श्री दधिची पुराण – Sri Dadhichi Puran PDF Free Download

श्री दधिमथ्यै पुराण की कथा
बिताया, फिर भी वंशवद्धि के लिए पुत्र को प्राप्त न किया। पुत्र की इच्छा रखने वाले वे अथवा बारबार चिन्ता करते हुए अत्यन्त दुःखके पार को नहीं पहुंचे, और इस प्रकार बोले थिना सन्तति के मृत्युलोक में मेरा यह जीवन व्यर्थ है,
धिक्कार योग्य है। इस प्रकार अपने को तुच्छ मानकर दुःखित होते हुए ब्रह्मर्षि के पास पहले कहे हुए आश्रम में नारद पहुंचे। हृदय को प्रफुल्लित करने की इच्छा से नारद ने वीणा को बजाते हुए मुनि के उस अत्यन्त को देखा ।
शाल, ताल, तमाल, विल्व, पाटल, कदम्ब, क्षीरपर्णी कुन्द, चम्पक और चन्दन उस आश्रम की शोभा बढ़ाते थे । अशोक, कोविदार नाग, नागकेसर, दाडिम, बीजपूर, राजपूर से वह आश्रम युक्त था।
पीपल, आंवला, बइ, गूलर, खजूर, नारियल, और अगूरों की बेलों से वह आश्रम घिरा हुआ था । तुलसी, मालती, नीम, आम और आम के फलों से तथा और भी अनेक प्रकार के वृथा से एवं केले के वृक्षों से वह शोभित हो रहा था।
हिरण, चीता, सुअर, सिंह, बन्दर, गीदड, काला हिरण, चामरी गाय और खरगोश आदि से आश्रम व्याप्त या । (साही) बिलाव, मोर, जंगली हाथी, भेड़िये, कस्तूरिया हिरण तथा हबनियों से आश्रम मंडित था।
बांबी से निकल कर बडे बडे सर्प बालकों के साथ प्रसन्नता और लीला के साथ क्रीडा करते थे। ऋषि प्रभाव से सभी जन्तु प्रसन्न मन से वैरहीम हो गए थे और पविषयों में तोता, मोर और कोयल गीत गाते थे।
वहां यन में पापों को नष्ट करने वाली नदी गंगा, जिसकी शोभा बालू के कनों से बारो ओर व्याप्त हो रही थी। गंगा , लाल कमल स्वेत कमल तथा जल में होने सपने अन्य पुष्यों से थी इंस,
लेखक | महर्षि दधीचि-Maharshi Dadhichi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 142 |
Pdf साइज़ | 47.3 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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