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कबीर साहेब के बीजक – Bijak Kabir Saheb Book/Pustak PDF Free Download
अनुक्रमणिका
- नीवरूप एक अंतर बासा
- अंतरज्योति शब्द एक नारी
- प्रथम आरम्भ कौन को भयक
- प्रथम चरन गुरु कीन्ह विचारा
- कईलो कहीं युगन की बाता
- वर्णहु कौन रूप भी रेखा
- जहिया होत पवन नहि पानी
- तत्वमसी इनकें उपदेशा
- बांध अष्ट कष्ट नौ सूता
- रांहीले पिपराही वही
- आंधरी गुष्ट सृष्टि भई बौरी
- पा माटिक कोट पचानक ताला
- नहिं मतीति जो यहि संसारा
- ज्ञा बड़ा सो पापी आदि गुमानी
- उनई बदरिया परिगो संझा
- चलत चळत अति चरन पिराने
- जस जिव आपु मिले अस कोई
- अद्भुत पंथ बरणि नहिं जाई
- अनहद अनुभव की करि माशा
- अब कहु रामनाम अविनाशी
- बहुत दुखे है दुःख की खानी
इस ग्रन्थके प्रथम कबीरकसौटी, सत्य कबीर की साखी और कबीर उपासना पद्धति नामक पुस्तकें छप चुकी हैं, । सत्य कबीरकी साखीको भूमिकाकी प्रतिज्ञानुसार बीजककी टीकाओंको छापना आरंभ किया है।
बीनककी कईटीकाओं में यह टीका परम प्रसिद्ध और वैष्णवमात्रको मान्य है। मान्य क्यों नही जबकि साकेतविहारी भगवान् रामचन्द्रजीके अनन्य उपासक. वेद, शास्त्रके पूर्ण ज्ञाता, सांगीत आदि विद्या कुशल श्रीमन्महाराजाधिराज बाँधवेश, रीबाँधिपति साकेतनिवासी श्रीमहाराज विश्वनाथ सिंहजूदेव बहादुरने स्वयम् इसकी टीका की है।
इस परभी सोनामें सुगन्ध यह है कि, यह टीका भी स्वयम् कबीर साहबकी आज्ञासे हुई है और श्री कबीर साहबने इसे पसन्द भी किया है जिसका विस्तृत विवरण इस पुस्तकके आदि मंगलकी टीका में मिलेगा ।
कबीर साहेब पन्द्रहवीं शताब्दी के एक महान सुधारक, त्यागी महात्मा, संत तथा कवि हुए हैं। यों तो आप की वाणी के कई ग्रन्थ हैं, परन्तु बीजक आप का एक मुख्य ग्रन्थ है ।
सम्प्रदाय के सन्तो तथा अन्य विद्वानों ने इसकी प्रामाणिकता स्वीकार की है । इस ग्रन्थ का अनुवाद कई भाषाओँ । हुआ है ।
अब तक कई विद्वानों और सन्तों ने इसकी टीका भी की है में कुछ कबीर पंथी स्थानों पर अठारहवीं शताब्दी तक की इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ भी पाई जाती हैं।
परन्तु नहीं मालूम उस समय की भाषा न समझने के कारण या लेखन प्रमाद वश अथवा अपने अपने मंतव्य के अनुसार खींचतान कर अर्थ तथा रूप निश्चित करने के कारण अधिकांश प्रतियों में अनेक शब्दों के रूप और के और पाए जाते हैं। जैसे
“दियन खताना किया पयाना मंदिल भया उजार । मरि गये ते मरि गये बांचे बाचनि हार ॥ “
लेखक | कबीर-Kabir |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 766 |
Pdf साइज़ | 59.4 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
हंसदासजी शास्त्री द्वारा सम्पादित ग्रंथ कबीर बीजक
श्री हंसदासजी शास्त्री एक कबीर पंथी मठ के अध्यक्ष हैं, श्री उदयशङ्करजी शास्त्री कबीरपंथी महन्त श्री गुरशरणदासजी के पुत्र है और श्री महावीरप्रसाद जी कबीरपंथ में दीक्षित हैं।
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