सम्पूर्ण सामवेद | Samaveda PDF In Hindi

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सामवेद संहिता – Samveda Sanskrit Shloka With Hindi Translation PDF Free Download

सामवेद की जानकारी

सामवेद के दो प्रधान भाग है—आर्थिक तथा गान । आर्थिक का शाब्दिक अर्थ है ऋक् समूह जिसके दो भाग है—पूर्वार्षिक तथा उत्तराचिक ।

पूर्वार्थिक में ६ प्रपाठक या अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में अनेक खण्ड हैं, जिन्हें ‘दशति’ भी कहा गया है। ‘दशति’ शब्द से प्रतीत होता है कि इनमें ऋचाओं की संख्या दस होनी चाहिए; परन्तु किसी खण्ड में यह संख्या दस से कम, कहीं दस से अधिक है। इन खण्डों में मंत्रों का संकलन छंद तथा देवता की एकता पर निर्भर है।

प्रथम प्रपाठक या अध्याय को आग्नेय काण्ड (या पर्व) कहते हैं। इसमें अग्नि विषयक ऋक् मंत्रों का समन्वय उपस्थित किया गया है। दूसरे से लेकर चौथे अध्याय तक इन्द्र की स्तुति होने से यह ऐन्द्र पर्व कहलाता है पञ्चम अध्याय पावमान पर्व है।

इसमें सोम विषयक ऋचाएँ संकलित हैं। जो पूरी तरह से ऋग्वेद के नवम मण्डल से ली गई हैं। छठे अध्याय को आरण्य पर्व कहा गया है।

इसमें देवताओं तथा छंदों की भिन्नता होने के बावजूद गान विषयक एकता विद्यमान है। पहले से लेकर पाँचवे अध्याय तक की ऋचाओं को तो ग्राम गान कहते हैं, लेकिन छठे अध्याय की ऋचाएँ अरण्य में गेय होने. के कारण ‘अरण्य गान’ कही जाती है ।

अन्त में परिशिष्ट रूप से ‘महानाम्नी’ नामक ऋचाएँ दी गई हैं। इस तरह पूर्वार्चिक के मंत्रों की संख्या ६५० है । उत्तराचिक में प्रपाठकों की संख्या नौ है पहले पाँच प्रपाठक में दो-दो भाग हैं।

जो प्रपाठकार्ध कहे जाते हैं, जिन्हें अध्याय भी माना गया है।

अंतिम चार प्रपाठकों में तीन-तीन अर्थ है। यह गणना राणायनीय शाखा के अनुसार है। कौथुम शाखा में इस अर्थ को अध्याय तथा दशतियों को खण्ड कहने का चलन है।

नौवें प्रपाठक में तीन अर्थ हैं, किन्तु प्रथम एवम् द्वितीय अर्थों को मिलाकर एक ही अध्याय माना गया है। इस प्रकार प्रथम पाँच प्रपाठकों के दस अध्याय, ६, ७ एवम् ८ प्रपाठकों के तीन-तीन अर्थात् नौ अध्याय तथा नौवें के दो अध्याय इस प्रकार कुल २१ अध्याय है।

उत्तराचिक के सारे मंत्रों की कुल संख्या बारह सौ पच्चीस (१२२५) है। अतः दोनों आर्थिकों की सम्मिलित मंत्र संख्या अठारह सौ पचहत्तर (१८७५) हैं।

ऊपर बताया जा चुका है कि साम ऋचाएँ ऋग्वेद से ली गई हैं, लेकिन फिर भी कुछ ऋचाएँ पूरी तरह भिन्न हैं, अर्थात् उपलब्ध शाकल्य संहिता में ये ऋचाएँ बिलकुल नहीं मिलती ।

यह भी ध्यान देने की बात है कि पूर्वार्तिक के २६७ मंत्र (लगभग तीन हिस्से से कुछ ऊपर ऋचाएँ) उत्तराचिक में फिर से लिए गये है । अतः ऋग्वेद की वस्तुतः १५०४ ऋचाएँ हो सामवेद में उद्धृत हैं । सामान्यतया ७५ मंत्र अधिक माने जाते हैं; परन्तु वास्तविक संख्या इससे अधिक है।

९९ ऋचाएँ एकदम नयी हैं। इनका संकलन शायद ऋग्वेद की अन्य शाखाओं की संहिताओं से किया गया होगा। इस तरह ऋग्वेद की ऋचाएँ १५०४ + पुनरुक्त २६७ = १७७१. नवीन ९९ + पुनरुक्त ५ = १०४ साम संहिता की सम्पूर्ण ऋचाएँ – १८७५ ।

सामवेद में कितनी ऋचाएँ है?

साम संहिता की सम्पूर्ण ऋचाएँ 1875 है

ऋग्वेद और सामवेद के अन्तर्सम्बन्ध

ऋग्वेद सामवेद के पारस्परिक तथा सम्बन्धों को स्पष्ट किये बगैर, बात अधूरी रह जायेगी। वैदिक विद्वानो की यह धारणा है कि सामवेद में उपलब्ध ऋचाएँ ऋग्वेद से ही गान के

निमित्त संगृहीत की गई है; परन्तु कुछ ऐसे प्रमाण भी है, तो ऋ मिलते हैं, जो इस धारणा पर पुनर्विचार किये जाने के नहीं मिल लिए प्रेरित करते हैं ।

(१) कहीं-कहीं सामवेद की ऋचाओं में ऋग्वेद की ऋचाओं से केवल आंशिक साम्य ही देखने को मिलता है। ऋग्वेद का ‘अग्ने युवा हि ये सवाऽश्वासो देव साधक अरं वहन्ति मन्यवे । (६.१६.४३) साम० २५ में— अग्ने युवा हि ये सवावा सो देव सायवः अरं वहत्या शव रूप में पठित है ।

इस आंशिक साम्य के तथा मंत्र के पादव्यत्यय के अनेकों उदाहरण सामवेद में यत्र-तत्र बिखरे हैं। यदि इन ऋचाओं को लिया गया होता, तो इन्हें उसी रूप व क्रम में निहित होना था, पर ऐसा नहीं है।

(२) इन ऋचाओं को यदि गायन के लिए सामवेद में लिया गया है, तो सिर्फ उतने ही मंत्रों का ऋग्वेद से संकलन करना चाहिए था, जितने मंत्र गान या साम के लिए अपेक्षित होते ।

इसके उल्टे दिखाई यह देता है कि साम-संहिता में लगभग ४५० ऐसे मंत्र हैं, जिन पर कोई गान नहीं है। ऐसे गान हेतु अनपेक्षित मंत्रों के संकलन की जरूरत क्यों पड़ी ?

(३) यदि साम मंत्रों को ऋग्वेद से लिया गया है, तो इसका रूप ही नहीं, स्वर निर्देश भी तद्नुरूप होना चाहिए था । ऋक् मंत्रों में उदात्त-अनु दात्तं तथा स्वरित स्वर पाये जाते है ।

जबकि सामवेद में उनका निर्देश एक, दो तथा तीन अंकों द्वारा करने की प्रथा है। ये नारदीय शिक्षा के अनुसार क्रमशः मध्यम, गान्धार और ऋषभ स्वर हैं। इन्हें अंगुष्ठ तर्जनी, मध्यमा अंगुलियों के मध्यम पर्व पर अंगुष्ठ का स्पर्श करते हुए दिखाया जाता है। साम मंत्रों के उच्चारण में ऋक् मंत्रों के उच्चारण से पर्याप्त भिन्नता है।

(४) यदि सामवेद, ऋग्वेद के बाद की रचना है, जैसा कि आधुनिक विद्वानों की मान्यता है, तो ऋग्वेद के अनेक स्थानों पर साम का उल्लेख नहीं मिलना चाहिए; जबकि ऋग्वेद के अनेक स्थलों पर साम का उल्लेख देखा जा सकता है।

यथा अंगिरसां सामभिः स्तूयमाना: (ऋक्० १.१०७.२) उद्गातेव शकुने साम गायसि (२.४३.२) इन्द्राय साम गायत विप्राय बृहते बृहत् (८९८.१) आदि मंत्रों में न केवल सामान्य साम का बल्कि बृहत् साम का उल्लेख भी है।

ऐतरेय ब्राह्मण (२.२३) का तो स्पष्ट कथन है कि सृष्टि के आरम्भ में ऋक् और साम दोनों का अस्तित्व था (ऋक् च वा इदपत्रे साम चास्ताम्) ।

इतना ही नहीं यज्ञ की सफलता सम्पन्नता के लिए होता, अध्वर्यु तथा ब्रह्मा नामक व्यक्तियों के साथ उगाता का काम साम गायन हो तो है; तब साम को अर्वाचीन किस आधार पर माना जाय ?

(५) जब नामकरण विशिष्ट ऋषियों के नाम पर किया गया मिलता है, तो क्या ये ऋषि इन सामों के कर्त्ता नहीं है ? इसका जवाब है कि जिस साम से सर्वप्रथम जिस ऋषि को इष्ट प्राप्ति हुई, उस साम का वह ऋषि कहलाता है।

लेखक Ved Vyas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 328
Pdf साइज़15.8 MB
CategoryReligious

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