद्य के उपर्युक्त तीनों रूप अपावन] थे। उनमें जीरन की व्यावहारिक ममस्याओं से सम्बन्धित तर्क-पुष्ट प्रौद विचारो को वहन करने की क्षमता ह थी । राजस्थानी-यद्य अपेक्षाकृत उघिक समृद्ध अवश्य पाहा जाता है
किन्तु उसकी समृद्धि भी विवेचन, तर्क, युक्ति, चिन्तन तथा मनन से पुष्ट सूक्ष्म विचारों की सीमा भा रस्पर्थ नही कर सकी थी। हिन्दी गद्य की r अप्रौढ़ त के पर्याप्त कारण पे।अपभा के घ्वंगावदोयो से निवलकर जब हिन्दी-माहित्य अपना स्वरूप निर्माण कर रहा था उम गमय मुख्यतः
उसे बौद्ध मिडो और जैन आचार्यों ना ही आश्रय मिला था। बोद्ध मिदो (७००-११४३) तथा जेन आस्ियों (e४३- ११४३) दोनों पा सम्बन्ध जन-जीवन से केवल धार्मिक दृष्टि गे ही या । घारमिक उपदेशों को जनता तक पहुँचाने के लिये इन दोनों ने पद्यात्मक अभिव्यकि्तियो को ही मान्यता दी। वोद] गिरो
भे जातकयधाओं के द्वारा भी घमं-प्रचार विया था जिनमें वहोनही गय-प्रपोग भी मिल जाते हैं किन्तु पेयल उपदेशाह्मक वयाओ भरिन-या में भी गययाहित्य अपनी उदेयता न सिद्ध वर मका । म तो यह इष्ट-देहो के मार्श परित की प्रतिष्ठा के लिये ही उपयुयत माना गया और म आराध्य दे प्रति आरम- के लिये ही।
टीनामय भगवान की भारत-भाविता मगुण-लीला के लिये भी पह मवंथा अयूबन था भौर प’ के प्रति व्यक्तिगन निरय्र् गगात्मर गण्यन्ध भी इमरे माप्पम गरेम पारित हो? भत्तों से सम्बन्धित पत्रिी रे भाधार पर प्रौतृका शा रथप्न ही देता जा गा था ।
लेखक | रामचंद्र तिवारी-Ramchandra Tiwari |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 352 |
Pdf साइज़ | 5.6 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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