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यजुर्वेद संहिता और भाष्यम – Yajur veda PDF Free Download
यजुर्वेद हिंदी सम्पूर्ण ग्रंथ के बारें में
‘वेद’ दीर्घकाल तक भारतीय जन-जीवन के अंग रहे हैं। आज यह समझा जाता है कि भारतीय जन-जीवन भी वेद विज्ञान से बहुत दूर जा पड़ा है, किन्तु ‘यजुवेंद’ वेद का एक ऐसा प्रभाग है जो आज भी जन-जीवन में अपना स्थान किसी न किसी रूप में बनाये हुए है।
देव-संस्कृति के अनुयायी पश्चिमी सभ्यता से कितने भी प्रभावित क्यों न हो गये हों, जन्म से लेकर विवाह एवं अन्त्येष्टि तक संस्कारपरक कर्मकाण्डों से उनका सम्बन्ध थोड़ा-बहुत बना ही रहता है।
संस्कारों एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों के अधिकांश मंत्र यजुर्वेद के ही हैं। उनकी मंत्र शक्ति एवं प्रेरणाओं का सम्पर्क भारतीय जन-जीवन के साथ निरन्तर बना ही हुआ है।
यजु का अर्थ
शतपत ब्राह्मण (१०.३.५.१-२) में ‘यजुः’ को स्पष्ट करते हुए उसे ‘यत् + जू:’ का संयोग कहा है। ‘यत्’ का अर्थ होता है-‘गतिशील’ तथा ‘जू:’ का अर्थ होता है- आकाश।
सृष्टि के निर्माण से पूर्व ‘जू:’ आकाश रूप में सर्वत्र एक ही चेतन तत्त्व फैला हुआ था। चेतना में संकल्प उभरा तथा आकाश में सूक्ष्म कण (सब एटॉमिक पार्टिकल्स) उत्पन्न हुए। यह गतिशील थे, इसलिए ‘यत्’ कहे गये।
इसे (आकाशात् वायुः) आकाश से वायु की उत्पत्ति कह सकते हैं। इन प्रवहमान सूक्ष्म कणों में गति के कारण सूक्ष्म विद्युत् विभव (फीबिलइलेक्ट्रिक पोटैशियल) उत्पन्न हुआ। इस विद्युत् ऊर्जा को ही ‘अग्नि’ की उत्पत्ति (वायोः अग्निः) कहा जा सकता है।
इन तीनों (जू: – आकाश, यत् – सूक्ष्म प्रवहमान कण तथा उस गति से उत्पन्न विद्युत् विभव) के संयोग से ही परमाणुओं की रचना हुई। केन्द्रक में धन विद्युत् विभव युक्त सूक्ष्म कण (न्यूक्लियस में प्रोटॉन्स) तथा उनके आस-पास के आकाश को घेरते हुए गतिशील ऋण विभव युक्त सूक्ष्म कण (इलेक्ट्रांस) : यही है विभिन्न पदार्थों के परमाणुओं की सरंचना।
इन्हीं का अनुपात बदल जाने से पदार्थ बदल जाते हैं। ‘यत्’ और ‘जः’ के संयोग से पंचभूतात्मक जगत् की सृष्टि के इस प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि यह प्रक्रिया सृष्टि निर्माण के यज्ञीय चक्र की ही द्योतक है।
यजुर्वेद के मंत्रो को ‘यजु'( यजुष्) कहते हैं’ ऋग्वेद एवं सामवेद के मंत्र पद्यात्मक हैं, यजुर्वेद के मंत्र उन बन्धनों से मुक्त हैं। ‘गद्यात्मको यजुः’ के अनुसार वे गद्यपरक हैं।
अन्य उक्ति के अनुसार ‘अनियताक्षरावसानो यजुः’ अर्थात् जिनमें अक्षरों को संख्या निर्धारित नहीं है, वे ‘यजु’ हैं। यह निर्धारण मंत्रों की रचना को लेकर किये गये हैं।
यों यजुर्वेद में भी बड़ी संख्या में पद्यात्मक छन्दों में मन्त्र हैं। ऋग्वेद के लगभग ६६३ मंत्र यथावत् यजुर्वेद में हैं। भले ही उन्हें परम्परा के अनुसार गद्यात्मक शैली में बोला जाता हो ।
यजुर्वेद को ‘यज्ञ’ से सम्बन्धित माना जाता है । ‘पाणिनि’ने ‘यज्ञ’ की व्युत्पत्ति ‘यज्’ धातु से की है । ब्राह्मण ग्रन्थों में ‘यजुष्’ को यज् धातु से सम्बद्ध कहा गया है। इस प्रकार ‘यजुः’ ‘यज्’ तथा ‘यज्ञ’ तीनों एक दूसरे के पर्याय हो जाते हैं। जैसे:
यच्छिष्टं तु यजुर्वेदे तेन यज्ञमयुञ्जत । यजनात् स बजुर्वेद इति शास्त्रविनिश्चयः ॥
(बझा० ० २.३४.२२) अर्थात् यजुर्वेद में जो कुछ भी प्रतिपादित है, उसी से यज्ञ का यजन किया गया। यज्ञों के यजन के कारण ही उसे यजुर्वेद नाम दिया गया है, ऐसा शास्त्र का निश्चय है।
इसी तथ्य की पुष्टि निरुक्तकार ने ‘बजुर्वजते:’ कथन से की है (नि० ७१२) । ‘यजुर्धियजन्ति’ (काठ० सं० २७.१) यजुस्तस्माद् (यज्ञात्) अजायत (काठ० सं० १००.२१) यजो इ वैनामैतद्यद्यजुरिति’ (शत० ना० ४.६.७.१३) इत्यादि श्रुतिवचनों से भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यज्ञ अथवा यजन को केवल लौकिक अग्निहोत्रपरक कर्मकाण्ड तक ही सीमित नहीं माना जा सकता।
पाणिनि ने ‘यज्’ धातु का अर्थ देवपूजन, संगतिकरण एवं दान किया है। इस आधार पर अपने से उत्कृष्ट चेतन सत्ता के प्रति श्रद्धा का विकास एवं उसकी अभिव्यक्ति, उस दिव्य अनुशासन में संगठित होकर कर्म का अनुष्ठान तथा इस प्रकार प्राप्त विभूतियों को कल्याणकारी प्रयोजनों के लिए समर्पित करना, यह सब क्रियाएँ यज्ञ के अन्तर्गत आ जाती हैं।
लेखक | Vedvyas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 420 |
Pdf साइज़ | 19.5 MB |
Category | Religious |
रेखा व्यास द्वारा यजुर्वेद का ग्रंथ प्रकाशित किया गया है, इसमें सभी अध्याय को संस्कृत श्लोक के साथ हिंदी अनुवाद के स्वरूप में लिखा गया है. इस पुस्तक की गुणवत्ता उत्तम है जिसको आप निचे दिए link से डाउनलोड कर सकते हो
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार यजुर्वेद भाष्यम
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