शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र | History of Shivaji Maharaj PDF In Hindi

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छत्रपति शिवाजी का जीवन चरित्र और इतिहास – Biography of Chhatrapati Shivaji PDF Free Download

श्री छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

छत्रपति शिवाजी मातृवंश दोनों ओर से राजपूत थे। पितृपक्ष से वह उस पवित्र वंश में उत्पन्न हुए थे, जिसमें बड़े बड़े शूरवीर उत्पन्न हुए थे, जो वंश बहुत समय तक स्वतन्त्र रहा।

जिसकी सन्तान अपनी जाति और देश के लिए अनेक बार लड़ी और जिसने बहुत सी कठिनाइयों को झेलते हुए भी मुसलमानों से सम्बंध नहीं किया जो आज तक अपनी इस पवित्रता के कारण समस्त राजपूतों में शिरोमणि है।

हमारा यह संकेत उदयपुर के राणावंश’ से है। मातृपक्ष की ओर से शिवाजी एक ऐसे ही प्राचीन राजवंश के हैं मुसलमानों के आक्रमणों से पहले दक्षिण में यादव वंश के राजपूत राज करते थे जिनकी राजधानी देवगढ़ में भी जिसे कुछ समय मुहम्मद तुगलक ने दौलताबाद के नाम से प्रसिद्ध किया।

शिवाजी के नाना यादवराव जी उसी पूज्य राजघराने के थे। यद्यपि समय के उलट फेर के कारण राज्य की बागडोर हाथ से निकल गई थी. फिर भी यह वंश उस इलाके में प्रतिष्ठित और उच्च गिना जाता था।

कुछ इलाके उस समय भी इनके हाथ में थे और मुसलमानी राज्य में भी इस वंश के ‘मुसलमानी इतिहास-लेखक खाफीखा लिखता है कि शिवाजी उदयपुर के राजवंश में से थे किन्तु उन्होंने अपनी जाति से नीच जाति की स्त्री से सम्बंध कर लिया था जिसके फलस्वरूप एक पुत्र भी उत्पन्न हो चुका था।

इसी कारण लज्जित होकर राजपूताना छोड़कर दक्षिण में जा बसे थे और उस लड़के की भी शादी एक मरहठा वंश में कर दी थी मिस्टर जस्टिस रानाडे ने अपने मरहठा इतिहास में लिखा है कि शिवाजी पितृपक्ष की ओर से उदयपुर के राणा वंश के थे। उदयपुर के शासक सूर्यवती क्षत्रिय सीसोदिया वंश के हैं।

मराठा वंश में यादवराव का वंश सब से अधिक बली, पराक्रमी, प्रतिष्ठित और जागीरदार था। यादवराव के वंश का एक आदमी निजामशाही बादशाहत में दस हजार का जागीरदार था।

उनकेक वंश में सदा देशमुखी चली आती थी।’ शिवाजी के दादा का नाम ‘मालोजी’ भोसले था जो देरोल ग्राम में रहा करता थां मालोजी का विवाह दक्षिण में एक प्रतिष्ठित वष में हुआ था जो धनवान् और प्रतिष्ठित होने के अतिरिक्त अधिक प्राचीन भी था।

मालोजी भोंसले के साले को बनंगपाल निम्बालकर के नाम से पुकारते हैं। कोई कोई उसे जगपाल के नाम से भी पुकारते थे। जगपाल अपने समय में एक नामी लड़ाकू वीर हो गया है।

बीजापुर के राज्य में उसका वंश दूसरे नम्बर का था परन्तु स्वतन्त्रता की अभिलाषा ने जगपाल को स्वतन्त्र लड़ाइयों और लूट मार करने पर प्रस्तुत कर दिया।

जगपाल की बहिन मालोजी को व्याही थी. भोसले उनके राजवंश की उपाधि थी। ठीक पता नहीं। चलता कि यह भोंसले शब्द किस शब्द का अपभ्रंश रूप है।

एक मुसलमान इतिहास लेखक ने लिखा है कि “भोसले” शब्द घोसले का अपभ्रंश है। चुकि इनका प्रथम पूर्वज अर्थात् वह वीर जो पहले पहल राजपूताने से पिता के साथ महाराष्ट्र में आया. वर्षों तक जंगलों में भटकता रहा, इस कारण इस का घोंसला वंश हो गया जो बिगड़ कर भोसले हो गया।

परन्तु ग्रान्टडफ साहब इसका कुछ और कारण बताते हैं। वे कहते हैं कि बहमनी वंश वालों के राज्य में इस वंश का एक मनुष्य एक पहाड़ी किले पर एक जानवर की कमर में रस्सी बांध कर गया।

उससे पहले कोई उस किले पर नहीं चढ़ा था, वह किला बड़ा दुर्गम समझा जाता था उस दिन से उसका नाम भोंसले पढ़ा।

मालोजी भोंसले का बड़ा लड़का शाह जी भोंसले था। शाह जी का विवाह यादवराव की कन्या जीजीबाई से हुआ था। इस विवाह की भी एक अनोखी कहानी है।

मालोजी भोंसले उसक साधारण जागीरदार थे और यादवराव एक बड़े जागीरदार और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, परन्तु इन दोनों वशों में अपूर्व प्रेम चला आता था। एक बार मालोजी मोंसले अपने बेटे शाह जी के साथ यादवराव के घर गये।

उस समय बालिका जीजीबाई अपने पिता यादवराव के पास बैठी थी। दोनों को आते देख कर यादवराव बहुत खुश हुए और हंसते हंसते अपनी छोटी पुत्री जीजी बाई से पुछने लगे कि क्या तू शाह जी की स्त्री बनना पसन्द करेगी?

जो अन्य लोग वहां पर विद्यमान थे उनको सम्बोधन कर यादवराव ने कहा- “यह क्या अच्छी जोड़ी है? बस यह बात हुई थी कि मालोजी भोंसले आनन्दित हो कहने लगे कि मित्रों।

आप लोग साक्षी है, आज यादवराव ने अपनी कन्या का सम्बन्ध मेरे पुत्र शाह जी से कर दिया-” जीजीबाई आज से शाह जी की हो गई।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 124
PDF साइज़40 MB
CategoryBiography
Source/Creditsdrive.google.com

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