हिंदी भाषा का इतिहास – History of Hindi Bhasha Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
संसार में जितनी भाषाएँ है, उन सबका इतिहास बड़ा ही मनी- रंजक तथा चित्ताकर्षक है, परंतु जी भाषाएँ जितनी ही अधिक प्राचीन होती है और जिन्होंने अपने जीवन में कितने विषय-प्रवेश अधिक उलट फेर देखे होते हैं उतनी ही अधिक मनोहर और चिफर्षक होती हैं ।
इस विचार से भारतीय भाषाओं का इतिहास बहुत कुछ मनोरंजक और मनोहर है।
भारतवर्ष ने आज तक कितने परिवर्तन देखे हैं, यह इतिहास-प्रेमियों से छिपा नहीं है। राज नीतिक, सामाजिक श्रर धार्मिक परिवर्तनों का प्रभाव किसी जाति की स्थिति ही पर नहीं पड़ता, अपितु उसकी भाषा पर भी बहुत कुछ पड़ता है।
भित्र भिन्न जातियों का संसर्ग होने पर परस्पर भायों और उन भावों के पौतफ शब्दों का आदान-प्रदान होता है,
तथा शब्दो के उच्चारण में भी कुछ कुछ विकार हो जाता है। इसी कारण के वशीभूत होकर भाषाओं के रूप में परिवर्तन हो जाता है और साथ ही उनमें नए नए शब्द भी आ जाते हैं।
इस अवस्था में यदि वृज भारत की भाषाओं की शआरंम फी अवस्था से लेकर यतमान श्रयस्था तक में शकाश पाताख का अंतर हो जाय, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
अय यदि हम इस परिवर्तन का तथ्य जान सिर्फ, तो हमारे लिये वह कितना मनोरंजक होगा, यह सहज ही ध्यान में सकता है ।
साथ ही भाषा अपना आय- रण हटाकर अपने वास्तविक रूप का प्रदर्शन उसी को कराती है, जो उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित होने का अधिकारी है।
इस प्रकार का अधिकार उसी को प्राप्त होता है जिसने उसके विकास का कम भली भाति देखा है।
भाषाओं में निरंतर परिवर्तन होता रहता है जो उनके इतिहास को पार भी जटिल, पर साथ ही मनोहर, पना देता है । भाषाओों फे विकास की साधारणतः दो अवस्था मानी गई ह-एक वियोगायस्था पार दूसरी संयोगावस्था।
लेखक | श्याम सुंदरदास-Shyam Sundardas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 390 |
Pdf साइज़ | 10.2 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
हिंदी भाषा – Hindi Bhasha Ka Itihas Book PDF Free Download