भ्रमरगीत सार की व्याख्या – Bhramar Geet Sar Pdf Free Download
भ्रमरगीत सार की व्याख्या
प्रसंग-उद्धव ने कृष्ण के मन के मर्म को न समझा और बार-बार ब्रह्म की महत्ता की रट लगाते रहे, तो कृष्ण ने उनसे कहा कि व्याख्या-हे उद्धव !
तुम अपने मन में यह निश्चय जानोभ्रमरगीत सार की व्याख्याप्रसंग-उद्धव ने कृष्ण के मन के मर्म को न समझा और बार-बार ब्रह्म की महत्ता की रट लगाते रहे, तो कृष्ण ने उनसे कहा कि व्याख्या-हे उद्धव !
तुम अपने मन में यह निश्चय जानो मैं सम्पूर्ण सद्भावना एवं मन-वचन, कर्म के साथ ब्रज भेज रहा हूँ, इसलिए तुम तुरन्त वहाँ के लिए प्रस्थान करो 1. कवि के कहने का भाव यह है कि कृष्ण उद्यव को सच्चे हृदय से ब्रज जाने के लिए कह रहे हैं । इससे उन्हे दो कार्यो की सिद्धि अभीष्ट है।
एक तो उन्हें वहाँ का कुशल समाचार प्राप्त हो जायेगा और दूसरा यह कि गोपियो के अनन्य प्रेम को परख कर ज्ञान-गवित उद्ध व प्रेम के सरल, सीवे मार्ग का महत्त्व जान सकेगे ।
कृष्ण कहते हैं, तुम्हारा ब्रह्म पूर्ण, अनीश्वर और अखण्ड रूप है तुम्हे ऐसे अविनाशी ब्रह्म का पूर्ण ज्ञान प्राप्त है ।
तुम्हारे ब्रह्म की न तो कोई रूपरेखा है, न ही कोई कुल-वश है और न ही उसके कोई माता-पिता हैं । कहने का भाव यह है कि तुम्हारा त्रह्य अनादि, अखण्ड अजर, अमर, और पूर्ण है।
वह सब प्रकार के सासारिक सम्बन्धो से अछूता एव स्वतत्र है । इसलिए कृपा करके तुम अपना यह ब्रह्म विषयक ज्ञान ब्रज-बल्लभियो को जाकर सुना प्राशो ।
तुम वहां शीघ्र जाकर गोपिकाओं को समझा-बुझा , क्योकि वे मेरे विरह मे निमग्न होकर विरह की नदी में डूब रही है ।
तुम तुरन्त उनसे जाकर कहो कि ब्रह्म के बिना जीवन मे मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता । वह ब्रह्म ही जीवन का सारतत्व है । तुम उन्हें जाकर यह समझायो कि प्रेम-भाव त्यागकर अविनाशी ब्रह्म का अन्य था नही ।
लेखक | सूरदास-Surdas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 724 |
Pdf साइज़ | 27.6 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
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