वनौषधि रत्नाकर – Van Aushadhi Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
उनके गोलोकवास के साथ बन्द हो चुका था उसे चालू किया जाय । हम दोनों उनके पुत्रों से इसकी अनु मति लेने इलाहाबाद पहुचे ।
उन लोगों से सम्पर्क साधा पर वे ऐसी विपुल राशि की माग करने लगे जिये देना शक्य नही था । पर तभी हमारी भेंट एक कानूनयाफ्ता सज्जन से हुई ।
उन्होंने कहा कि जो बधवार बन्द हो चुका है उस नाम का प्रयोग कोई भी दूसरा व्यक्ति कर सकता है या कि इस नाम के प्रयोग की अनुमति पत्र निवन्धक ने किसी दूसरे को पहले से न दे दी हो
उन्होंने “सीढर” का हवाला दिया जो अगरेजी दैनिक के रूप मे एक पूरी सदी पलकर यस्द हो चुका था तथा पहा कि अगर बाप पाहेंगे नौर नाम से नया पत्र निकाल सकते हैं कानूनी पोजीशन समझकर हमने सुधानिधि नाम से ही बनुमति मागी और यह मिस गई और सुधानिधि पसने सगा।
बंध देवीशरण ने अपने जीवन भर इसे अमृत का समुद्र बनाए रखा । उनके सामने और बाद में भी हमने इस परम्परा को कायम रखा है।
अब उसको चलाने का पूरा-पूरा दायित्व गोपालघरण गर्ग का है जो पूर्ण भक्ति, निष्ठा बौर तत्परता से खे निभा रहा है।
इस सम्पादकीय के प्रारम्भ में मैंने जिस श्लोक का पयन किया है वह सम्राट अकबर के बित्त मन्यो यो टोदरमन टटन द्वारा लिखा गया है इस श्लोक से ज्ञात होता है कि ये कितने कुण भक्त थे, कितने सस्कृतज्ञ थे और ये वायुर्वेद के निष्णात बौर दीवाना ।
यह पलोक मंटीरिया मेरिका बाफ मामुद में स० भगवानदास तथा रा. ललितेश कश्यप द्वारा लिखित कसैप्ट पब्लिशिंग कम्पनी नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक से लिया गया है जिसे टोपरानन्द नामक अन्य के आयुर्वेद मौरपम नामक भाग के आधार पर सग्रहीत किया गया है।
लेखक | गोपीनाथ पारीख-Gopinath Parikh |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 346 |
Pdf साइज़ | 21.6 MB |
Category | आयुर्वेद(Ayurveda) |
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