‘संस्कृत साहित्य का इतिहास’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Sanskrit Sahitya Ka Itihas’ using the download button.
संस्कृत साहित्य का इतिहास – History Of Sanskrit Literature PDF Free Download
संस्कृत साहित्य का इतिहास
संस्कृत साहित्य विशाल और अनेकांगी है। जितने काल तक इसके साहित्य का निर्माण होता रहा है उतने काल तक जगत् में किसी अन्य साहित्य का नहीं ।
मौलिक मूल्य में यह किसी से दूसरे नम्बर पर नहीं है। इतिहास को लेकर ही संस्कृत साहित्य त्रुटिपूर्ण समझा जाता है । राजनीतिक इतिहास के सम्बन्ध से तो यह तथा कथित त्रुटि बिल्कूल भी सिद्ध नहीं होती ।
राजतरंगिणी के ख्यात नामा लेखक कल्दण ने लिखा है कि मैंने राजाओं का इतिहास लिखने के लिए अपने से पहले के ग्यारह इतिहास-ग्रन्थ देखे हैं
और मैंने राजकीय लेख संग्रहालयों में अनेक ऐसे इतिहास- ग्रन्थ देखे हैं जिन्हें कोड़ों ने खा डाला है, श्रतः पान्य होने के कारण वे पूर्णतया उपयोग में नहीं लाए जा सके हैं। कल्हण के इस कथन से बिल्कुल स्पष्ट है कि संस्कृत में इतिहास ग्रन्थ लिखे जाते थे ।
परन्तु यदि साहित्य के इतिहास को लेकर देखें तो कहना पड़ेगा कि कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है जिससे यह दिखाया जा सके कि कभी किसी भी भारतीय भाषा में संस्कृत का इतिहास लिखा गया था ।
यह कला आधुनिक उपज है और हमारे देश में इसका प्रचार करने वाले यूरोप निवासी भारत-भाषा-शास्त्री हैं। संस्कृत साहित्य के इतिहास अधिकतर यूरोप और अमेरिकन विद्वानों ने ही लिखे हैं।
परन्तु यह बात तो नितान्त स्पष्ट है कि विदेशी लोग चाहे कितने बहुत हों, वे सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, कला और जीवन-दृष्टि से अत्यन्त भिन्न जाति के साहित्य की अन्तरात्मा को पूर्ण अभिप्रशंसा करने या गहरी चाह लेनें में असमर्थ ही होंगे।
संस्कृत-साहित्य का महत्व
निस्सन्देह संस्कृत साहित्य का महत्व बहुत बड़ा है । इसकी बड़ी उम्र, एक बहुत बड़े भूख पर इसका फैला हुथा होना, इसका परिमाण, इसकी सम्पत्ति, इसकी रचना-चाता, संस्कृति के इतिहास की दृष्टि से इसका मूल्य ऐसी बातें हैं जिनके कारण इस महान्, मौलिक और पुरातन साहित्य के ऊपर हमारा अनुराग बिलकुल उचित सिद्ध होता है |
कुछ बातें और भी हैं, जिनके कारण संस्कृत साहित्य के अध्ययन में हमारी अभिरुचि और भी बढ़ जाती है। उनमें से कुछ विशेष नीचे दी जाती हैं–
(१) संस्कृत-साहित्य का अध्ययन ऐतिहासिकों के बड़े काम का है । यह विस्तृव भारतवर्ष के निवासियों के बुद्धि-जगत् के तीन हजार से भी अधिक वर्षों का इतिहास ही नहीं है प्रत्युत उत्तर में तिब्बत, चीन,
जापान, कोरिया, दक्षिण में लंका, पूर्व में मलाया, प्रायद्वीप, सुमाना, जावा, यावी, चोनियो तथा प्रशांत महासागर के दूसरे द्वीप;
और पश्चिम में प्रग़ानिस्तान, तुर्कस्तान इत्यादि देशों के बौद्धिक जगत् पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव भी पड़ा है ।
(२) आधुनिक शताब्दियों में इसने यूरोप पर युगप्रवर्त्तक प्रभाव डाला है ।”
यहा पर पांच भिन्न लेखको द्वारा लिखे संस्कृत साहित्य का इतिहास दिया है, इनमे से आपको जिस भी लेखक की किताब चाहिए वह डाउनलोड कर सकते है।
- सेठ कन्हैया लाल पोद्दार
- बलदेव उपाध्याय
- दयानंद शास्त्री
- डॉ ए बी कीथ
- हंस राज अग्रवाल और लक्ष्मण स्वरूप
इमारे दैनन्दित व्यवद्यार में सस्कृत बोतप्रोत है। जन्म से लेकर भृत्युपयंन्त होने वाले सस्कारों में सस्कृत भाषा एवं मन्त्रों का प्रयोग होता है।
उपनयन एवं विवाह धादि समस्त ढ्स्यों में सह्झृत के प्रयोग से हो पथिश्नता का वोध अथ च सन््तोप होता है। इन कृत्यों में कोई प्रान्तीय भाषा सस्कृत का स्थान नही ग्रहण कर सकती। आज भी हमारे देश में गीता, भागवत एव पुराणों का प्रचार कम मात्रा में नही है।
जो मारताीय सरकृत नही जानते उनका भी सस्छत के प्रति अनु राग है एवं उसका ज्ञान प्राप्त करते के लिए लालायित हैं। यही कारण है कि परतन्त्रतापाश से भुक्त होने के पश्चात् सस्कृतानुरागियों एवं भ्रध्येताओं की सरया अनुदिम बढ़ रही है।
प्रास्तीय भाषा में लिखे गये भारत के सर्वाधिक छोक प्रिय घमंग्रन्थ तुलसीकृत ‘रामचरितमानर्सा को पविन्नता एव प्रामाणिकता का पुट देने बे’ छिए उसमे सस्कूत के श्लोको की मुहर लगानी पढी ।
तुलनात्मक भाषाविज्ञान के क्षेत्र मे सस्कृत का जो महत्त्व है उसे विद्वदुवर्ग एक स्वर से स्वीकार करता ही है। ससार के प्राचीन धर्म के स्वरूप को जानने में सस्कृत का अत्यधिक योगदान है।
अभिप्राय यह है कि ससार के धर्म एवं भाषा के इतिहास का अ्रध्ययन खण्डित ही रह जायेगा यदि प्रध्येतृवर्ग सस्कृत के ज्ञान से शून्य है। भारत में उत्पत्त पह्लवित एवं पुष्पित जैन एवं बौद्ध धर्म का. विधद परिचय प्राप्त करमे वे लिए पाछ्ति एव प्राकृतत मापाओं का अपेक्षित ज्ञान सस्कृत को आधार बनाकर ही हो सकता है।
यही क्यों जैनियों एवं वौद्धो ने अपने प्रौढ़ ग्रन्थों की रचना सस्कृत में हो की है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि सल्वृत किसी थर्गविशेष को भाषा न थी जैसा कि कुछ लोगो की भ्रान्त धारणा है। सस्कृत का क्षेत्र व्यापक रहा है
एक ओर वेदविरोधी चार्वाक, ज॑म एवं वौद्धो ने इस भाषा की श्री वृद्धि की है तो दूसरी ओर प्रास्तिक, दाशंनिक नेयायिक, वैशेषिव, साय, गोगग्रन्थप्रगेता, मीमासक एवं वेदान्तियों ने विपुल ग्रन्यसम्पति से इसे सजाया है।
यहाँ ईश्वरवादी का उतना ही सम्मान है जितना मीमातव, साइय एवं वैशेषिक आदि अनीश्वर्वादियो वा। इस भाषा के रचनाकाल में यरुगो ने करवर्टें छी हैं, उत्थान पतथ का इतिहास वना है, विविध विचार धाराओं वा जन्म हुआ है जिन्हे देखकर व्यक्ति सद्डीएँं नहीं रह सकता।
बहू कह सकता है वि सस्कृत मे सब ठुछ है ।
सस्कृत, पाछि एवं प्राभृत भादि भाषावों में लिखे गये शिल्लाल्लेखो वा सष्ययन सस्कूत वे ज्ञान वे! विना खण्डित ही रहेगा। भारतौय पुरातत्त्व के ध्ययन वे. लिए सस्वुत का ज्ञान अपरिहायें है।
लक्ष्य वो देखकर भी उसने स्वरूप वे. निर्धारण तथा तदुविषयव कमी सम्प्ति के ह्थिर करो में छक्षण सहायव होता है। प्रुरातत्त्व वी वहुत सी – सामग्रियों वा श्ाक्षगत पर्याश्षोचन सत्दयुत मे ही मिल सकेगा
लेखक | सेठ कन्हैया लाल पोद्दार – Seth Kanhaiya Lal Poddar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 232 |
Pdf साइज़ | 6.7 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
संस्कृत साहित्य का इतिहास लेखक: बलदेव उपाध्याय PDF
बलदेव उपाध्याय द्वारा लखित संस्कृत साहित्य के प्रमाणिक इतिहास की किताब PDF
लेखक: दयानंद शास्त्री
आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास लेखक: डॉ ए बी कीथ
लेखक: हंस राज अग्रवाल और लक्ष्मण स्वरूप
Related PDFs
आधुनिक भारत का इतिहास PDF In Hindi
संस्कृत साहित्य का इतिहास – Sanskrit Sahitya Ka Itihas Book/Pustak Pdf Free Download