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व्यक्तित्व विकास – Vyaktitva Vikas 2nd Year PDF Free Download
व्यक्तित्व विकास
1.00 उद्देश्य
प्रिय विद्यार्थियों आप स्नातक तृतीय वर्ग के द्वितीय पत्र प्राध्यान व्यक्तित्व विकास का अध्ययन करने जा रहे है। इस पत्र का उद्देश्य व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं के विकास में प्रेायान के महत्व व उपयोगिता को उजागर करना व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले अनेक कारक तत्व है।
उसमें से व्यक्ति के अपने अधीन विशेषकर मनो कारक तत्व होते हैं। उनका विकास चाहे तो व्यक्ति स्वयं कर सकता है। इससे वह अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बना सकता है। मनोवैज्ञानिक कारक तत्वों के विकास में ध्यान की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अ हम इसका विस्तार से अध्ययन करेंगे। पत्र में
प्रस्तुत पत्र की प्रथम इकाई का उद्देश्य व्यक्तित्व का सामान्य परिचय कराना है। इसके अन्तर्गत आपको अध्ययन का महत्व उसका संक्षिप्त इतिहास, अर्थ एवं कारक तत्वों से परिचित करना है अतः इस प्रथम पाठ के अध्ययन पश्चात् आप
- व्यक्ति के अध्ययन के महत्व को जान सकेंगे.
- व्यक्तित्व 1- अध्ययन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को संक्षेप में समझ सकेंगे,
- विभिन्न दृष्टियों से की गई व्यक्तित्व की परिभाषाओं को समझ सकेंगे. 4. व्यक्तित्व के अर्थ एवं स्वरूप को निर्धारित कर सकेंगे।
1.1.0 भूमिका
दुनिया में ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग भी होते है जिनका असफलता, असंतोष, अप्रसन्नता और सामाजिक अस्वीकृति से भरा हुआ होता है।
आधुनिक युग में खुशमिजाज व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का बहुत महत्व है उसे अधिक लोग पसंद करते हैं। वह सभी के साथ समायोजित होने में सफल रहता है। उनके जीवन में सफलता खुशियाँ और सामाजिक स्वीकृति जब चाहे तब मिलती रहती है ये गुण और विशेषताएं जो भी व्यक्ति चाहे यह इन
आज के युग में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। सामाजिक और पारिवारिक जीवन जटिल हो रहा है। सभी लोग यह मानते हैं कि अच्छा और प्रभावशाली व्यक्तित्व होने पर व्यक्ति अनेक उपलब्धियां प्राप्त कर सकता है।
उनकी उपलब्धियों के पीछे उनके व्यक्तित्व का बहुत हाथ रहा है। लोग यह भी विश्वास करते हैं कि आज उनका जो व्यक्तित्व है उसको बदला जा सकता है, उन्नत किया जा सकता है।
अतः वे आज टी.वी. अखबार या पत्रिकाओं के माध्यम से उन तरीकों की खोज करते रहते है जिनके द्वारा व्यक्ति को बदला और उन किया जा सकता है।
इस संबंध में वह अपने परिचितों और मित्रों से भी विचार-विमर्श करता है। कुछ लोग व्यक्तित्व को जन्मजात उपहार या ईश्वरीय उपहार भी मानते हैं। ऐसे व्यक्ति व्यक्तित्व के परिवर्तन और उम्र होने में अपेक्षाकृत कम विश्वास करते हैं।
1.20 व्यक्तित्व का अध्ययन
व्यक्ति की सम्यक् जानकारी के लिए व्यक्तित्व का अध्ययन बहुत आवश्यक है। इससे व्यक्ति स्वयं अपने व्यक्तित्व को उम्मद बना सकता है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान ने इस दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है। अतीत में मौ के अध्ययनको बहुत महत्व दिया जाता रहा है।
1.2.1 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
व्यक्तित्व को जानने में रूचि हजारों साल से विद्वानों और जनमानस में रही है। भारतीय चिन्तनधारा में मानव व्यक्तित्व के सिद्धान्तों का विवेचन वेद उपनिषद् सांख्य योग, जैन आगम और बौद्ध पिटक में विस्तृत रूप से हुआ है। यहाँ मुख्यतः व्यक्तित्व को जीवात्मा कहा गया है। यह संप्रत्यय (concept) व्यक्तित्व के मनोदेहिक संरचना से सम्बद्ध न उसके नैतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष से संबंधित है।
इसी प्रकार पश्चिम में भी व्यक्तित्व सिद्धान्त का इतिहास पुराना रहा है। इसकी उत्पत्ति पौराणिक, जैसे हिप्पोक्रेट्स प्लेटो तथा अरस्तु द्वारा मानव स्वभाव एवं व्यवहार के बारे में व्यक्त किये गये विचारों से हुई है।
आधुनिक व्यक्तित्व सिद्धान्त में इन महान पौराणिक सिद्धान्तों एवं आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के विचारों का प्रतिबिम्ब मिलती है तथापि आधुनिक मनोविज्ञान में व्यक्तित्व संबंधी मनोवैज्ञानिक अध्ययनों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। यह इतिहास मात्र एक शताब्दी का इतिहास है। sity
व्यक्तित्व का अध्ययन गूढ एवं जटिल होने से इसका अध्ययन प्रयोगशाला में कम संभव रहा। अतः प्रारम्भ में मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर कम हो गया। इसमें भी प्रारम्भ में मनोवैज्ञानिकों का ध्यान प्रत्यक्षीकरण अधिगम संबंधी आययनों पर अधिक रहा है। व्यक्त्वि अध्ययन के क्षेत्र सर्वप्रथम व्यवस्थित अध्ययन मनोचिकित्साशास्त्रियों द्वारा प्रारम्भ किया गया।
फ्रायड का इस दिशा में योगदान अधिक महत्त्वपूर्ण और लोकप्रिय रहा 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में व्यक्तित्व संबंधी अध्ययनों का अर्थ केवल व्यक्तित्व इतिहास (Case History) से था। इसके बाद व्यक्तित्व के अध्ययनों में इस विषय की खोज क
1.2.2 व्यक्तित्व सिद्धान्त
वर्तमान युग में आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का विभिन्न दृष्टिकोणों से विस्तार से अध्ययन किया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज व्यक्तित्व के बारे में अनेक सिद्धान्त प्रचलन में हैं।
सिद्धान्त वस्तुतः किसी विषयवस्तु से संबंधित एक दृष्टिकोण से किये गये विचारों का संग्रह है। दूसरे शब्दों में व्यक्तित्व के जितने भी सिद्धान्त है ये वास्तव में विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोणों एवं विचारधाराओं के प्रतिनिधि है।
व्यक्तित्व का ययन करते समय किसी एक सिद्धान्त को समय रूप से सही नहीं माना जा सकता कोई सिद्धाना अपने आप में पूर्ण नहीं है, सभी सिद्धान्तों में कुछ न कुछ विशिष्टताएं हैं और उनकी अपनी कुछ सीमाएं भी हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि प्रत्येक सिद्धान्त में जो-जो विशेषताएं है. उन्हें ग्रहण कर लें एवं उसे अपने चिन्तन के द्वारा उन्हें सही
प्रकार से व्यवस्थित कर से इसके लिए
व्यक्ति की उन बातों को जो ठीक लगे उन्हें व्यक्ति में देखने का प्रयास करें। निरीक्षण के द्वारा प्राप्त बातों का हम विधिवत वर्गीकरण करें। फिर Jain Vis
उनके आपसी संबंधों को समझने का प्रयास करे। 4. अन्त में देखें कि वे स्वरूप को किस प्रकार स्पष्ट करती है
Language | Hindi |
No. of Pages | 215 |
PDF Size | 8.3 MB |
Category | Education |
Source/Credits | – |
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