कार्बनिक रसायन विज्ञान | Organic Chemistry PDF In Hindi

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कार्बनिक रसायन – Organic Chemistry Basic Principles And Techniques PDF Free Download

कार्बनिक रसायन विज्ञान के आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

हमारे चारों ओर कार्बनिक यौगिक विभिन्न रूपों में विद्यमान होते हैं। वे विभिन्न पदार्थों जैसे ईंधन, खाद्य पदार्थ, बहुलकों और प्लास्टिक, वस्त्र, रंजकों, औषधियों, विस्फोटकों, प्रसाधनों, पेंट तथा पीड़कनाशियों आदि में उपस्थित होते हैं।

‘कार्बनिक’ शब्द की उत्पत्ति ‘सजीव’ (living organism) शब्द से हुई है क्योंकि सजीवों के शरीर के मुख्य घटक कार्बनिक यौगिक ही होते हैं। प्राणियों और पादपों से प्राप्त कार्बनिक यौगिकों के अतिरिक्त एक बड़ी संख्या में कार्बनिक यौगिक प्रयोगशालाओं में भी संश्लेषित किए जाते हैं।

सभी कार्बनिक यौगिकों में कार्बन उपस्थित होता है। कार्बन परमाणुओं का आपस में संयुक्त होकर लंबी श्रृंखलाएँ, वलय और जाल बनाने का विशेष गुणधर्म होता है जिसे श्रृंखलन (catenation) कहते हैं। इस गुणधर्म के परिणामस्वरूप एक बड़ी संख्या में कार्बन के यौगिक बनते हैं।

‘हाइड्रोकार्बन’ जो कार्बन और हाइड्रोजन से बने यौगिक होते हैं, मूल कार्बनिक यौगिक हैं जिन्हें विभिन्न अभिक्रियाओं द्वारा अनेक प्रकार के कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित किया जा सकता है। ‘कार्बनिक रसायन’ रसायन विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत कार्बन के यौगिकों का अध्ययन किया जाता है।

कार्बन के कुछ यौगिकों जैसे असा धातुकाइडों धातु साइनाइडों और धातु कार्बोनेटों का अध्ययन रसायन विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत न करके ‘अकार्बनिक रसायन’ (inorganic chemistry) के अंतर्गत किया जाता है।

इस पाठ में आई. यू. पी. ए. सी. नामपद्धति पर आधारित कार्बनिक यौगिकों के नामकरण के विभिन्न नियमों का वर्णन किया गया है। कार्बनिक यौगिकों में आबंधों के विदलन के विभिन्न प्रकारों के भेद की भी व्याख्या की गई है।

आबंध विलन के विभिन्न प्रकारों में अंतर कर सकेंगे

• विभिन्न प्रकार की अभिक्रियाओं जैसे प्रतिस्थापन, संकलन, विलोपन और आण्विक पुनर्विन्यास की व्याख्या कर सकेंगे;

• नाभिकस्नेहियों और इलेक्ट्रॉनस्नेहियों को पहचान सकेंगे;

• सहसंयोजी आबंध में इलेक्ट्रॉनिक प्रभावों जैसे प्रेरणिक प्रभाव इलेक्ट्रोमेरी प्रभाव, अनुनाद अतिसंयुग्मन और त्रिविम विन्यासी बाधा की व्याख्या कर सकेंगे;

• संरचनात्मक समावयवता और त्रिविम समावयवता की व्याख्या कर सकेंगे:

● निरपेक्ष विन्यास की परिभाषा दे सकेंगे;

● किसी केन्द्र का निरपेक्ष विन्यास R, S एवं D. L का निर्धारित कर सकेंगे; तथा कार्बनिक यौगिकों में C. H. N.S. O एवं P. के गुणात्मक एवं मात्रात्मक विश्लेषण कर सकेंगे।

हाइड्रोकार्बनों का वर्गीकरण

कार्बन परमाणुओं की श्रृंखला के पैटर्न (प्रकार) के आधार पर सभी कार्बनिक यौगिकों को दो मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है। आइए, यौगिकों की इन श्रेणियों के बारे में समझें।

1. विवृत श्रृंखला (Open-chain) या ऐलिफैटिक (Aliphatic) यौगिकः इस वर्ग के अंतर्गत सभी हाइड्रोकार्बन संतृप्त और असंतृप्त (Saturated and Unsaturated) और उनके व्युत्पन्न (Derivatives) आते हैं जिनकी विवृत श्रृंखला संरचना होती है।

संतृप्त हाइड्रोकार्बन वे होते हैं जिनमें सभी कार्बन परमाणुओं के बीच एकल आबंध (Single Band) होते हैं जैसे CH, CH, और CH – CH-CH, दूसरी ओर, असंतृप्त यौगिकों में दो कार्बन परमाणुओं के बीच द्वि- आबंध (Double Bond) (-C=C-) या त्रि-आबंध (Triple Band) होता है।

उदाहरण के लिए

आण्विक संरचना की मौलिक अवधारणाओं का ज्ञान कार्बनिक यौगिकों के गुणों को समझने और उनकी प्रागुक्ति करने में सहायक होता है। संयोजकता सिद्धांत एवं आण्विक संरचना को आप एकक-4 में समझ चुके हैं।

आप यह भी जानते हैं कि कार्बन की चतुर्संयोजकता तथा इसके द्वारा सहसंयोजक आबंध निर्माण को इलेक्ट्रॉनीय विन्यास तथा s और p कक्षकों के संकरण (Hybridisation) के आधार पर समझाया जा सकता है।

आपको यह याद होगा कि मेथेन (CH), एथीन (CH) तथा एथाइन (CH) के समान अणुओं की आकृतियों को कार्बन परमाणुओं द्वारा निर्मित क्रमश: sp, sp’ तथा sp संकर कक्षकों की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।

संकरण किसी यौगिक में आबंध लंबाई तथा आबंध एंथैल्पी (आबंध-सामर्थ्य) को प्रभावित करता है। संकरित sp में s गुण अधिक होने के कारण यह नाभिक के समीप कक्षक होता है।

अत: sp संकरित कक्षक द्वारा निर्मित आबंध sp+ संकरित कक्षक द्वारा निर्मित आबंध की अपेक्षा अधिक निकट तथा अधिक सामर्थ्यवान होता है। sp संकरित कक्षक sp तथा sp संकरित कक्षक के मध्यवर्ती होता है।

अतः इससे बनने वाले आबंध की लंबाई तथा एथैल्पी-दोनों के मध्यवर्ती होती हैं। संकरण का परिवर्तन कार्बन की विद्युत् ऋणात्मकता को प्रभावित करता है। कार्बन पर स्थित संकरित कक्षक की 5 प्रकृति बढ़ने पर उसकी विद्युत् ऋणात्मकता में वृद्धि हो जाती है।

अतः sp संकरित कक्षक (जिसमे प्रकृति S 50% है) तथा sp संकरित कक्षकों की अपेक्षा अधिक विदास ऋणात्मक होते हैं।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 39
PDF साइज़20 MB
CategoryChemistry
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