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महाभारत की पूरी कहानी – Mahabharat Book PDF Free Download
महाभारत पुस्तक के बारे में
महर्षि वेदव्यास रचित सभी खंडो को पंडित रामनारायण दत्त ने सरल भाषा में अनुवाद किया है जिसको यह प्रस्तुत किया है।
महाभारत आर्य-संस्कृति तथा भारतीय सनातनधर्मका एक अत्यन्त आदरणीय और महान प्रमुख ग्रन्थ है। यह अनन्त अमूल्य रत्नोंका अपार भण्डार है।
भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि
अतएव महाभारत महाकाव्य है, गूढ़ार्थमय ज्ञान-विज्ञान शास्त्र है, धर्मग्रन्थ है, राजनीतिक दर्शन है, निष्काम कर्मयोग-दर्शन है, भक्ति-शास्त्र है, अध्यात्म शास्त्र है, आर्यजातिका इतिहास है और सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्र संग्रह है।
भारत वर्ष की जमीन पर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का जीवन है। महाराज पांडू, धुतराष्ट्र, दान वीर कर्ण, शक्तिशाली परशुराम और भीष्म, धनुर्धर अर्जुन, गदाधारी भीम आदि की कथा इस महाभारत में काव्य के स्वरूप में लिखा गया है
इस महाभारतके हिंदीमें कई अनुवाद इससे पहले प्रकाशित हो चुके हैं, परंतु इस समय संस्कृत मूल तथा हिंदी अनुवादसहित सम्पूर्ण ग्रन्थ शायद उपलब्ध नहीं है। मूल तथा हिंदी अनुवाद पृथक्-पृथक् तो प्राप्त होते हैं, परंतु उनका मूल्य बहुत है।
इसीलिये महाभारतका महत्त्व समझनेवाले प्रेमी तथा उदाराशय सज्जनोंका बहुत दिनों से यह आग्रह था कि गीताप्रेसके द्वारा मूल संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद सहित सम्पूर्ण महाभारत प्रकाशित किया जाय।
महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता के रूप में विश्व प्रसिद्ध हैं। समय की दृष्टि से वर्तमान महाभारत ग्रन्थ की रचना ईसा पूर्व पाँचवीं या छठी शताब्दी में मानी जाती है। विषयवस्तु की व्यापकता, आकार की विशालता, भावना की गंभीरता तथा विश्वव्यापी लोकप्रियता के कारण यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है कि जो कुछ महाभारत में है, वही सब भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी है तथा जो कुछ महाभारत में है, वह नहीं। , यह भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी नहीं है।
महाभारतमें आया है कि भगवान् व्यासदेवने साठ लाख श्लोकोंकी एक महाभारत-संहिताका निर्माण किया था। उस समय महान् ग्रन्थके चार छोटे बड़े संस्करण थे।
इनमें पहला तीस लाख श्लोकोंका था, जिसे नारदजीने देवलोकमें देवताओंको सुनाया था। दूसरा पंद्रह लाख श्लोकोंका था, जिसको देवल और असित ऋषिने पितृलोकमें पितृगणोंको सुनाया था।
तीसरा जो चौदह लाख श्लोकोंका था, शुकदेवजीके द्वारा गन्धर्वो, यक्षों आदिको सुनाया गया और शेष एक लाख इलोकोंके चौथे संस्करणका प्रचार मनुष्य लोक में हुआ |
महाभारत संक्षेप्त में
महाभारत की कहानी महर्षि पराशर के प्रसिद्ध पुत्र वेद व्यास की देन है। व्यास जी ने महाभारत की यह कथा पहले अपने पुत्र शुकदेव को कंठस्थ करायी थी और बाद में अपने अन्य शिष्यों को। महाभारत की कथा महर्षि वैशम्पायन के माध्यम से मानव जाति में फैली। वैशम्पायन व्यास जी के प्रमुख शिष्य थे। मान्यता है कि महाराजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने एक बड़ा यज्ञ किया था। इस महायज्ञ में प्रसिद्ध पौराणिक सूत जी भी उपस्थित थे। सूत जी ने सभी ऋषियों की एक बैठक बुलाई। महर्षि शौनक इस सभा के अध्यक्ष बने।
सूत जी ने ऋषियों की सभा में महाभारत की कथा प्रारम्भ करते हुए बताया कि महाराज शान्तनु के बाद उनके पुत्र चित्रांगद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। उनकी अकाल मृत्यु के बाद उनके भाई विचित्रवीर्य राजा बने। उनके दो पुत्र थे- धृतराष्ट्र और पांडु। बड़े पुत्र धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे इसलिए उस समय की नीति के अनुसार पांडु को राजगद्दी पर बिठाया गया।
पांडु ने कई वर्षों तक शासन किया। उनकी दो रानियाँ थीं – कुंती और माद्री। कुछ समय तक शासन करने के बाद पांडु अपने कुछ अपराधों का प्रायश्चित करने हेतु वन में तपस्या करने चले गये। उनकी दोनों रानियाँ भी उनके साथ गयीं। वनवास के दौरान कुंती और माद्री ने पांच पांडवों को जन्म दिया। कुछ समय बाद पाण्डु की मृत्यु हो गई। पाँच अनाथ बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा जंगल के ऋषि-मुनियों ने की। जब युधिष्ठिर सोलह वर्ष के हुए तो ऋषियों ने पांचों कुमारों को हस्तिनापुर ले जाकर पितामह भीष्म को सौंप दिया।
पांचों पांडव बुद्धि में तीव्र और शरीर से बलवान थे। उनकी तीक्ष्ण बुद्धि और मधुर स्वभाव ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। यह देखकर धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव उनसे ईर्ष्या करने लगे और पांडवों को तरह-तरह से परेशान करने लगे।
दिन-ब-दिन कौरवों और पांडवों के बीच शत्रुता बढ़ती गई। अंततः पितामह भीष्म ने किसी तरह दोनों को समझाया और उनके बीच संधि करायी। भीष्म के आदेशानुसार कुरु साम्राज्य को दो भागों में बाँट दिया गया। कौरवों ने हस्तिनापुर में शासन करना जारी रखा और पांडवों को एक अलग राज्य दिया गया, जो बाद में इंद्रप्रस्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार कुछ दिनों तक शान्ति रही।
उन दिनों राजाओं के बीच चौसर खेलना एक आम रिवाज था। राज्य तक पर दांव लगाए गए. इसी प्रथा के अनुसार एक बार पांडवों और कौरवों ने चौपड़ खेला। शकुनि ने कौरवों की ओर से कुटिल भूमिका निभाई। उसने युधिष्ठिर को हरा दिया। परिणामस्वरूप, पांडवों को अपना राज्य खोना पड़ा और उन्हें तेरह वर्षों के लिए वनवास भुगतना पड़ा। इसमें एक शर्त यह भी थी कि बारह वर्ष के वनवास के बाद एक वर्ष तक गुप्त रहना होगा। इसके बाद उनका राज्य उन्हें वापस कर दिया जायेगा.
द्रौपदी सहित पांचों पांडव बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष वनवास बिताने के बाद लौट आए, लेकिन लालची दुर्योधन ने उनका लिया हुआ राज्य वापस करने से इनकार कर दिया। इसलिए पांडवों को अपने राज्य के लिए युद्ध करना पड़ा।
युद्ध में सभी कौरव मारे गये, फिर पांडव उस विशाल साम्राज्य के स्वामी बन गये।
इसके बाद पांडवों ने छत्तीस वर्षों तक शासन किया और फिर अपने पोते परीक्षित को राज्य देकर द्रौपदी के साथ तपस्या करने हिमालय चले गये।
लेखक | महर्षि वेदव्यास-Maharshi Vedvyas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 5424 |
Pdf साइज़ | 126.2 MB |
Category | Religious |
Download
- खण्ड 1 [124MB] (आदिपर्व और सभापर्व )
- खण्ड 2 [137MB] (वनपर्व और विराटपर्व)
- खण्ड 3 [132MB] (उद्योगपर्व और भीष्मपर्व)
- खण्ड 4 [171MB] (द्रोणपर्व, कर्णपर्व, शल्यपर्व, सौप्तिकपर्व और स्त्रीपर्व)
- खण्ड 5 [126MB] (शांतिपर्व)
- खण्ड 6 [95MB] (अनुशासनपर्व, आश्वमेघिकपर्व, आश्रमवासिकपर्व, मौसलपर्व, महाप्रस्थानिकपर्व और स्वर्गारोहण पर्व)
महाभारत की पूरी कहानी हिंदी में PDF
तिरसठवाँ अध्याय: सात्यकि और भूरिश्रवा की भिड़न्त
सञ्जय ने कहा—राजन्, हाथियों की सेना के यों मारे जाने पर आपके पुत्र दुर्योधन ने अपनी सेना को भीमसेन के वध की आज्ञा दी ।
उस समय आपके पक्ष की सेना भयानक शब्द करके भीमसेन पर हमला करने के लिए दौड़ी। समुद्र के वेग को जैसे तटभूमि रोकती है वैसे ही भीमसेन उस असंख्य रथ-हाथी-घोड़े-पैदल आदि से पूर्ण, उड़ी हुई धूल से व्याप्त, देवताओं के लिए भी दुःसह कौरव सेना के वेग को रोकने लगे।
राजन, इस युद्ध में हमने भीमसेन का अद्भुत पराक्रम और अलौकिक काम देखे । वे अनायास उन सब राजाओं को और चतुरङ्गिणी सेना को केवल गदा की मार से रोकने लगे।
महापराक्रमी भीमसेन ने गदा के द्वारा उस सेना का वेग रोक लिया। वे पर्वतराज सुमेरु की तरह अचल बने रहे। उस भयानक युद्ध के समय भीमसेन के पुत्र, भाई, धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, अभिमन्यु और शिखण्डो ने भीमसेन का साथ नहीं छोड़ा।
भीमसेन लोहे की गदा हाथ में लेकर साक्षात् काल की तरह आपके योद्धाओं को मारने दौड़े, और प्रलयकाल के अग्नि की तरह आसपास के शत्रुओं को भस्म करते हुए युद्धभूमि में घूमने लगे।
वे घोड़ों को खदेड़कर और घुटनों के वेग से रथों को खींचकर उन पर के योद्धाओं को मारने लगे। हाथी जैसे नरकुल के जङ्गल को मथ डालता है वैसे ही वे रथों, घोड़ों, हाथियों के सवारों और पैदलों को गदा के प्रहार से नष्ट करने लगे ।
प्रबल आंधी से उखड़े वृक्षों की तरह काँपते हुए योद्धा गिरने लगे उस समय भीमसेन की गदा में रक्त, मांस, मेदा, मज्जा और वसा लिपी हुई थी, इसी कारण वह बहुत भयङ्कर देख पड़ती थी।
चारों ओर पड़ी मनुष्यों, हाथियों, घोड़ों आदि की लाशों से वह समरभूमि काल की वध्यभूमि के समान जान पड़ने लगी ।
सब लोगों को महावीर भीमसेन की वह प्रचण्ड गदा यमराज के दण्ड सी इन्द्र के वज्र सी, और संहारकर्ता शङ्कर के पिनाक धनुष सी जान पड़ती थी ।
उस गदा को लिये घूमते हुए भीमसेन उस समय प्रलयकाल में यमराज के समान शोभा को प्राप्त हुए। सब वीरों को मारते और भगाते हुए भीमसेन को आते देखकर कौरव पक्ष के सब लोग बहुत ही उदास हुए ।
महावीर भीमसेन गदा तानकर जिधर देखते थे उधर ही सेना डरकर भागने लगती थी ।
महाराज ! इस तरह सैन्य-संहारकर्ता, मुँह फैलाये हुए काल के समान भयङ्कर, भीमसेन भयावनी गदा के प्रहार से सेना को छिन्न-भिन्न कर रहे थे यह देखकर महावीर भीष्म मेघ के समान गरजनेवाले और सूर्यमण्डल के समान प्रकाश-पूर्ण रथ पर बैठकर वर्षा के मेघ की तरह बाण बरसाते हुए भीमसेन के सामने दौड़े।
साक्षात् काल के समान भीष्म को आते देखकर भीमसेन और भी क्रुद्ध हो उठे और एकाएक दौड़कर उनके समीप पहुँचे तब सत्य- परायण सात्यकि भी दृढ़ धनुष हाथ में लेकर बाण-वर्षा से दुर्योधन की सेना को कम्पित और नष्ट करते हुए भीष्म की ओर दौड़ पड़े।
हे राजेन्द्र ! आपके पक्ष का कोई भी वीर सफ़ेद घोड़ों से युक्त रथ पर बैठे हुए, तीक्ष्ण बाण बरसा रहे, शिनिवीर सात्यकि को रोक नहीं सका केवल राक्षस अलम्बुष ने सामने जाकर उनको दस बाण मारे महावीर सात्यकि ने रथ पर से चार बाण मारकर उसे शिथिल कर दिया और अपना रथ आगे बढ़ाया ।
अगर आप श्लोक के बिना महाभारत को सिर्फ कहानी के रूप में पढना तो यह किताब देख सकते है
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धन्यवाद, सम्पूर्ण महाभारत शेयर किया आप ने।
मैंने ये संस्करण पढ़ा मुझे इसमें मिलावट लगी । रामोपाख्यान में।
मुझे असली महाभारत चाहिए जिसमें 8800 श्लोक हैं। बाकी श्लोक बाद में जोड़े गए हैं। ऐसा लगता है।