कुरान शरीफ | Quran Sharif PDF In Hindi

कुरान शरीफ हिंदी में पढ़ना है – Quran Sharif Book/Pustak PDF Free Download

कुरान पर एक एक द्रष्टि

सर्वशक्तिमान, सारससार का स्वामी, सृजन-पालन-संहार का एकमात्र अधिकारी, जगदीश्वर, परमेश्वर अथवा खुदा एक ही है, यह आस्तिक जगत में सबको मान्य है ।

उसी प्रकार जीव और ईश्वर के सम्बन्ध तथा एक प्राणी का दूसरे से सम्बन्ध समझते हुए भगवत्प्राप्ति श्रथवा परम शांति तक पहुँचने के लिये कछ मूल सिद्धांत भी हैं, जिन पर किसी को मतमेद नहीं ।

उपासना (पूजा का ढंग ) भले ही देश-काल-पात्र के अनुसार एक दूसरे से कुछ अलग हो परन्तु उन मूल सिद्धांतों को साधना को धर्म सब मानते हैं। इसलिये ईश्वर के समान ही मानव-धर्म भी एक है, अनेक नहीं।

फिर भी सारा मानव-समूह समय-समय पर और एक ही समय में अनेक धर्मों में बटा हुआ दिखाई देता है । हम यह समझने लगते हैं कि धर्म अनेक हैं और प्रत्येक धर्म का विकल्पित ईश्वर दूसरे धर्म के ईश्वर. से भिन्न तथा अपने समर्थकों का पक्षपाती और दूसरे धर्मावलम्बियों का शत्रु है |

इस भ्रांति में फँसकर एक ही सृष्टिकर्ता की रचना और एक ही मूल पुरुष (आदम) की संताने धर्म के नाम पर परस्पर एक दूसरे के प्रांत कैसे २ अत्याचार करती रही हैं, सारा इतिहास इसका साक्षी है।

परम शान्ति के पथ से भटक कर, लुभावने संसारी जीवन में फँसे हम लोग अपने अपने स्वार्थ और पिपासा की तृप्ति के लिए धर्म के नाम पर जाने या अनजाने अनेक छोटे-बड़ों गुटों में बँट कर छिन्न-भिन्न हो गये ।

दार्शनिक वड सवर्थ ने कहा है “जगत्पिता की परमानन्द-दायिनी प्रकृति के सर्वसुलभ सुखों को छोड़कर मनुष्य ने नाना प्रकार के अपने ही रचे हुये बंधनों में अपने आपको जकड़कर कितना दुखी कर लिया ।

हृाय, मानव ने मानव को किस दुर्गति में पहुँचा दिया है ।” राग और द्वेष में फॅा, अहंकार की मूर्ति तथा अपने को ही कर्ता-धर्ता मानने वाला आसुरी मनुष्य किसी भी विगत जननायक, महात्मा श्रथवा पैगम्बर के नाम पर उसी की शिक्षाओं के प्रतिकूल अनाचार में प्रवृत्त हो जाती है।

और इसी अनाचार एवं दुराचार से जब लोक काँप उठता है तब गीता और कुरान के अनुसार, गुनाह (पाप) और कफ (नास्तिकता) को मिटाने और सही मार्ग को दिखाने के लिये ईश्वर कृपा से किसी महान शक्ति, ईश्वरदूत, चली, पैगम्बर अथवा जननायक का अवतार होता है।

उदाहरणस्वरूप श्राज से लगभग १४०० वर्ष पूर्व, श्ररब मरुस्थल और उसके आस-पास के भूखण्ड में, रूढ़िवादिता के नाम पर चल रहे दम्भ, पाखण्ड, अनाचार और व्यभिचार से त्रस्त जनता को, ज्ञान के अन्धकार से निकालकर सत्य अथवा ज्ञान के प्रकाश में लाने के निमित्त ईश्वर की अनुकम्पा से मुहम्मद जैसा महात्मा और कुरान जैसा ज्ञान श्रवतारत हुआ।

परन्तु धर्म से केवल अपना स्वार्थ साधन करने वाले अरब मठा धीशों, राजनैतिक और सामाजिक सामन्तों और उनके चंगुल में फँसी हुई रूढ़ि और परम्परा की शिकार, त्रस्त और कराहती हुई भ्रांत जनता तक ने उस पौरुषेय क्रांति का घोर विरोध किया।

फिर भी हज़रत मुहम्मद और उनके अनुयायी अनेक अत्याचार और संकटों को भेलकर अपने सर्वस्व बलिदान द्वारा ईश्वर कृपा से जनकल्याण करने में सफल हुए । उस भूखण्ड में अधर्म का नाश हुआ और धर्म की पुनः स्थापना हुई । उस क्रांति को सफल बनाने वाली, ईश्वरीय ज्ञान और सत्य का

उनसे कहा जाता है कि देश में कसार मत फैलायो, वो कहते हैं हमको मेल-जोल करानेवाले हैं। (११) और यही लोग फसादी है; परन्तु सयमने नही हैं । (१२) और जब उनसे जाता है कि जिस सहयोग ईमान खाये हैं,

तुम भी ईमान जाओ, तो कहते है क्या इम भी ईमान ले आर्य, जिस तरह सूर्य ईमान के आये हैं। सुनो! पही लोग मूर्ख हैं परन्तु सममाते नहीं (१३) और जब उन लोगों से मिलते हैं, जो ईमान ला चुके हैं,

तो कहते हैं-इम तो ईमान ला चुके हैं और जब एकांत में अपने शैतानों से मिलते हैं, तो कहते हैं- इम तुम्हारे साथ हैं। हम तो सिर्फ (मुसलमानों से) मजाक करते हैं (१४) अल्लाद उनसे हँसी करता है

और उनको ढील देता है। वे इस सरकशी में भटकते रहेंगे। (१५) यही हैं वह लोग जिन्होंने हिदायत (शिक्षा) के बदले भटकना मोल लिया, सो न तो इनका व्यापार (सांसारिक) ही लामकारी हुआ

सचणे मार्ग पर ही कायम रहे। (१६) उनकी कहावत न आदमियों। की सी है, जिन्होंने आग जलाई, फिर जब उनके आस- पास की चीजें जगमगा उठीं, तो अल्लाह ने उनकी रोशनी (आँखें) छीन ली और उनको अँधेरे में छोड़ दिया।

अब उनको कुछ नहीं सूमता। (१०) बहरे, की तरह वह सच्चे मार्ग पर नहीं आ सकते । (१८) उनकी यह मिसाल वैसी है जैसेकि आकाश से जल बरसे, उसमें अंधेरा, गरज और बिजली हो और उस बक्त कोई मरने के दर से कदक के मारे अँगुलियाँ कानों में ठूस लेता हो ।

अल्लाह इन्कार करने १ कुछ लोग ऐसे थे, जो पहले तो मुसलमान हो गये थे। लेकिन बाद में मुनाफिक बन गये । इन लोगों ने पहले ईमान की रोशनी देखी, फिर उससे हटकर मुनाफिकत के अंधेरे में चले गये। सत्य को सुनने, कहने व देखने में असमर्थ ।

लेखक श्री अहमद वशीर- Sri Ahamad Vashir
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 610
Pdf साइज़56.5 MB
CategoryIslamic PDF

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