मीरा के पद का संग्रह – Meera Pad Collection Book PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
मीरा के प्रामाणिक पदो के संग्रह का प्रयास इधर कुछ ही दिनो से चल पडा है। इससे पहले मीसें के नाम से प्रसिद्ध अथूवा मीरौ की छाप से युक्त प्राय सभी पद मीरा रचित मान लिए जाते थे।
बात यह थी कि तब तक मीरों के पद भक्ति-भावना से युक्त साधारणू-ज्नम्समाज के लिए गेय पद मात्र ये, उन पदो में कुछ काव्य-सौन्दर्य, कुछ उच्च भाव विभूति, कुछ तन्मय कर देने की शक्ति का अनुभव विद्वत्समाज नही कर पाता था,
क्योंकि तब तक विद्वत्समाज मे सरल और संहज भाषा मे सरल और सहज अनुभूतियो की सरल और सहज अभिव्यक्ति का महत्व विशेष नहीं था । ध्वनि-व्यजना और बलकार-वक्रोक्ति की अभ्यस्त
सहृदयता ने अनलकृत सहज काव्य-सौन्दर्य की ओर से कुछ ऐसी आँखे मुद ली थी कि मीर के इन रससिक्त पदो. मे भी हिन्दी के सहृदय कहे जाने वाले विद्वानो को कोई रस नही मिलता था |
इसी कारण मीरा के ये गेय पद साहित्य मे उपेक्षित ही रहे। परतु अब जब कि हिन्दी के कुछ सहृदय विद्वानो को मीरा के पदो में रस मिलने लगा है, जब शिक्षित समाज में मीरा के पदो की चाह बढने लगी है,
तब से विद्वानो के मस्तिष्क में जिज्ञासा और संशय न घर करना प्रारम्भ कर दिया है। जिज्ञासा ज्ञान बुद्धि के लिए सबसे बढा वरदान है; इसी जिज्ञासा के वरशीभूत हो विद्वान् गहन तत्वो की खोज में निकल पडता है ।
मीरा के प्रति जिज्ञासा की भावना उठते ही उनके पदो के की रूचि बढन लगी उनके जीवन चरित विविध प्रश्नो के उत्तर और विविध शकाओ के ढूंढे जाने लगे, , इतिहास और का कर अनेक नयी बाते खोज गई।
परतु सदेह करना तो सरल है, उसका समाधान ढूंढ निकालना उतना सरल नही । विशेष रूप से मीरा के पदों के सम्बन्ध में यह कठिनाई और भी अधिक है।
मीरों के पद लिखे नही गए थे, वे गाए गए थे।. मीरों भक्त थी, उन्होने भक्ति भावना के आवेश मे अपने गिरधर नागर की मूर्ति के सामने, अथवा मार्ग पर चलते हुए अथवा वृदावन और द्वारका के मंदिरो मे अथवा साधु सतो और महात्माओ के समागम के समय उनके सामने अपने पदो का गान किया था और वे गीत मौखिक परम्परा से बहुत दिनो तक जनता मे प्रसिद्ध रहे।
सूर, कबीर, रैदास तथा अन्य सतो और महात्माओं ने भी अपने पद और छद गाए थे, लिखा नही था, परंतु उन महात्माओ के शिष्य और सम्प्रदाय वालो ने उन्हीके जीवन काल में अथवा उनकी मृत्यु के कुछ ही समय उपरात उनकी रचनाओ को लिपिबद्ध कर लिया था जिससे उनकी रचनाओ की प्रामाणिकता बहुत कुछ जॉची जा सकती है।
परंतु मीरां का किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बंध नहीं था, उनकी शिष्य-परम्परा थी ही नही और सतान तथा कुटुम्बी भी उनके नहीं थे, इसी कारण उनकी रचनाएँ बहुत दिनो तक लिपिबद्ध नही हो सकी, केवल मौखिक परम्परा से ही
लेखक | पद्मावती शबनम-Padmavati Shabnam |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 365 |
Pdf साइज़ | 16.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
मीरा बृहद पद संग्रह – Meera Pad Sangrah Book Pdf Free Download