शिक्षा मनोविज्ञान | Education Psychology Hindi PDF

शिक्षा मनोविज्ञान पी.डी.पाठक – Education Psychology Book/Pustak PDF Free Download

शिक्षा का आधुनिक अर्थ

आधुनिक समय में शिक्षा शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। उसके एक मुख्य अथ का उल्लेख करते हुए डगलस व हालण्ड ने लिखा है –

“शिक्षा शब्द का प्रयोग उन सब परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जो एक व्यक्ति मे उसके जीवन काल में होते हैं।”

डगलस व हालण्ड

व्यक्ति अपने जन्म के समय असहाय होता है और दूसरों की सहायता से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है। जसे जसे वह बड़ा होता है वैसे-बसे वह उनको पूरा करना और अपने वातावरण से अनुकूलन करना सीखता है।

इन कार्यों में शिक्षा उसे विशेष योग देती है। शिक्षा न केवल उसे अपने वातावरण से अनुकूलन करने मे सहायता देती है वरन् उसके व्यवहार मे ऐसे वाचनीय परिवतन भी करती है कि वह अपना और अपने समाज का कल्याण करने में सफल होता है।

शिक्षा इन कार्यों को सम्पन्न करके ही सच्ची शिक्षा कहलाने की अधिकारिणी हो सकती है। सम्भवत इसी विचार से प्रेरित होकर डा० राधाकृष्णन ने लिखा है – “शिक्षा को मनुष्य और समाज का निर्माण करना चाहिए। इस काम को किए बिना शिक्षा अनुबर और अपूर्ण है।”

मनोविज्ञान का जन्म

Reyburn का मत है कि मनोविज्ञान ने अरस्तू के समय में दशनशास्न के अग के रूप में अपना जीवन आरम्भ किया। उस समय से लेकर सकडो वर्षों तक उसका विवेचन इसी शास्त्र के अग के रूप में किया गया । पर जसा कि Reyburn ने लिखा है -“आधुनिक काल में एक परिवतन हुआ है। मनोवज्ञानिकों ने धीरे धीरे अपने विज्ञान को दशनशास्त्र से पृथक कर लिया है।”

(1) बालकको महत्त्व-पहले शिक्षा विषय प्रधान और अध्यापक प्रधान थी। उसमें बालक को तनिक भी महत्व नहीं दिया जाता था उसके मस्तिष्क को बानी बतन समझा जाता था जिसे शान से भरना शिक्षक का मुख्य कत्तय था।

मनोविज्ञान ने बालक के प्रति इस दृष्टिकोण मे बामूल परिषतन करके शिक्षा को बाल-द्रित बना दिया है। अब शिक्षा बालक के लिये है, न कि बालक शिक्षा के लिये ।

(2) बालको की विभिन्न अवस्थाओं को महत्व- प्राचीन शिक्षा पद्धति मे सभी आयु के बालको के लिये एक सौ शिक्षा और एक सी शिक्षण विधियो का प्रयोग किया जाता था ।

मनोविज्ञानिको ने इन योनो बातो को अनुचित और दोषपूर्ण सिद्ध कर दिया है । उनका कहना है कि बालक जसे-जैसे बडा होता जाता है, वसे बसे उसकी रुचियों और आवश्यकताये बदलती जाती है,

उदाहरणाय बाल्यावस्था में उसकी रुचि खेल मे होती है पर किशोरावस्था में बह खेल और काय मे बतर समझने लगता है।

इस बात को ध्यान में रखकर बालको को बाल्यावस्था मे खेल द्वारा और किशोरावस्था मे अन्य विधियो द्वारा शिक्षा दी जाती है साथ ही उनकी शिक्षा के स्वरूप में भी अन्तर होता है।

(3) बालकों की रुचियो व मूल प्रवृत्तियों को महत्व पूथ कास की किसी भी शिक्षा योजना में बालको की रुचियो और मूल प्रवृत्तिया का कोई स्थान नही या।

उन्हें ऐसे अनेक विषय पढने पड़ते थे, जिनमे उनको तनिक मी रुचि नही होती थी और जिनका उनकी मूल प्रवृत्तियो से कोई सम्ब ध नही होता मा मनोविज्ञानिक ने सिद्ध कर दिया है

कि जिस काय मे बालको को रुचि होती है उसे वे जल्दी सीखते है। इसके अतिरिक्त, वे काय करने में अपनी मूल प्रवृत्तियो से प्रेरणा प्राप्त करते है। अत अब बालको की शिक्षा का आधार उनकी रुचिया और मूल प्रवृत्तियाँ है।

लेखक पी.डी.पाठक-P.D.Pathak
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 566
Pdf साइज़18.9 MB
Categoryमनोवैज्ञानिक(Psychological)

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