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भूगोल नोट्स इन हिंदी – Geography Notes PDF Free Download
भारत ऐवम विश्व का भूगोल ( Indian and World Geography )
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पृथ्वी की उत्पत्ति के सिद्धान्तों का परिचय
उपर्युक्त विशेषतायें ही सौर्य परिवार की उत्पत्ति के विषय में दी गई परिकल्पनाओं का आधार हैं। अतः इन्ही विशेषताओं के परिप्रेक्ष्य में परिकल्पनाओं के गुण-दोषों की समीक्षा की जाती है। इन परिकल्पनाओं को तीन मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है –
- एक तारक परिकल्पनाएँ (ONE STAR HYPOTHESES) I 2. द्वैतारक परिकल्पनाएँ (BINARY HYPOTHESES) I
- नवीन परिकल्पनाएँ (MODERN HYPOTHESES) I प्रत्येक वर्ग में कई विद्वानों की परिकल्पनाएं सम्मिलित हैं। किन्तु इस इकाई में कुछ विद्वानी की परिकल्पनाओं को ही सम्मिलित किया गया है।
एक तारक परिकल्पनाएँ जिन परिकल्पनाओं में सौर्य परिवार की उत्पत्ति एक तारे से मानी जाती है, उन्हें एक तारक परिकल्पनाएँ कहा जाता है। इन परिकल्पनाओं के अनुसार सौर्य परिवार की उत्पत्ति एक क्रमिक विकास प्रक्रिया (GRADUAL EVOLUTIONARY PROCESS) का परिणाम है।
बफ न काण्ट, लाप्लास, रोशे, लॉकियर आदि विद्वानों की परिकल्पनाएं इस वर्ग में सम्मिलित की जाती हैं। इस इकाई में काण्ट व लाप्लास की परिकल्पनाओं को ही सम्मिलित किया गया है। काण्ट की वायव्य-राशि परिकल्पना (GASEOUS HYPOTHESIS OF KANT)
काण्ट ने सन् 1755 में पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी परिकल्पना का प्रतिपादन किया। काण्ट के अनुसार प्रारम्भ में असंख्य आदद्य पदार्थ (PRIMORDIAL MATTER) के कण ब्रह्माण्ड में फैले हुए थे।
ये सभी आदय कण पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण टकराकर आपस में एकत्रित होने लगे। इन कणों के टकराने से उनमें गति रण ताप उत्पन्न हुआ ताप से द्रव तथा द्रव से ये कण गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो गये गैसीय पुंज निरन्तर तीव्रतर गति से परिभ्रमण करने लगा। परिभ्रमण गति से गुरुत्वाकर्षण बल (GRAVITATIONAL FORCE).
अवशिष्ट बचा वह सूर्य बना। इस प्रकार सौर्य परिवार की रचना हुई। इसीलिये काण्ट ने कहा था “मुझे पदार्थ दो, मैं पृथ्वी की उत्पत्ति कर दिखलाऊंगा ।” (GIVE ME MATTER, AND I WILL SHOW YOU HOW TO MAKE A WORLD OF IT). आलोचना
- 1. काण्ट के अनुसार आदय कण गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण आपस में टकराने लगे । यह शक्ति पहले कहाँ थी और बाद में कैसे प्रकट हो गई? यह प्रश्न अनुत्तरित है।
- गतिक विज्ञान के अनुसार आदय कणों के आपस में टकराने से उनमें परिभ्रमण गति पैदा नहीं हो सकती है। लाप्लास की निहारिका परिकल्पना
लाप्लास (LAPLACE) फ्रांसीसी ज्योतिष थे। उन्होंने अपनी पुस्तक विश्व व्यवस्था की व्याख्या (EXPOSTION OF THE WORLD SYSTEM) के माध्यम से सन् 1796 में सौर्य परिवार की उत्पत्ति के विषय में अपनी परिकल्पना प्रतिपादित की लाप्लास से पूर्व काण्ट ने निहारिका परिकल्पना (NEBULAR HYPOTHESIS) दी थी। लाप्लास ने काण्ट की परिकल्पना के संशोधित रूप को अपने विचारों का आधार बनाया।
उन्होंने सौर्य परिवार की उत्पत्ति की प्रक्रिया के प्रारम्भिक चरण में परिभ्रमण करती हुई स्व अत्यन्त उष्ण एवं गैसीय निहारिका की कल्पना की थी। उन्होंने अपनी परिकल्पना में निहारिका की उत्पत्ति के विषय में कुछ भी नहीं कहा ।
लाप्लास ने काण्ट की परिकल्पना के इस अंश को हटा दिया कि आद्य पदार्थों की टकराहट से उनमें ताप व गति उत्पन्न हुई। इस संशोधन से लाप्लास ने अपनी परिकल्पना को कोणीय संवेग के संरक्षण सिद्धान्त सम्बन्धी आलोचना से बचा लिया।
यह उष्ण एवं गैसीय निहारिका लाप्लास के अनुसार सूर्य के केन्द्र से वरुण के पीरक्रमण मार्ग से भी काफी अधिक विस्तृत थी । गुरुत्वाकर्षण रण ताप हास के कारण यह निहारिका सिकुड़ने लगी जिससे इसके व्यास में कमी होती गई। इसक
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 244 |
PDF साइज़ | 70 MB |
Category | Education |
Source/Credits | Google.Drive.com |
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