सुर विनय पत्रिका भावार्थ सहित | Sur Vinay Patrika PDF In Hindi

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सुर विनय पत्रिका सूरदास रचित – Sur Vinay Patrika Pdf Free Download

सुर विनय पत्रिका भावार्थ सहित

जहाँ-जहाँ जिस भावसे भक्तोंने श्रीहरिका स्मरण किया वहाँ उसी भावके अनुरूप प्रभु दौड़कर ( अविलम्ब ) पहुँचे । श्रीहरि दीनबन्धु हैं, भक्तोंके लिये कृपामय हैं,

यह वेदों तथा पुराणों में कहा गया है। कुवेरके पुत्र ( नलकूबर-मणिग्रीव) मदमच और प्रमादी हो गये घे, विषयकी मदान्धता उनके नेत्रों में छा रही थी। देवर्षि नारदजीके शापसे घे यमला र्जुन

( जुड़े हुए दो अर्जुन वृक्ष ) हुए थे, उनके उद्धार के लिये श्रीकृष्ण स्वयं (ऊखस्में ) बंधे । विप्र सुदामाके वस्त्र मैले थे, वे अत्यन्त दुर्बल हो रहे थे) (उनकी) यह दशा देखकर श्यामतुन्दरने

उनके चावल खाये और उनकी पत्नीको ( अपार ) सम्पत्ति देकर उसकी हार्दिक अभिलाषा पूर्ण कर दी। जब जलके भीतर याहने गजराजको पकड़ा, तब गजराजने हृदयमें श्रीहरिका ध्यान किया ।

प्रभु गरुड़को भी छोड़कर भातुर होकर दौड़े और तत्काल गजराजको ( ग्राहते ) छुडराया । (वे श्यामसुन्दर) स्वयं ही समस्त कलाओंके निधान, सम्पूर्ण गुणोंके सागर हैं भला,

गुरु सान्दीपनि उन्हें क्या शिक्षा दे सकते थे; किंतु पढ़ानेके उपकारके बदले गुरुदक्षिणाके रूपमें अपना मरा हुआ पुत्र माँगा, अतः श्रीकृष्णचन्द्रने यमलोकसे लाकर वह ( उनका पुत्र उन्हें ) दिया ।

सूरदासजी कहते हैं; प्रभो ! आप भतवत्सल हैं, आपका नाम पतितपावन कहलाता है, है माधव ! आपने मेरे-जैसे पता नहीं कितने अपराधियोंको स्वर्ग भेजा है ।

(अतः मेरा भी आप उद्धार करें प्रभुका एक स्वभाव देन्वो। (इ म्वभावपर ध्यान दो) वे श्रीहरि सर्वेश्वर होकर भी अत्यन्त गम्भीर उदारताके सागर तथा अपने ननौकी दशा समझने वालों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

वे मगवान् अपने मक्के तृण-समान ( तुच्छ) गुणको सुमेरुपर्वत के समान (महान् ) मानते हैं और उसके अपराधोंके समुद्रको एक बूंदके समान मी बड़े संकोचसे मानते हैं ।

सम्मुख होनेपर श्रीहरिका जैसा प्रसन्न कमलमुख में देखता हूँ, विमुख होनेपर मी एक निमेषके लिये भी उनमें अकृपा नहीं आती और फिर सम्मुख होनेपर (उनका कमलमुख ) वैसे ही प्रसन्न दीखता है ।

लेखक सूरदास- Surdas, Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 324
Pdf साइज़13.7 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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