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हिंदी साहित्य का इतिहास – Hindi Sahitya Ka Itihas PDF Free Download

रामचंद्र शुक्ल रचित हिंदी साहित्य का इतिहास
(जब कि प्रत्येक देश का साहित्यं वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ साथ साहित्य के स्वरूप भी परिवर्तन होता चला जाता है ।
आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही “साहित्य का इतिहास” कहलाता है।
जनता की चित्तवृत्ति बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, साप्रदायिक तथा धार्मिक परि स्थिति के अनुसार होती है । अतः कारण स्वरूप इन परिस्थितियो का किंचित् दिग्दर्शन भी साथ ही साथ आवश्यक होता है ।
इस दृष्टि से हिंदी साहित्य का विवेचन करने में यह बात ध्यान में रखनी होगी कि किसी विशेष समय मे लोगो मे रुचि-विशेष का संचार और पोषण किधर से किस प्रकार हुआ ।
उपर्युक्त व्यवस्था के अनुसार हम हिंदी-साहित्य के ६०० वर्षों के इतिहास को चार कालों में विभक्त कर सकते हैं
- आदि काल ( वीरगाथा-काल, संवत् १०५०-१३७५ )
- पूर्व मध्यकाल ( भक्तिकाल, १३७५-१७००)
- उत्तर मध्यकाल ( रीतिकाल, १७०० – १६०० )
- आधुनिक काल (गद्यकाल, १६०० – १६८४) १
यद्यपि (इन कालों की रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही इनका नामकरण किया गया है, पर यह न समझना चाहिए कि किसी काल में और प्रकार की रचनाएँ होती ही नहीं थीं।
जैसे भक्तिकाल या रीतिकाल को ले तो उसमे वीररस के अनेक काव्य मिलेंगे जिनमे वीर राजाओं की प्रशंसा उसी ढंग की होगी जिस ढंग की वीरगाथा-काल में हुआ करती थी।
अतः प्रत्येक काल का वर्णन इस प्रणाली पर किया जायगा कि पहले तो उक्त काल की विशेष प्रवृत्ति-सूचक उन रचनाओं का वर्णन होगा जो उस काल के लक्षण के अंतर्गत होंगी ; पीछे सक्षेप में उनके अतिरिक्त और प्रकार की ध्यान देने योग्य रच नाश्रो का उल्लेख होगा ।
वत्तमान काल के अनेक प्रतिमा-लंपन्न और प्रभावशाली लेखकों और कवियणें के नाम जल्दी में या भूल से छूट गए होंगे । इसके लिये उनसे तथा उनसे भी अ्रधिक उनकी कृतियों से विशेष रूप में परिचित महानुभावों से क्षमा की प्रार्थना है | जैसा पहले कहा जा चुका है, यह पुस्तक जल्दी में तेयार करनी पड़ी है इससे इसका जो रूप में रखना चाहता था वह भी इसे पूरा पूरा नही प्राप्त दो सका है |
कवियों ओर लेखकों के नामोल्लेख के संबंध में एक बात का निवेदन और है| इस पुस्तक का उद्देश्य संग्रह नही था । इससे आधुनिक काल के अंतर्गत सामान्य लक्षणों ओर प्रद्धत्तियों के वर्णन की ओर ही अधिक ध्यान दिया गया है-।, अगले सस्करण मे इस काल का प्रसार कुछ ओर अधिक हो सकता है | ह ४०.” ५
कहने की आ्रवश्यकता नहीं कि हिंदी-साहित्य का यह इतिहास ‘हिंदी-शब्दसागर? की भमिका के रूप में ‘हिंदी-साहित्य का विकास” के नाम से सन् १६२६ के जनवरी महीने में निकल – छुका है। इस अलग पुस्तकाकार.
सस्करण में बहुत सी बातें बढ़ाई गई हँ—विशेषतः आदि ओर अंत में। आदि काल? के भीतर अ्रपश्न श की रचनाएं भी ले ली गई हे क्योंकि वे सदा से ‘भाषा-काव्य? के अंतर्गत ही मानी जाती रही हैं ।
कवि परंपरा के बीच प्रचलित जनश्रुति कई ऐसे प्राचीन भाषा काव्यों के नाम गिनाती चलछी आई है जो अपभ्रश मे हैं-जैसे, कुमारपालचरित और शाड्रधर-क्षत हम्मीररासो। हम्मीररासो” का पता नहीं है |
पर प्राकृत पिंगल सूत्र? उलटते-पुलटते मुझे हम्मीर के युद्धो के वर्णनवाले कई बहुत ह्वी ओजस्वी पद्म, छुंदों के उदाहरण मे, मिले । मुझे पूर्ण निश्वय हो गया है कि ये पद्म शार््धधर के प्रसिद्ध ‘हम्मीररासो? के ही है ।
कई संस्करणों के उपरांत इस पुस्तक के परिमार्जन का पहला अवसर मिला, इससे इसमें कुछ आवश्यक संशोधन के अतिरिक्त बहुत सी बाते बढ़ानी पढ़ी ।
ध्थादिकाल? के भीतर वद्भवानी सिद्धों और नाथपथी योगियों की परपराश्रों का कुछ विस्तार के साथ वर्णन यह दिखाने के लिये करना पड़ा कि कबीर द्वारा प्रवर्तित नियु ण सत-मत के प्रचार के लिये किस प्रकार उन्होंने पहले से रास्ता तैयार कर दिया था। दूमरा उद्द श्य यह स्पष्ट करने का भी था कि ऐिद्धों और योगियों की रचनाएँ साहित्य-कोटि में नहीं आती और योग-घारा काव्य या साहित्य की कोई धारा नहीं मानी जा सकती ।
पभक्ति-काल’ के श्रतर्गत स्वामी रामानंद और नामदेव पर विशेषरूप से विचार किया गया है; क्योक्ति उनके संबंध में अनेक प्रकार की बातें प्रचलित हैं। ‘रीतिकाल’ के सामान्य परिचय? में हिंदी के अलंकार-ग्रंथों की परंपरा का उद्बम और विकास कुछ अधिक विस्तार के साथ दिखाया गया है। घनानंद आदि कुछ मुख्य मुल्य कवियों का आलोचनात्मक परिचय भी विशेष रूप में मिलेगा |
श्राधुनिक काल के भीतर खड़ी बोली के गद्य का इतिहास इधर जो कुछ सामग्री मिली दै उसकी दृष्टि से. एक नए रूप में सामने लाया गया है। हिंदी के मार्ग में जो जो विलक्षण बाधाएँ पड़ी है उनका भी सविस्तर उल्लेख है।
पिछुले संस्करण में वत्तमान अर्थात् आजकल चलते. हुए. साहित्य की मुख्य प्र्ेत्तियों का संकेत मात्र करके छोड़ दिया गया था। इस संस्करण में समसामयिक साहित्य का अब तक का आलोचनात्मक विवरण दे दिया गया है जिससे आज तक के साहित्य की गति-विधि का पूरा परिचय प्रास होगा ।
लेखक | रामचंद्र शुक्ल – Ramchandra Shukla |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 804 |
PDF साइज़ | 39.4 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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