श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र | Lalitha Sahasranamam PDF In Sanskrit

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ललिता सहस्रनाम स्तोत्र Sanskrit Lyrics

॥ अथ श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रम् ॥

ॐ श्रीमाता, श्री महाराज्ञी, श्रीमत्-सिंहासनेश्वरी ।
चिदग्नि कुण्डसम्भूता, देवकार्यसमुद्यता ॥ 1 ॥

उद्यद्भानु सहस्राभा, चतुर्बाहु समन्विता ।
रागस्वरूप पाशाढ्या, क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला ॥ 2 ॥

मनोरूपेक्षुकोदण्डा, पञ्चतन्मात्र सायका ।
निजारुण प्रभापूर मज्जद्-ब्रह्माण्डमण्डला ॥ 3 ॥

चम्पकाशोक पुन्नाग सौगन्धिक लसत्कचा
कुरुविन्द मणिश्रेणी कनत्कोटीर मण्डिता ॥ 4 ॥

अष्टमी चन्द्र विभ्राज दलिकस्थल शोभिता ।
मुखचन्द्र कलङ्काभ मृगनाभि विशेषका ॥ 5 ॥

वदनस्मर माङ्गल्य गृहतोरण चिल्लिका ।
वक्त्रलक्ष्मी परीवाह चलन्मीनाभ लोचना ॥ 6 ॥

नवचम्पक पुष्पाभ नासादण्ड विराजिता ।
ताराकान्ति तिरस्कारि नासाभरण भासुरा ॥ 7 ॥

कदम्ब मञ्जरीक्लुप्त कर्णपूर मनोहरा ।
ताटङ्क युगलीभूत तपनोडुप मण्डला ॥ 8 ॥

पद्मराग शिलादर्श परिभावि कपोलभूः ।
नवविद्रुम बिम्बश्रीः न्यक्कारि रदनच्छदा ॥ 9 ॥

शुद्ध विद्याङ्कुराकार द्विजपङ्क्ति द्वयोज्ज्वला ।
कर्पूरवीटि कामोद समाकर्ष द्दिगन्तरा ॥ 10 ॥

निजसल्लाप माधुर्य विनिर्भर्-त्सित कच्छपी ।
मन्दस्मित प्रभापूर मज्जत्-कामेश मानसा ॥ 11 ॥

अनाकलित सादृश्य चुबुक श्री विराजिता ।
कामेशबद्ध माङ्गल्य सूत्रशोभित कन्थरा ॥ 12 ॥

कनकाङ्गद केयूर कमनीय भुजान्विता ।
रत्नग्रैवेय चिन्ताक लोलमुक्ता फलान्विता ॥ 13 ॥

कामेश्वर प्रेमरत्न मणि प्रतिपणस्तनी।
नाभ्यालवाल रोमालि लताफल कुचद्वयी ॥ 14 ॥

लक्ष्यरोमलता धारता समुन्नेय मध्यमा ।
स्तनभार दलन्-मध्य पट्टबन्ध वलित्रया ॥ 15 ॥

अरुणारुण कौसुम्भ वस्त्र भास्वत्-कटीतटी ।
रत्नकिङ्किणि कारम्य रशनादाम भूषिता ॥ 16 ॥

कामेश ज्ञात सौभाग्य मार्दवोरु द्वयान्विता ।
माणिक्य मकुटाकार जानुद्वय विराजिता ॥ 17 ॥

इन्द्रगोप परिक्षिप्त स्मर तूणाभ जङ्घिका ।
गूढगुल्भा कूर्मपृष्ठ जयिष्णु प्रपदान्विता ॥ 18 ॥

नखदीधिति संछन्न नमज्जन तमोगुणा ।
पदद्वय प्रभाजाल पराकृत सरोरुहा ॥ 19 ॥

शिञ्जान मणिमञ्जीर मण्डित श्री पदाम्बुजा ।
मराली मन्दगमना, महालावण्य शेवधिः ॥ 20 ॥

सर्वारुणा‌உनवद्याङ्गी सर्वाभरण भूषिता ।
शिवकामेश्वराङ्कस्था, शिवा, स्वाधीन वल्लभा ॥ 21 ॥

सुमेरु मध्यशृङ्गस्था, श्रीमन्नगर नायिका ।
चिन्तामणि गृहान्तस्था, पञ्चब्रह्मासनस्थिता ॥ 22 ॥

महापद्माटवी संस्था, कदम्ब वनवासिनी ।
सुधासागर मध्यस्था, कामाक्षी कामदायिनी ॥ 23 ॥

देवर्षि गणसङ्घात स्तूयमानात्म वैभवा ।
भण्डासुर वधोद्युक्त शक्तिसेना समन्विता ॥ 24 ॥

सम्पत्करी समारूढ सिन्धुर व्रजसेविता ।
अश्वारूढाधिष्ठिताश्व कोटिकोटि भिरावृता ॥ 25 ॥

आमुख

त्रिपुरां कुलनिधिमीड़ेऽरुणश्रियं कामराजविद्धांगीं त्रिगुणां देवैनिंनुतामेकान्तां विन्दुगां महारम्भाम् । सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” ब्रह्मका निरूपण सत्यज्ञान अनन्तसे कहा है ब्रह्म नाम रूप से – व्यावृत्त नहीं है।

“अस्ति भाति प्रियं रूपं नाम चेत्यंश पञ्चकम् । आद्य त्रयं ब्रह्म रूपं जगरूपमथो द्वयम् ॥ “

परम पुरुषार्थ मोक्ष परब्रह्मावगति नाम रूप से अतीत होने पर भी अपर ब्रह्म की उपासना के लिए नाम रूपात्मिका उपासना भक्ति अन्तः करण शुद्धि द्वारा परब्रहा (मोक्ष) दायिनी होने से वेदशास्त्र पुराण भीमांसा प्रतिपाद्य देवोपासना पूजा नामकीर्तन यज्ञादि सब परम्परा से मोक्ष प्रतिपाच है। धर्म कर्म उपासना वही है जिससे परम शान्ति समता का ज्ञान ब्रह्मात्मस्थितिका लाभ हो ।

यद्यपि वेद स्मृति पुराणादिकों में स्थान २ पर उपासना भक्ति से ब्रह्मसाक्षात्कार करने का वर्णन आया है तथापि उपासना का विशदी करण उसकी पृथक् भूमियों का निरूपण त्रिगुणात्मक संसार में साधक के प्रधान गुण और साध्य के गुणोंके संमिश्रण से गुणानुसार भी उपासना का निर्देश तन्त्रशास्त्र में किया है।

मार्कण्डेय पुराण में आया है

“तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम् । आराधिता सैवनॄणां भोगस्वर्गापवर्गदा ॥”

यही मातृ शक्ति भगवती उपासना द्वारा समाराधित भोग स्वर्ग, मोक्ष दात्री होती है। भगवती ललिता के प्रसन्न होने पर विष्णु का कटा शिर पुनः लग गया था। तब से हयग्रीव रूपी भगवान् का अवतार पुराण प्रतिपाद्य है।

हयग्रीव की पुण्य रोचक कथायें पुराणों में है। महाविद्या के परमोपासक अगस्त्य मुनि का ह्रयग्रीव से सम्बाद पद्मपुराण आदि में आया है मुनि अगस्त्य ने हयग्रीव से भगवती ललिता की उपासना विधि सांगोपांग प्राप्त की थी ।

किन्तु सहस्रनामावली की प्राप्ति न होने से मुनि व्याकुलता से बार २ हयग्रीव से जिज्ञासा करते रहे, उन्हें सन्देह यह हुआ कि सहस्रनाम तो मुझे नहीं बताया है कदाचित् मैं उसका अधिकारी नहीं हूं। ललितासहस्रनाम का ज्ञान हयग्रीव को भी नहीं था।

लेखक
भाषा Sanskrit, Hindi
कुल पृष्ठ 306
PDF साइज़93 MB
CategoryReligious

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