तुलसी सुक्ति सुधा – Tulasi Sukti Sudha Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
सुनहु प्रानप्रिय भावत जीका । वेहु एक वर भरतहि टीका । माँग पूसर पर कर जोरी । पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ॥ तापस वेष चिसे पि उदासी । चौदह बरिस रोम बनवासी ॥
सुनि सृष्टि पचन भूप हिय सोकू । ससि कर छुअतविकलजिमिकोक्॥ विचरन भयउ निपट नरपालू । दामि नि हुने मनहुँ तरु तालू । माथे हाथ मूँदि दोउ लोचन । तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन ॥
मोर मनोरथ-सुरतरु-फला । फरत करिनि जिमि हतेउ समूला। घोलेउ राव कठिन करि छाती । बानी सविनय तासु सोहाती। मोरे भरत राम दुइ आँखी । सत्य कहउँ करि संकर साखी ॥
सुदिन सोधि सब साजु सजाई । देउँ भरत कहूँ राजु बजाई। दोहा लोभ न रामहि राजु कर, बहुत भरत पर प्रीति । में एड बोट विधारि जिय, करत रहेउँ नृप-नीति ॥४ ॥
भ्रिया हवार परिदरहि चर, नगि विचारि विदेक । जे हि देखखजँ कव नयन भगि, भर-राजु-अभिषेकु साँझ समय सानंद नृप, गयउ कैकई गेह । गवनु निठुरता निकट किय, जनु धरि देह सनेह २ ॥
चौपाई कोप-भवन सुनि सकुचि राऊ । भयनस अगह परत न पाऊ । सभय नरेस पिया परि गयऊ । देखि दसा दुख दास्न भयऊ। भूमि सयन, पट मोट पुराना । दिये डारि तन भूषन नाना ।
जा निकट नूप कह हूु वानी । प्रानम्रिया केडि हेतु रिसानी ॥ अनहित तोगणियो केहि कोन्हा। फेट्ि हु सिर, केहि जम चहलीन्हा॥ सुभाउ योस । मन तवयानन-दयफोक। जी का काम कपट कग ताही ।
भानिनि राम-सपध-सत मोही ॥ विहनि माग मनभाषलि याा। भूष्रम सजहि मनोहर गाता । भामिनि भय मनभाया। घर घर नगर, अनंदरावावा। रामहि । काति सजाही ।। उठेद न हार गायब पाक यहीरी ।
लेखक | तुलसी दास-Tulsi Das |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 462 |
Pdf साइज़ | 72.3 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
तुलसी सुक्ति सुधा – Tulasi Sukti Sudha Book Pdf Free Download