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वोल्गा से गंगा – Volga Se Ganga Pdf Free Download
वोल्गा से गंगा
दोनों टुकड़ियों के मिलनेसे पहिले ही बाकी गवन भी खडे हो नझुनों- को फुलाते, कानोंको आगे टेढ़ा करते उसी एक दिशारी ओर अस्थिर शरीरसे देखने लगे ।
चषक भरके भीतर ही जान पड़ा, उन्हें खतरा मालूम हो गया, और नील गवयके पीछे वह हवा बहनेकी दिशाकी ओर दौड़ पड़े । अभी उन्होंने खतरेको आँखोंसे देखा न था, इसलिये बीच बीचमें खड़े हो पीछेकी ओर देखते ।
छिपे हुये शिकारियों के पास आकर एक बार फिर वह मुड़कर देखने लगे, इसी बकू कई धनुषों- के ज्याकी टकार हुई । नीज्ञ गवयके कलेजेको ताककर बंधुलने अपना अचूक निशाना लगाया ।
उसीको मल्लिका और दूसरे कितनोंने मी लक्ष्य बनाया, किन्तु यदि बंधुलका तीर चूक गया होता, तो वह हाथ न पाता, यह निश्चित था। नील गवय उसी जगह गिर गया। यथके दूसरे पशु तितर-बितर हो भाग निकले ।
बोलने पहुंचकर देखा, गवय दम तोड़ रहा है । दो गवयोंके खूनकी बूँदोंका अनुसरण करते हुये शिकारियोंने एक कोसपर जा एकको धरती पर गिरा पाया । इस सफ- लताके साथ आजके बन-भोजमे बहुत आनन्द रहा।
कुछ लोग लकड़ियोंकी बड़ी निर्धम श्रग तैयार करने लगे। मक्षियों ने पतीले तैयार किये । कुछ पुरुषोंने गवयके चमड़ेको उतार मास खंडोंको काटना शुरू किया।
सबसे पहिले अागमें भुनी कलेनी तथा सुरा-चषक लोगोंके सामने आये- माह-खड काटनेमें बंधुलके दोनों हाथ लगे हुये थे, इसलिये मल्लिकाने अपने हाथ से मुंह में भुना टुकड़ा और सुरा-चषक दिया।
मास पककर तैयार नहीं हो पाया था, जब कि सध्या हो गई। लकड़ी के दहकते अ्रग्नि-स्कधोंकी लाल रोशनी काफी यी, उसीमे मल्लों का गान-ृत्य शुरू हुआ ।
मल्लिका-कुसीनाराकी सुदरतम तरुणी-ने शिकारी बेशमे अपने नृत्य कौशलको दिखलाने मे कमाल किया।
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लेखक | राहुल सांकृत्यायन – Rahul Sankrityayan |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 384 |
Pdf की साइज़ | 14.9 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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