क्या करें क्या न करें – Kya Kare Kya Na Karen Book PDF Free Download

४. नाभिसे नीचे बायें हाथसे और नाभिसे ऊपर दाहिने हाथसे काम लेना चाहिये। अतः शीचके बाद बायें हाथ से शुद्धि करनी चाहिये।
५. जलके भीतरकी, देवालयकी, बाँबीकी, चूहेद्वारा इकट्ठी की गयी, शौचसे बची हुई, रास्तेकी, श्मशान- भूमि की, ऊसर भूमिकी, चरकी दीवारसे ली हुई, लीपने पोतनेके काममें लायी हुई, कुश और दूर्वांकी जड़से निकाली हुई चौराहेकी, गौशालाकी, चींटी आदि छोटे-छोटे जीवोद्वारा निकाली हुई और हलसे उखाड़ी हुई-इन सब प्रकारकी मिट्टियोंका शौचकर्में उपयोग नहीं करना चाहिये।
यदिया विहित शीय तदर्थ निशि की्तितम्। तरु प्रोप्तमातुरस्या्ंमध्यनि ॥ शीलाचार (शुद्ध) . शौचकर्में प्रत्येक बार ताजे आंवले बराबर मिट्टी सेनी चाहिये, इससे कम कभी नहीं।
७. मल-त्यागके बाद बारह बार और मूत्र-त्यागके बाद चार बार कुल्ला करना चाहिये। भोजनके बाद सोलह बार कुमा करना चाहिये।
८. सामने देवताओंका और दाहिने पितरोंका निवास रहता है: अतः मुख नीचे करके कुछ लेके अपने बायीं ओर ही फेंकना चाहिये।
९. जिसका अन्त:करण शुद्ध नहीं है, यह डुकटात्मा भनुष्य हजार बार मिट्टी लगानेपर और सौ पढ़े जलसे धोनेपर भी शुद्ध नहीं होता।
१०. यदि सम्पूर्ण नदियोंके जलसे तथा पर्वतके समान मिट्टीसे कोई मरणपर्यन्त बाह्यशुद्धि करे तो भी जिसका भाव शुद्ध पलाशकी लकड़ीका दातुन कभी नहीं करना चाहिये।
४. काय, विक अथवा कटु रसवाली दाबुन आरोग्यकारक होती है।
५. महुआकी दातुनसे पुत्रलाभ होता है। आककी दातुनसे नेत्रोंको सुख मिलता है। बेरकी दातुनसे प्रवचनकी शक्ति प्राप्त होती है।
बुहती (भटकटैया)-की दातुन करनेसे मनुष्य दुष्टोंपर विजय पाता है। बेल और खैरकी दातुनसे ऐश्वर्यकी प्राप्ति होती है। कदम्बसे रोगोंका नाश होता है। अतिमुक्तक (कुन्दका एक भेद,) -से धनका लाभ होता है।
आटरूषक (अड्सा)-की दातुनसे सर्वत्र गौरवकी प्राशि होती है । जाती (चमेली) -की दातुन से जाति में प्रधानता होती है। पीपल यश देता है। शिरीषको दातुन करनेसे सब प्रकारकी सम्पत्ति प्राप्त होती है।
लेखक | राजेंद्र कुमार धवन-Rajendra Kumar Dhawan |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 132 |
Pdf साइज़ | 7.4 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
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