योग तंत्र साधना | Yoga Tantra Sadhana PDF

योग तंत्र साधना – Tantracharya Gopinath Kaviraj Aur Yoga Tantra Sadhana Book/Pustak Pdf Free Download

योग – तंत्र – साधना

कान में पड़ता है या उसके द्वारा हृदयंगम किया जाता है यथार्थ गुरु रूप में ग्राह्य है तथा वैखरी, मध्यमा, पश्यन्ती एवं परा वाणियों में क्रमशः अनुपालन द्वारा शिष्य को अव्यक्त परमधाम में पहुंचा देते हैं।

यही गुरुकृपा का महाविलास है इस विज्ञान के अनुसार साधक और योगी में अन्तर है।

साधक अपनी ही साधना में प्रवृत्त दूसरे के सुख-दुःख से तटस्थ रहता है, किन्तु योगी का लक्ष्य दूसरों के दुःख में दुःखी और सुख में सुख होता है, पर को वह अपना रूप मानता है यहीं साधक का आधार दुर्बल है और योगी का आधार तदपेक्षा प्रबल।

साधक स्वयं में तृप्त है, एकाकी कायाविरहित, किन्तु योगी कायायुक्त है और उसकी नित्यसंगिनी है ‘शक्ति’। के साथ आत्मा का योग ही प्रकृत-योग है।

साधक शक्तिहीन होने से शक्ति से युक्त नहीं होता। अत: शक्ति-अर्जन के अभाव में प्रकृत लाभ नहीं होता।

शक्ति मातृस्वरूपा है, अतः साधक योगी की भाँति माँ के साथ युक्त नहीं होता। उपनिषद् कहते हैं नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः’ योगी गुरु द्वारा योगी शिष्य एवं साधक दोनों का संस्कार अर्थात् दीक्षा-संस्कार सम्पन्न होता है।

अखण्ड महायोग का दीक्षा-रहस्य वैज्ञानिक है। गुरु योगी शिष्य को दीक्षा देते समय सर्वप्रथम उसके समस्त अणुओं का आकर्षण कर लेते हैं परमाणुओं का आकर्षण नहीं करते।

गुरुदत्त चैतन्य शक्ति के प्रभाव से अणु केवल शुद्ध हो नहीं होते, वरन् परमाणुओं के साथ योग सूत्र में भी आबंध हो जाते हैं ।

योगी गुरु योगी शिष्य को मात्र बीज-दान ही नहीं, शिष्य को काया-दान भी करते हैं। इसी गुरुदत्त काया का नाम है कुण्डलिनी-जागरण।

अत: शिष्य को अलग से कुण्डलिनी जागरण नहीं करना साधक स्वयं में तृप्त है, एकाकी कायाविरहित, किन्तु योगी कायायुक्त है और उसकी नित्यसंगिनी है ‘शक्ति’। शक्ति के साथ आत्मा का योग ही प्रकृत-योग है।

लेखक रमेशचंद्र अवस्थी-Rameshchandra Avsthi
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 122
Pdf साइज़26.4 MB
Categoryस्वास्थ्य(Health)

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