संपूर्ण चरक संहिता | Charak Samhita PDF In Hindi

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चरक संहिता सरल अर्थ सहित – Charak Samhita PDF Free Download

ब्रह्मानन्द त्रिपाठी द्वारा अनुवादित चरक संहिता

ब्रह्मानन्द त्रिपाठी अनुवादित चरक संहिता सरल भाषा में लिखी गई, जबकि अत्रिदेवजी अनुवादित श्लोक को सरल अर्थ सहित लिखी गई, मैने दोनों किताबे प्रस्तुत की है आप अपने अनुसार डाउनलोड करे।

सम्प्रति उपलब्ध चरक संहिता ८ स्थानों तथा १२० अध्यायों में विभक्त है। प्रस्तुत सहिता काय-चिकित्सा का सर्वमान्य ग्रन्थ है।

जैसे समस्त सस्कृत-वादमय का आधार वैदिक साहित्य है, ठीक वैसे ही काय, चिकित्सा के क्षेत्र में जितना भी परवती साहित्य लिखा गया है, उन सब का उपजीव्य चरक है।

चरक संहिता के अन्त में ग्रन्थकार की प्रतिज्ञा है—’यदि हास्ति तदन्यत्र यास्ति म तत् कचित्’ ।

इसका अभिप्राय यह है कि काय-चिकित्सा के सम्बन्ध में जो साहित्य व्याख्यान रूप में अथवा सूत्र रूप में इसमें उपलब्ध है, वह अन्यत्र भी प्राप्त हो सकता है, और जो इसमें नहीं है, वह अन्यत्र भी सुलम नहीं है।

चरक का यह डिण्डिमघोष तुलनात्मक दृष्टि से सर्वदा देखा जा सकता है।

दूसरी विशेषता महर्षि चरक की यह रही है-‘पराधिकारे न तु विस्तरोक्तिः’ । इन्होंने अपने तन्त्र के अतिरिक्त दूसरे विषय के आचार्यों के क्षेत्र में टाँग अड़ाना पसन्द नहीं किया, अतएव उन्होंने कहा है-‘अत्र धान्वन्तरीयाणाम् अधिकारः क्रियाविधौ’ ।

इस प्रकार के आदर्श ग्रन्थ पर भट्टारहरिचन्द्र आदि अनेक स्वनामधन्य मनीषियों ने टीकाएँ लिखकर इसके रहस्यों का उद्घाटन समय-समय पर किया है।

इसके पूर्व भी चरक की कतिपय व्याख्याएँ लिखी गयी हैं, वे विषय का बोध भी कराती है।

चरकसहिता की घरक चन्द्रिका टीका के रूप मे लेखक का इस दिशा में यह स्तुत्य प्रयास है। इसमे वथासम्भव चरक के रहस्यमय गूढ स्थलों का सरस भाषा में आशय स्पष्ट किया है।

यह ग्रन्थ १६ अध्यायो मे विभक्त है ।

अध्याय-क्रम से विषयों का निर्धारण निम्नाङ्कित प्रकार से किया गया है –

१ प्रथम अध्याय – इसके अन्तर्गत वातव्याधि निदान लक्षण आवरण, चिकित्सा के सामान्य सिद्धान्त, चिकित्सासूत्र, सामान्य चिकित्सा, विशिष्ट वातरोगो के लक्षण और विशिष्ट चिकित्सा का विस्तार से वर्णन किया गया है ।

२ द्वितीय अध्याय – इसमे स्थौल्य निदान, दोष दूष्य आदि चिकित्सा सूत्र और चिकित्सा का वर्णन है। कारोग का सर्वाङ्ग वर्णन तथा रिकेट्स, ऑस्टियोमैलेसिया, बेरी-बेरी और पेलाग्रा के निदान, लक्षण एव चिकित्मा का वर्णन और कुपोपणजन्य विकारों की रोकथाम का वर्णन किया गया है ।

३ तृतीय अध्याय – इसमे प्रमुख अन्त स्रावी ग्रन्थियो के रोगो के निदान, लक्षण तथा चिकित्मा का वर्णन किया गया है । जैसे-चुल्लिका ग्रन्थि, उपचुल्लिका, उपवृक्क, थाइमस, पोषणिका, अग्न्याशय, वीजग्रन्थि, अन्त फल और अपरा का वर्णन है ।

४ चतुर्थ अध्याय– इसमे आनुवशिक रोग, पर्यावरण, देश-काल-जल वायु, पर्यावरण परिवर्तनजन्य रोग, अशुधात और यात्राजन्य विकारो का वर्णन है ।

५ पंचम अध्याय-पान-विपासना, भागे धातुजन्य विषाक्तता, पारद-नाग-पद में ओपनाको गामान्य चिकित्सा का उपेन है।

६ चष्ठ अध्याय – उसने दशजनित विकार और उनका प्रतिकार बाजार आदि, मदर और उपचार, निदण, अलकंविष, विषजन्तु दंग, लूना, भूषा, मानपदी आदि तथा दक्षिण और चिकित्सा का वर्णन किया गया है ।

७ सप्तम अध्याय – उनमे व्याधिक्षमिस, मीरम चिनिया, लमीका रोग, अनूजंठा एवं चिकित और उपचारों का वर्णन है ।

८ अष्टम अध्याय – इसके क्षण तथा उनको चिकित्सा का वर्णन है ।

९. नवम अध्याय – इसमे मन का निरूपण किया गया है ।

१० बाम अध्याय – इसमे मनोविज्ञान की उपादेयता, मानस रोगो का निदान और उनके लक्षणों का वर्णन है ।

११ एकादश अध्याय – इसमे मानमरोगो का चिकित्सासूत्र एवं उन्माद रोग विस्तारपूर्णक वर्णित है ।

१२ द्वादश अध्याय – उसमे अपस्मार, अतत्वाभिनिवेण, मनोविक्षिप्ति ( Psychosis), अव्यवस्थितचित्तता ( Schizophrenia), विपाद (Depression) भ्रम ( Illusion), विश्रम ( Hallucination), सविभ्रम ( Paranoia ), व्यामोह ( Delusion ), मन श्रान्ति ( Neures thenia ) और मनोग्रन्थि – इन लक्षण और उपचार का वर्णन किया गया है ।

१३ त्रयोदश अध्याय – इसमे आत्यधिक चिकित्सा की परिभाषा, उसके स्वरूप, प्रकार एवं सामान्य सिद्धान्त का वर्णन है । तरल-वैद्युत्-अम्ल-क्षार के असन्तुलनजन्य विकारो तथा दग्ध और रक्तस्राव के विविध स्वरूपणे का सोपचार वर्णन है ।

१४. चतुर्दश अध्याय – इसमे तीव्र उदरशूल, अन्नद्रवशूल, परिणामशूल, आनाह, उदावर्त, तीव्र श्वासकाठिन्य और वृक्कशूल के निदान लक्षण चिकित्सा का वर्णन है ।

१५ पश्चदश अध्याय – इसमे मूत्रावरोध अन्त्रावरोध, हच्छल और मूर्च्छा का सविस्तर वर्णन किया गया है । I

१६. षोडश अध्याय – इसमे मधुमेहजन्य उपद्रव यथा – मधुमयताधिक्य एवं उपमधुमयता, उदर्याकलाशोथ, तीव्रज्वर, औषधप्रतिक्रिया एव विपाक्तता का वर्णन किया गया है ।

लेखक ब्रह्मानन्द त्रिपाठी – Brahmanand Tripathi
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 356
Pdf साइज़14.8 MB
Categoryआयुर्वेद(Ayurveda)

अत्रिदेवजी अनुवादित चरक संहिता

श्रीचरकसंहिता आयुर्वेद में एक सर्वमान्य पुस्तक है। इसका पठन पाठन आयुर्वेद के विद्यार्थि के लिये अति आवश्यक है।

वास्तव में चरकसंहिता का तथा दूसरे ग्रन्थों का स्पष्टीकरण जितना पढ़ाने में होता है, उतना पढ़ने के समय नहीं होता।

यही कारण है कि आयु र्वेद सम्प्रदाय के मुख्य आचार्य श्री गंगाधर जी कविराज, श्री योगीन्द्र नाथ सेन जी श्रीचरकसंहिता पर जल्पकल्पतरु और चरकोपस्कार टीकायें लिखकर आयुर्वेद के प्रेमियों का बहुत उपकार किया।

इनमें चरकोपस्कारभाध्य तो विद्यार्थियों के लिये बहुत ही उत्तम और लाभ दायक है। पढ़ते समय विद्यार्थी की मनोवृत्ति बहुत ही विचित्र रहती है;

खास कर आजकल के आयुर्वेद कोलेज की जीवन में; जब कि उसको पाश्चात्य विद्या भी सत्तर प्रतिशत सीखनी होती है। ऐसी अवस्था में तो वह उत्तीर्ण होकर उपाधि ही प्राप्त करने का इच्छुक रहता है।

लेखक चरक- Charak
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 639, 616
Pdf साइज़24.8 MB, 70.5 MB
Categoryआयुर्वेद(Ayurveda)

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