पराशर ज्योतिष – Parashar Astrology Book/Pustak PDF Free Download
श्रीपराशरसंहिता में एक अपूर्व प्रसंग का वर्णन प्राप्त होता है, वह है सूर्यपुत्री सुवर्चला का प्रसंग। सुवर्चला को पराशरसंहिता में श्रीहनुमान जी की सहधर्मिणी, सहचारिणी के रूप में वर्णन मिलता है।
यह तथ्य सर्वविदित है कि बाल्यावस्था में श्रीहनुमान जी ने भगवान सूर्य से विद्या ग्रहण किया था। श्री हनुमान जी की गुरूभक्ति श्रद्धा एवं निष्ठा से प्रभावित श्रीसूर्यदेव से जो तेज श्रीहनुमान जी को प्राप्त हुआ,
वहीं सुवर्चला- सु-शोमन, वर्च- तेज सुवर्च, उसको ला-लाने वाली आभा-सुवर्चला-प्रशस्त तेज लाने वाली आभा श्रीहनुमान जी से संगत हुई,
जिसके ही प्रभाव से श्रीहनुमान जी में दिव्य अलौकिक अनुपम तेज, बल, पराक्रम, अदम्य उत्साह, विद्या, ज्ञान आदि लोकोत्तर सद्गुणों की अपार निधि सन्निहित हुई और श्रीहनुमान तब से श्रीरामकाल पर्यन्त,
तदनन्तर आज और भविष्य में भी प्रतिक्षण लोकहित के प्रति सन्नद्ध रहते हुए आसुरी वृत्ति के विनाश तथा दैवी सम्पद् के प्रकाश में सूर्य समान अहर्निश वर्तमान हैं।
श्रीजानकीपति राम सहितं परमं वन्दे एकदा मैत्रेयः भ्रातृभिर्लक्ष्मणादिभिः।
रत्नसिंहासने सुखमासीन परिपप्रच्छ भगवन्योगिनां किंचिद्विज्ञातुकामो ऽस्मि प्राप्तं कलियुगं अधर्मानृतसंयुक्तं तस्मिन् कलियुगे धोरे |
पूर्वकर्मविपाकेन ये स्थितम् ।। पराशरमहामुनिम् तपोनिधिमकल्मषम् ।। पराशर महामते । मोहमायासमाकुलम्
श्रीलक्ष्मणादि भाईयों के साथ रत्न सिहांसन पर विराजित श्रीजानकीपति राम को प्रणाम करता हूँ। एक बार सुखासन में विराजमान निष्पाप तपोमूर्ति पराशर महामुनि से मैत्रेय ने पूछा।
हे भगवन् योगियों में श्रेष्ठ महामति पराशर मैं कुछ जानना चाहता हूँ, अतः आप मुझ पर कृपा करें। मोहमाया से आच्छन्न अधर्म, असत्य से युक्त दारिद्र्य व्याधि से पीड़ित घोर कलियुग आ चुका है।
उस घोर कलियुग में पूर्वजन्म के कर्मवश जो मनुष्य दुःखी हैं, वह अपने कल्याण करने हेतु क्या उपाय करें। उन दुःख संतप्तों के लिये दयालुओं को क्या करना चाहिये।
राजा जन दस्युकर्म में प्रवृत्त हुये हैं और साधुजन विपत्तियों से घिरे हैं। कलियुग के दारिद्र्य एवं व्याधियों से लोग पीड़ित है। इनसे छुटकारा पाने का क्या उपाय है।
इस ग्रन्थ में भगवान हनुमान के जीवन के अतिरिक्त हनुमान से सम्बन्धित मन्त्रशास्त्र का अदभुत विचार प्रस्तुत है। इस कलियुग में मानव जीवन को कष्टों से राहत के श्री पराशर संहिता सन्दर्भ में महर्षि मैत्रेय के व्दारा पूछे जाने पर महर्षि पराशर हनुमान के महत्व का वर्णन करते है और यही विषय का मुख्य आधार है।
सप्तपुटीय हनुमत् मन्त्रात्मकविध्या की उपासनाविधी और हनुमव्दिध्या का महत्व मुख्य रूप से वर्णित किया गया है। भगवान हनुमान को सपने में देखने की विधी, हनुमव्रत का महत्व, सूर्यप्रकाश का सुवर्चला में प्रवेश, हनुमध्यन्त्र, हनुमतभक्ति का प्रभाव और हनुमान की भक्तसुलभता,
तेरह हनुमत पीठों का इतिहास, गन्धमादन पर्वत पर हनुमान का वास (ठहरना), ऊट के ऊपर भगवान का संचार,
भगवान के व्दारा अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करने की या गलत करने वालों को दण्डित करने की विधी, शत्रुओं का संहार करके मनोकामनाओं को पूरा करने वाले हनुमत माला यन्त्र के बारे में वर्णित है।
प्रथम अध्याय
प्राचीन समयमें एक दिन हिनालय पर्वतके ऊपर देवदारु वनमय आश्रम में व्यासजी एकाग्रचित्तसे बैठे हुए थे । उस समय ऋषियोंने व्यासजी से पूका ; हे सत्यवतीनन्दन !
कलियुगमें कौन धर्म, “कैसा आचार और कैसा शोच रखनेसे प्राणिमादकी भलाई होगी ? कृपाकर उग धम्मों को यथानियम कहिये ।
प्रज्वलित अग्नि और सूर्यके सदृश तेजखी, वेद तथा स्मृतियोंके पूर्ण पण्डित व्यासजी ऋऋषियोंकी ऐसी प्रार्थना सुनकर बोले मैं तो सम्पूर्ण तत्वोंको जानता नहीं, फिर धम्मको वास कैसे कह ।
इसलिये मेरे पिता पराशरजीसे इस बातको पूळगा धर्मतत्वको जाननेके लिये उत्वाति ऋपिगण व्यासजीको अग्रणीकर वदरिकाश्रमको चले।
यह आयम फल और फलसे सुशोभित और अनेक प्रकारके वृक्षोंसे पूर्ण था। नही, भरने और पुण्य तीर्थों से सुमन्त्रित था। इसमें हरिण ।
एवं पक्षिगण इधर उधर घूम रहे ये । अनेक जगह देवालय विद्यमान थे ।
लेखक | अज्ञात (Unknown) |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 62 |
PDF साइज़ | 2.9 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
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Sanskrit aati nahi hai to samzhi nahi sakte Marathi ya hindi me translation kripaya ho sake to dijiye