कबीर मंसूर | Kabir Manshoor PDF In Hindi

कबीर मंसूर – Kabir Manshoor Book/Pustak PDF Free Download

कवीर मन्शूर के विषय

अति उत्तमतासे क्रमपूर्वक समाविष्ट किये गये हैं उनकी क्रमपंक्ति पूर्वके साथ सम्बन्ध रखती हुईही चली है।

जिस तरह अन्य सांप्रदायिक ग्रन्थ अपने अपने सिद्धान्तोंके अनुसार सृष्टि रचनासे प्रारब्ध होते हैं उसी तरह इस ग्रन्थमें भी सबसे पहिले अपने ढंगका सृष्टि रचनाका निरूपण किया है,

सतयुग त्रेता और द्वापरमें संसारकी आवश्यकताके अनुसार सत्य पुरुषके दिव्य सन्देश देश देशान्तरोंमें सुनाकर कबीर साहिबने सबको सुखी किया यह बात दूसरी बघ्यायमें जनकी गई है।

तीसरी अध्यायमें कबीर साहिबके कलियुगके प्रादुर्भाव है सबसे पिछले सिकन्दर लोधीके समयके प्राकट्यकी कथा है। व्यक्तिभावसे लेकर श्रीरामानन्दाचाय्यंजीके शिष्य होने आदिके वृत्तान्त विस्तारपूर्वक लिखे गये हैं।

अध्यायों चारसे लेकर १२ तक उनकी दिव्य सिद्धि योके दिखाने का विशद वर्णन किया है कि, किस प्रकार अपने नामसे मुरदे कमाल कमालीतकोंको पुनः जीवित करके अश्रद्धालुजनोंपर भी अपना पूरा प्रभाव प्रगट कर दिया था।

इसके साथही साथ कबीर पन्यके संस्थापक धर्मदासजीके व्यालीस वंश एवम् कमाल कमाली आदि बारह पत्थोंका सामान्य परिचय, कबीर पन्यके धार्मिक नियम उनके भक्त एवम् पौर्वात्य और पाश्चात्य उपास्य देव ऋषि मुनि धर्माचार्य, यज्ञ पुस्तक एवम् उपासना आदिका साथही साथ विशद वर्णन किया है।

अध्याय तेरहमें कबीर शब्दके अर्थ उनके विषय में ऋषीश्वरोंके वचन तथा अन्य प्रमाण दिये गये हैं।

चौदह और पन्द्रह अध्यायमें कबीर साहबके लोमश आदि प्राचीनतम शिष्य, सत्ययुग त्रेता और द्वापरके हंस एवम् कलियुगके हंसोंका वर्णन विस्तारके साथ करते हुए कबीर पत्थसे भिन्न उन पन्थोंके प्रवर्तक शिष्योंका वर्णन किया है जिनके कि शिष्य आज कबीरसाहिबको अपना आद्य आचार्य नहीं मानते ।

१६ वें अध्यायमें प्रकृतिजय और शरणागतके धर्म आदि अनेक उप युक्त विषय वर्णित है । सत्रहवें अध्यायमें बन्धनके कारण मन कर्म आदिका विचार किया है ।

अठारहवें अध्यायमें पुनर्जन्मका वर्णन है जो पाश्चात्य अथवा चार किताबोंवाले पुनर्जन्मको आज हिन्दुओंकी तरह नहीं मानते उन्हें उन्हींके ही, धर्म ग्रन्थोंसे समझाया गया है कि, अपने श्रद्धेय ग्रन्थोंको विचार पूर्वक देखो |

ये कारण पुनर्जन्म माननेके हैं । उन्नीसवीं अध्यायका जीव वैचित्र्य भी इसीका पोषक है उसमें अनेक तरहके संस्कारी जीवोंको केवल इसी लिये दिखाया है कि, पशु आदि योनियोंमेसे भी पूर्व जन्मकी करनीके फलसे कितना दिव्य ज्ञान दीख रहा है ।

बीसवें अध्यायमें कबीर साहिबके दार्शनिक सिद्धान्तको सूक्ष्म रूपसे प्रतिपादन करनेवाले आदि मंगलको कह कर सार्वधार्मिक युक्तियों और धर्म ग्रन्थोंके प्रमाणोंसे जीवहत्या और मदिरा मांसका निषेध किया गया है तथा सब धर्मोको बताया है ।

लेखक स्वामी परमानंद जी-Swami Parmanand Ji
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 1371
Pdf साइज़429.1 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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