योग वशिष्ठ | Yoga Vashishtha PDF In Hindi

योग वशिष्ठ – Yoga Vashishtha Book Pdf Free Download

योग वशिष्ठ

ईश्वर बोले, हे मुनीश्वर! स्वरूप का विस्मरणजो इस प्रकार होता है कि मैं हन्ता हूँ, मैं दुःखी हूँ, सो अनात्मा में अहं प्रतीति करके ही दुःख का अनुभव करता है ।

जैसे स्वप्न में पुरुष आपको पर्वत से गिरता देख के दुःखी होता है और आपको मृतक हुआ देखता है तैसे ही स्वरूप के प्रमाद से अनात्म में आत्म अभिमान करके आपको दुःखी देखता है ।

हे मुनीश्वर! शुद्ध चैतन्यतत्त्व में जो चितभाव हुआ है सो चितकला फुरने से जगत् का कारण हुआ है परन्तु वास्तव में स्वरूप से भिन्न नहीं ।

जैसे जैसे चित्कला चेतती गई है तैसे ही जगत् होता गया है वह चित्त का कारण भी नहीं हुआ और जब कारण ही नहीं हुआ तब कार्य किसको?

हे मुनीश्वर! न वह है, न चेतन है, न चेतनेवाली है, न दृष्टा है, न दृश्य है और न दर्शन है जैसे पत्थर में तेल नहीं होता न कारण है, न कर्म है और न कारण इन्द्रियाँ है, जैसे चन्द्रमा में श्यामता नहीं होती ।

न वह मन है और न मानने योग्य दृश्य वस्तु है-जैसे आकाश में अंकुर नहीं होता न वह अहन्ता है, न तम है और न दृश्य है- जैसे शंख को श्यामता नहीं होती ।

हे मुनीश्वर! न वह नाना है, न अनाना है-जैसे अणु में सुमेरु नहीं होता। न वह शब्द है, न स्पर्श का अर्थ है-जैसे मरुस्थल में बेलि नहीं होती ।

न वस्तु है, न अवस्तु है-जैसे बरफ में उष्णता नहीं होती । न शून्य है न अशून्य है, न जड़ है न चेतन है । जैसे सूर्यमण्डल में अन्धकार नहीं होता । हे मुनीश्वर! शब्द और अर्थ इत्याटिक की कल्पना भी उसमें कुछ नहीं

लेखक योग वशिष्ठ-Yog Vashishtha
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 679
Pdf साइज़6.7 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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