श्रीमद देवी भागवत पुराण | Devi Bhagwat Puran PDF In Hindi

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सम्पूर्ण श्रीमद देवी भागवत हिंदी – Devi Bhagwat Puran PDF Free Download

माता दुर्गा देवी की भागवत कथा और महत्व

भगवती दुर्गा साक्षात् नारायणी है । बसिष्ठजीके यो भक्तिपूर्वक स्तुति करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो गर्यो । तदनन्तर शरणागतका दुःख दूर करनेवाली उन महादेवीने मुनिसे कहा- ‘बुम सुयुम्नके घर जाकर भक्तिभावसे मेरी आराधना करो ।

द्विजवर ! तुम प्रसन्नतापूर्वक नौ दिनोंमें सुझुम्नको श्रीमद्देवीभागवत सुनाओ | वह पुराण मुझे बहुत प्रिय है। उसके सुनते ही यह उसी क्षण पुरुष हो जायगा।

इस प्रकार कहकर भगवान् शङ्कर और पार्वती अन्तर्धान हो गये। अब वसिष्ठजी उस दिशाको प्रणाम करके अपने आश्रमपर चले आये ।

उन्होंने सुद्युम्नको बुलाया और देवी की आराधना करनेकी बात कह सुनायी एवं आश्विनमांस के शुक्लपक्षमें नवरात्र विधिका पालन करते हुए मुनिने भगवती जगदम्बिकाकी पूजा की और

राजा सुद्युम्नको श्रीमद्देवीभागवत पुराण सुनाना आरम्भ कर दिया। राजा भी वह अमृतमयी कथा भक्तिभाव से सुननेमें संलग्न हो गये ।

कथा समाप्त होने पर उन्होंने गुरुदेवको प्रणाम करके उनकी पूजा की और वे सदाके लिये पुरुष हो गये |

देवीभागवतके माहात्म्य-प्रसङ्गमें मुनिके शापसे रेवती नक्षत्रके पतन, पर्वतसे रेवती नामकी कन्या के प्रादुर्भाव, ऋषि प्रसुचके द्वारा उसके पालन तथा

राजा दुर्दमके साथ उसके विवाह की एवं रेवती नक्षत्रके पुनः स्थापनकी कथा, महिषासुर आदिके साथ भगवान् विष्णु और शंकर का भीषण युद्ध; भगवान् विष्णु, शंकर और

ब्रह्माका स्वधाम लौट जाना; इन्द्रादि देवताओंकी पराजय और इन्द्रका ब्रह्माजी तथा शिवजीको साथ लेकर बैकुण्ठमें भगवान् के समीप गमन

भगवान् विष्णुकी सम्मतिसे देवताओंके द्वारा तेजःप्रदान तथा उस सम्मिलित तेज- समूहसे भगवतीका प्राकट्य, देवताओंके द्वारा देवीको

भगवतीके श्रीविग्रहसे कौशिकीका प्राकट्य, देवीकी कालिकारूपमें परिणति, देवताओंको आश्वासन, शुम्भ-निशुम्भको देवीके पधारनेका संवाद प्राप्त होनेपर उनका मन्त्रियोंसे परामर्श,

शुम्भके द्वारा प्रेरित दूत सुप्रीवसे जगदम्बाकी बातचीत, धूम्रलोचन और देवीका संवाद तथा धूम्रलोचन वध

सत्यमतका त्रिशंकु नाम होनेका कारण, भगवतीकी कृपासे सत्यव्रतकी शापमुक्ति, सत्यव्रतका सदेह स्वर्ग जानेका आग्रह, वशिष्ठके द्वारा सत्यव्रतकोशाप, हरिश्चन्द्रकी कथाका प्रारम्भ,

७- त्रिशंकुपर विश्वामित्रकी कृपा, विश्वामित्रके तपो चलसे त्रिशंकुका सदेद्द स्वर्गगमन, हरिश्चन्द्रकी कथा

८-राजा हरिश्चन्द्रपर विश्वामित्रका कोप तथा विश्वामित्रकी कपटपूर्ण बार्तोमें आकर हरिश्चन्द्रका

भगवान् श्रीकृष्ण प्रसेनको खोजने के लिये चले गये। बहुत समय तक नहीं लौटे। तर वसुदेवजीने यह देवीभागवत पुराण सुना। इसके प्रभावसे उन्होंने अपने प्रिय पुत्र श्रीकृष्णको शीघ्र पाकर आनन्द लाभ किया था।

जो पुरुष देवीभागवतकी कथा भक्तिके साथ पढ़ता और सुनता है, मुक्ति और मुक्ति उसके करतलगत हो जाती हैं। यह कथा अमृत स्वरूपा है, इसके अवणसे अपुत्र पुत्रवान् दरिद्र घनवान् और रोगी आरोग्यवान् हो जाता है !

ओ श्री वन्ध्याः कावन्ध्या और मृतवत्वा हो, वह भी देवीभागवतकी कथा सुननेसे दीर्घजीवी पुत्रकी जननी बन जाती है। जिसके घरमें श्रीमद्देवीभागवतकी पुस्तकका नित्य पूजन होता है, वह घर तीर्यस्वरूप हो जाता है।

वहाँ रहनेवाले लोगोंके पास पाप नहीं टिक सकते। जो अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी के दिन भक्तिके साथ यह कथा सुनता या पढ़ता है, उसे परमसिद्धि उपलब्ध हो जाती है।

भगवान् श्रीकृष्ण प्रसेनको खोजने के लिये चले गये । बहुत समय तक नहीं लौटे। तत्र वसुदेवजीने यह देवीभागवत पुराण सुना। इसके प्रभावसे उन्होंने अपने प्रिय पुत्र श्रीकृष्णको शीघ्र पाकर आनन्द लाभ किया था। जो पुरुष देवीभागवतको कथा साथ पढ़ता और सुनता है, युक्ति और मुक्ति उसके करतलगत हो जाती हैं।

यह कथा अमृतस्वरूपा है, इसके श्रवणसे अपुत्र पुत्रवान् दरिद्र धनवान् और रोगी आरोग्यवान् हो जाता है। जो स्त्री वन्ध्या, काकवन्न्या और मृतवत्सा हो, वह मी देवीभागवत की कथा सुनने से दीर्घजीवी पुत्रकी जननी बन जाती है। जिसके घरमें श्रीमद्देवीभागवतकी पुस्तकका निष्य पूजन होता है, वह घर तीर्थस्वरूप हो जाता है।

वहाँ रहनेवाले लोगोंके पास पाप नहीं टिक सकते। जो अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी के दिन भक्ति के साथ यह कथा सुनता या पढ़ता है, उसे परमसिद्धि उपलब्ध हो जाती है। इसका करनेवाला यदि ब्राह्मण हो तो प्रकाण्ड विद्वान्, क्षत्रिय हो तो महान् शूरवीर, वैश्य हो प्रचुर धनालय और शूद्र हो तो अपने कुलमें सर्वोत्तम हो सकता (अध्याय १)

मुनियों कहने पर हम पति-पत्नी दोनोंके हृदय में अपार हर्ष छा गया। मैंने अत्यन्त भक्तिपूर्वक उनको प्रणाम किया और हाथ जोड़कर कहा- भगवन् ! आप परम दयालु हैं। यदि मुझपर आपकी कृपा हो तो मधुरापुरीमें रहकर ही आप मेरे लिये भगवती जगदम्बिकाकी आराधना आरम्भ कर दीजिये । महामते ।

मैं यहाँ बंदी इस समय मुझसे कुछ होनेकी सम्भावना नहीं दीखती । अतः आप ही इस दुःखरूपी दुखर सागर से उद्धार करने की कृपा कीजिये । इस प्रकार मेरे कहनेपर मुनिवर गर्गनी प्रसन्न होकर बोले-‘वसुदेव ! तुम मेरे अति प्रेमपात्र हो, अतश्व तुम्हारे कल्याणार्थ में अवश्य यत्न करूँगा।’

फिर तो, प्रेमपूर्वक प्रार्थना करनेपर मुनिवर गगनी भगवती जगदम्बिकाकी आराधना करनेके लिये कुछ ब्राह्मणों को साथ लेकर विन्ध्यपर्वतपर चले गये। वहाँ पहुँच- कर वे मक्कोंके मनोरथ पूर्ण करनेवाली जगन्माताके जप और पाठ संलम होकर उनकी आराधना करने लगे। अनुष्ठान समाप्त होनेपर आकाशवाणी हुई- मुने । मैं प्रसन्न हूँ तुम्हारा कार्य अवश्य सिद्ध होगा ।

पृथ्वीका भार दूर करने के लिये मैंने श्री विष्णुको आदेश दिया है। बहुदेवके यहाँ देवकीके गर्मसे वे अपना के अंशावतार ग्रहण करेंगे। उनके प्रकट होते ही वसुदेवजी कंसके डर- से उन्हें लेकर गोकुलमै नन्दजी के घर पहुँचा देंगे।

लेखक हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad, Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 722
Pdf साइज़48.8 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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